By अनन्या मिश्रा | Feb 16, 2024
आज ही के दिन यानी की 16 फरवरी को हिंदी सिनेमा के पितामह यानी दादा साहेब फाल्के का निधन हो गया था। हिंदी सिनेमा में उनका नाम बड़े ही अदब के साथ लिया जाता है। सिनेमा को लेकर उनकी दीवानगी का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि फाल्के ने फिल्म बनाने के लिए अपनी पत्नी के गहने तक दांव पर लगा दिए थे। वहीं फिल्म में अभिनेत्री की तलाश के लिए रेड लाइट एरिया तक पहुंच गए थे। कुल मिलाकर उन्होंने फिल्मों के लिए वह सबकुछ किया, जो सभ्य समाज की आंखों में खटकता है।
जन्म
दादा साहेब का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था और उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 में हुआ था। फाल्के के पिता का नाम गोविंद सदाशिव फाल्के संस्कृत के विद्वान और मंदिर के पुजारी थे। दादा साहेब फाल्के ने साल 1913 में 'राजा हरिशचंद्र' नामक पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म बनाई थी। वह एक जाने-माने निर्देशक ही नहीं बल्कि एक जाने-माने स्क्रीन राइटर और निर्माता थे। फाल्के साहेब ने अपने 19 साल के फिल्मी करियर में 27 शॉर्ट और 95 फिल्में बनाई हैं।
सिनेमा की बारीकियां
द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने के बाद दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने का ख्याल आया। इस फिल्म ने फाल्के साहेब पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि उन्होंने ठान लिया कि उनको भी फिल्म का निर्माण करना था। हांलाकि यह काम इतना आसान नहीं था। फिल्म बनाने के लिए वह एक दिन में 4-5 घंटे सिनेमा देखा करते थे। जिससे कि वह फिल्म मेकिंग की बारीकियां सीख सकें। उनकी पहली फिल्म का बजट 15 हजार रुपए था। जिसके लिए दादा साहेब ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था।
उस समय फिल्म बनाने वाले सभी जरूरी उपकरण सिर्फ इंग्लैंड में मिलते थे। इंग्लैंड जाने के लिए फाल्के साहेब ने अपने जीवन की सारी जमा-पूंजी लगी दी थी। पहली फिल्म बनाने के लिए उनको करीब 6 महीने का समय लग गया था। उनकी आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी।
मृत्यु
वहीं दादा साहेब फाल्के ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। वहीं उनके सम्मान में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जाता है। यह हिंदी सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है।