By नीरज कुमार दुबे | Jan 17, 2024
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने चीन यात्रा से लौटते ही पड़ोसी भारत को फरमान सुनाया कि 15 मार्च तक वह मालदीव से अपने सैनिकों को वापस बुला ले। उनके इस बयान से हंगामा खड़ा हो गया क्योंकि माना गया कि वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दबाव में आकर यह बात कह रहे हैं। हालांकि मुइज्जू शुरू से ही कहते रहे हैं कि भारत को अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहिए लेकिन चीन से लौटते ही जब उन्होंने 15 मार्च की डेडलाइन तय कर दी तो यह स्पष्ट हो गया कि चीन सामने नहीं आकर पर्दे के पीछे से खेल खेलना शुरू कर चुका है। मगर 15 मार्च की तारीख तय होने की बात सुन कर जब मालदीव के विपक्ष ने अपनी ही सरकार को घेरना शुरू किया और अपने चेले मुइज्जू को जिनपिंग ने घरेलू राजनीति में घिरता पाया तो चीन ने स्पष्टीकरण देने में जरा भी देर नहीं लगाई।
हम आपको बता दें कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा समर्थित अखबार चाइना डेली का कहना है कि मालदीव के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज्जू ने चीन के कहने पर भारत से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का आग्रह नहीं किया है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय प्रचार विभाग के स्वामित्व वाले अंग्रेजी भाषा के दैनिक समाचार पत्र चाइना डेली ने उन दावों को भी खारिज कर दिया है जिसमें नई दिल्ली स्थित एनडीटीवी द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट शामिल थी जिसमें कहा गया था कि यह सब चीन की माले में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की योजना का हिस्सा है। चाइना डेली ने लिखा, "ऐसा दावा करने वालों को ध्यान देना चाहिए कि मुइज्जू यह सुनिश्चित करने की कसम खाकर राष्ट्रपति बने थे कि देश की धरती पर कोई विदेशी सैन्य उपस्थिति नहीं होगी।" चाइना डेली ने हालांकि कहा है कि मालदीव की यह घोषणा साहसिक है क्योंकि उसे इस बात का भय नहीं है कि वह भारत को नाराज करके उसके टूरिस्टों को खो देगा। चाइन डेली उल्टा भारत पर आरोप लगाते हुए लिखता है कि मानवीय सहायता और चावल, सब्जियों तथा दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए मालदीव की भारत पर निर्भरता ने इस द्वीप राष्ट्र के प्रति भारत की "उपनिवेशवादी मानसिकता" को बढ़ावा दिया है। लेख में साथ ही दावा किया गया है कि चीन के साथ देश के सहयोग से मालदीव के लोगों की आजीविका में सुधार हुआ है और मुइज्जू की बीजिंग यात्रा के बाद यह सहयोग और गहरा होने वाला है।
लेकिन चीन को यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वह भले मुइज्जू के कंधे पर रख कर बंदूक चला रहा हो लेकिन भारत उसके इस रुख से पहले से ही अवगत था। भारत पहले दिन से समझ रहा था कि मुइज्जू चीन के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करेंगे। इसलिए जब मालदीव के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का न्यौता भारत समेत विभिन्न देशों को भेजा गया तो भारत सरकार ने विदेश मंत्री एस जयशंकर या विदेश राज्य मंत्रियों को वहां भेजने की बजाय केंद्रीय मंत्री और अरुणाचल प्रदेश से सांसद किरण रिजिजू को माले भेज दिया। उल्लेखनीय है कि चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है इसलिए जब भारत ने किरण रिजिजू को माले भेजा तो ड्रैगन जल भुन गया था लेकिन वह उस समय कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि रिजिजू चीन के नहीं बल्कि माले के अतिथि के रूप में वहां गये थे। लेकिन शी जिनपिंग ने भारत के इस कदम को दिल पर ले लिया था इसलिए जब मुइज्जू उनसे मिलने बीजिंग पहुँचे तो बिना उनके आग्रह के ही जिनपिंग ने ऐलान कर दिया कि मालदीव को दिये गये ऋण का पुनर्गठन किया जायेगा और आसान किश्तों में ऋण भुगतान करने का ऑफर भी उन्होंने मुइज्जू को दे दिया। हम आपको बता दें कि मालदीव पर चीन का 1.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर बकाया है। ऐसे में पहले से जारी किश्तों के भुगतान को आसान करने और नया कर्ज मिलने से मुइज्जू चीन के इशारों पर नाचने के लिए मजबूर हो गये हैं।
जहां तक मालदीव के साथ हालिया मतभेद पर भारत की प्रतिक्रिया की बात है तो आपको बता दें कि विदेश मंत्री जयशंकर ने इस पर कहा है कि हमने पिछले 10 वर्षों में बहुत सफलता के साथ मजबूत संबंध बनाने की कोशिश की है। जयशंकर ने कहा, ‘‘राजनीति में उतार-चढ़ाव चलते रहता है, लेकिन उस देश के लोगों में आम तौर पर भारत के प्रति अच्छी भावनाएं हैं और वे अच्छे संबंधों के महत्व को समझते हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत वहां सड़कों, बिजली पारेषण लाइन, ईंधन की आपूर्ति, व्यापार पहुंच प्रदान करने, निवेश में शामिल रहा है। विदेश मंत्री ने कहा कि ये इस बात को दिखाता है कि कोई रिश्ता कैसे विकसित होता है, हालांकि कभी-कभी चीजें सही रास्ते पर नहीं चलती हैं और इसे वापस वहां लाने के लिए लोगों को समझाना पड़ता है जहां इसे होना चाहिए।
यहां हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि मुइज्जू अभी तैश में आकर जो ऐलान कर रहे हैं कि वह भारत से वस्तुएं मंगवाने की बजाय उसे यूरोप या पश्चिमी देशों या कहीं और से मंगवाएंगे तो इसके बारे में उन्हें पता होना चाहिए कि वह ऐसा करके अपने देश का बड़ा आर्थिक नुकसान करेंगे। मसलन अगर कोई चीज भारत से उन्हें 20 रुपए की मिलती है तो वही चीज उन्हें यूरोप से मंगवाने पर 100 से 150 डॉलर तक खर्च करने पड़ सकते हैं। जाहिर है यदि ऐसा होता है तो मालदीव में महंगाई बढ़ेगी। साथ ही मालदीव के राष्ट्रपति के इस ऐलान से यह भी लगता है कि उन्हें भू-राजनीतिक स्थिति की भी ज्यादा जानकारी नहीं है। मालदीव के राष्ट्रपति को समझना होगा कि जरूरत का सामान हो या आपात मदद, भारत से वह तत्काल माले पहुँच सकता है जबकि कहीं और से मंगवाने पर उसे कई दिन और हफ्तों का समय लग सकता है।
-नीरज कुमार दुबे