By अभिनय आकाश | Jun 09, 2022
चीन के महान दार्शनिक कंफ्यूशियस ने कहा था कि दोस्तों पर शक करने से अच्छा है दोस्तों के हाथों धोखा खा लेना। कंफ्यूशियस चीन में पैदा हुए थे और अगर वो आज भी जीवित होते तो चीन की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति देखकर उन्हें अपने शब्द शायद वापस लेने पड़ते। हमारे ऐसा कहने के पीछे की वजह है चीन की ऐसा कोई सगा नहीं जिसे हमने ठगा नहीं वाली नीति। ऐसा कोई देश नहीं है जिसे चीन ने धोखा नहीं दिया हो। कोई भी स्वाभिमानी देश बार-बार धोखा बर्दाश्त नहीं कर सकता। चीन ने एक बार नहीं बल्कि कई बार भारत को धोखा दिया है। इसलिए भारत ने चीन का इलाज ढ़ूढने के लिए कंफ्यूशियस नहीं बल्कि चाणक्य की नीति का पालन करने का फैसला किया है। चाणक्य की नीति कहती है कि दुश्मन की कमजोरी का पता लगाकर वहीं पर वार करना चाहिए। चीन की कमजोर नस है साउथ चाइना सी। वियतनाम साउथ चाइना सी के दायरे में आने वाला एक छोटा सा देश है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तीन दिन के वियतनाम के दौरे पर गए और वहां एक विजन डाक्यूमेंट पर भी साइन किया।
भारत 2025 तक पांच बिलियन डॉलर की डिफेंस एक्सोपर्ट टारगेट को हासिल करने की कवायद में लगा है। इसके लिए भारत की तरफ सभी साउथ ईस्ट एशियन नेशन, मिडिल ईस्ट देश और अफ्रीकन देश को अपनी रक्षा उपकरण को एक्सपोर्ट करने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में ब्रह्मोस मिसाइल को फिलिपिंस को एक्सपोर्ट किया गया था। अब वियतनाम की तरफ से भी भारत से डिफेंस डील को लेकर बातचीत हुई है। भारत और वियतनाम के बीच बहुआयामी संबंध दिनों दिन गहरे होते जा रहे हैं तथा नई दिशाओं में फैलते जा रहे हैं। कई तरीकों से ये भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी तथा वियतनाम की लुक वेस्ट पॉलिसीके बीच का एक अचूक कॉम्बिनेशन है। दोनों देशों का उद्देश्यर आने वाले दिनों में घनिष्ट सामरिक, आर्थिक एवं ऊर्जा संबंधों का निर्माण करना है।
वियतनाम ने पहली बार किसी देश के साथ किया ऐसा समझौता
भारत और वियतनाम ने 2030 तक रक्षा संबंधों को और व्यापक बनाने के लिए सैन्य 'लॉजिस्टिक सपोर्ट' करार किया है। इसके तहत दोनों देश एक-दूसरे के डिफेंस बेस का इस्तेमाल कर सकेंगे। 8 जून को इस करार पर दस्तखत किए गए। दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच दोनों देश के बीच इस समझौते को अहम माना जा रहा है। यह पहला ऐसा बड़ा समझौता है, जो वियतनाम ने किसी देश के साथ किया है। इस समझौते से दोनों देशों की सेना एक-दूसरे के प्रतिष्ठानों का इस्तेमाल मरम्मत और आपूर्ति संबंधी कार्यों के लिए कर पाएगी।
जॉइंट विजन स्टेटमेंट के जरिए नजदीक आएंगे भारत और वियतनाम
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वियतनाम के अपने समकक्ष जनरल फान वान गियांग से मुलाकात की। दोनों देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनने के बाद इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों मंत्रियों ने वियतनाम को दी गई 50 करोड़ डॉलर की रक्षा ऋण सीमा को जल्द अंतिम रूप देने पर भी सहमति जताई। भारत और वियतनाम के बीच हितों और समान चिंताओं के व्यापक अभिसरण के साथ समकालीन समय में सबसे भरोसेमंद संबंध बने हुए हैं। दोनों रक्षा मंत्रियों ने 2030 तक विविध क्षेत्रों में रक्षा संबंधों के अहम विस्तार के लिए साझा दृष्टिकोण दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। जो रक्षा सहयोग के दायरे और पैमाने को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगा।
क्यों अहम है ये करार?
ये करार बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि ये भारतीय युद्धपोतों और सैन्य विमानों को वियतनामी ठिकानों पर ईंधन भरने और आपूर्ति की तलाश करने की अनुमति देता है। दोनों देशों के युद्धपोत एयरक्राफ्ट इत्यादि एक दूसरे के बेस पर रुक सकेंगे। हॉल्ट और रिफ्यूलिंग जैसी सुविधाएं ले सकेंगे।
चीन और वियतनाम
1979 के युद्ध में वियतनाम चीन को बहुत मजबूत चुनौती दे चुका है। वियतनाम साउथ चाइना सी पर चीन के गैर कानूनी दावों का कड़ा विरोध करता रहा है। इसलिए वियतनाम चीन की आंखों में चुभने वाला बड़ा कांटा है। जब चीन ने फरवरी 1979 के अंतिम हफ्ते में वियतनामी लोगों को "सबक सिखाने" के लिए वियतनाम पर आक्रमण किया, तो चीनी लोगों ने, जैसा कि इन दिनों यूक्रेन में रूस की सोच है, सोचा कि वे आसानी से जीत हासिल कर सकते हैं और पहले से युद्ध में थके-हारे वियतनामी को रौंद सकते हैं। यह युद्ध इन दोनों के लिए महंगा पड़ा। जुझारू वियतनामी लोगों ने चीन आक्रमणकर्ताओं को जोरदार पटकनी दी, इसमें करीब 7 हजार से लेकर 26 हजार लोग मारे गए और करीब 37 हजार घायल हुए। चीन की यह एक ऐसी हार थी, जिसे वह लंबे वक्त तक नहीं भूला होगा और तब से अब तक वह वियतनाम को उकसाने की कोशिश करने से बचते रहा है।
-अभिनय आकाश