बीजिंग। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी टिप्पणियों में 1960 और 1970 के दशक में संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता और फिर सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए चीन को भारत के समर्थन को याद किया जो जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को विश्व निकाय में प्रतिबंधित करने की भारत की कोशिश में चीन की अड़ंगेबाजी के मद्देनजर खासा अहम हो गया है। पेकिंग यूनिवर्सिटी में अपने संबोधन में मुखर्जी ने 1950 में भारत और चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों की स्थापना की चर्चा की जो पिछले सात दशकों के दौरान मुश्किलों और चुनौतियों की कसौटी से गुजरे हैं।
राष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि यह काल चीन के अवाम के साथ अपनी दोस्ती की सुक्षा के लिए भारत के अवाम के संकल्प का प्रदर्शन करता है और यह साफ तौर पर टिका है। मुखर्जी ने कहा, ‘‘यह चीनी गणराज्य को दिसंबर 1949 में शीघ्र मान्यता देने, अप्रैल 1950 में हमारे कूटनीतिक संबंधों की स्थापना और संयुक्त राष्ट्र में चीनी गणराज्य के प्रवेश और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता में उसकी बहाली के लिए 1960 और 1970 दशक में भारत के लगातार जनसमर्थन में प्रदर्शित हुआ।’’
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इस काल के दौरान हमारे रिश्ते खासे विस्तार और विविधीकरण का साक्षी बने। हमारा साझा सभ्यतात्मक अतीत और हमारी साझी एशियाई अस्मिता इस आकांक्षा के केन्द्र में है।’’ मुखर्जी ने कहा कि भारत और चीन अपने अपने विकास लक्ष्य पाने की कोशिश कर रहे हैं और ‘‘हम दोनों दोस्ती में रहना चाहते हैं और एशियाई सदी का अपना साझा सपना पूरा करना चाहते हैं।’’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमारे दोनों देशों ने इस विवेकपूर्ण एवं न्यायपूर्ण रूख से खूब राजनीतिक एवं आर्थिक लाभ पाया।’’ मुखर्जी की ये टिप्पणियां अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतकंवादियों की सूची में डालने की भारत की कोशिश में चीन की अड़ंगेबाजी के मद्देनजर अहम हैं।