अनुभूति की हरी भरी क्यारी (बाल कहानी)

By संतोष उत्सुक | Jun 26, 2024

अनुभूति अपनी किताबों में पेड़, पौधों, फूलों और सब्जियों बारे पढ़ने लगी तो उसकी दिलचस्पी मिटटी, खाद और पानी में बढ़ती गई। उसके पापा की ट्रांसफर सुंदरनगर हुई, उन्होंने रहने के लिए घर भी सुंदर और अच्छी जगह लिया। उनके घर के सामने दूर हरी भरी पहाड़ियां थी जिनके पीछे से सूर्य उदय होता था। जब कभी बारिश होती तो आती हुई दूर से ही दिख जाती।  


उसके घर के मुख्य दरवाज़े के सामने, थोड़ी दूर पर खाली जगह पड़ी थी जो एक लम्बी क्यारी जैसी लगती थी। वहां फूल पौधे लगाए जा सकते थे। उनके साथ वाले मकान में राजेंद्र अंकल रहते थे जिनके घर के सामने भी वैसी ही लम्बी क्यारी थी। जिसमें उन्होंने पौधे फूल लगा रखे थे। उन्होंने अपने घर में कई गमले भी रखे हुए थे।


अनुभूति के पापा को फूल पौधों बारे ज़्यादा पता नहीं था। नए शहर में उनके पास दफ्तर का काम अधिक होने के कारण समय भी कम रहता था। उन्हें इस बारे पता नहीं था कि कौन से मौसम में कौन सी सब्जी या फूल लगाते हैं। 

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राजेंद्र अंकल को इस बारे काफी ज्ञान था। वे जब भी अपनी क्यारी में कुछ बो रहे होते तो अनुभूति उनके पास जाकर खड़ी हो जाती और पूछती कि कौन सी सब्जी के बीज हैं। इन्हें कैसे बोते हैं। एक बीज से कितने पौधे निकलते हैं। वह उनसे दो चार बीज मांग कर ले आती और खुशी से उछलती हुई अपनी मम्मी को दिखाती और कहती, ‘देखो देखो, मम्मी इन बीजों से कितनी भिंडियां उग आएंगी। कद्दू के बीज से उगी बेल में कितने सारे बड़े बड़े कद्दू लगेंगे।’ 


उसकी मम्मी उसके इस लगाव को देखकर बहुत खुश होती। अनुभूति कहती, ‘मम्मी, मैं तो सुनकर हैरान हो गई हूं कि एक बीज से कितनी सब्ज़ी पैदा हो जाती है ।’ 


उसने अपने पापा को साफ़ कह दिया, ‘अगर आप मेरे लिए क्यारी नहीं खोदोगे तो मैं खुद खोद लूंगी।’ स्नेहवश पापा ने क्यारी खोदकर, उसमें खाद डालकर, बीज लगाने के लिए तैयार कर दी। माली को बुलाकर चारों तरफ बांस की सुरक्षा बाड़ भी लगवा दी। अनुभूति बहुत खुश और उत्साहित हो गई थी। पापा ने उसे टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन और  गोभी की पौध मंगाकर दी। 


अनुभूति ने अपने बड़े भैया आभास को साथ लेकर नन्हे सुकोमल हाथों से, छोटी छोटी क्यारियों में सारे पौधे लगा दिए। कुछ दिन बाद उसकी मम्मी ने उन्हीं क्यारियों में धनिया, पुदीना, लहसुन भी लगवा दिया।

 

छोटी सी बगिया में इतना कुछ लगा देखकर पापा ने उसे समझाया कि इतनी कम जगह में इतना कुछ अच्छी तरह से कैसे उग पाएगा तो अनुभूति ने कहा, ‘पापा, मैं यह देखना चाहती हूं कि बीज कैसे उगते हैं, पौधों में फूल कैसे खिलते हैं, सब्जियां कैसे लगती हैं।’ अब फूलों, सब्जियों, पौधों में उसके पापा की दिलचस्पी भी बढ़ने लगी। अनुभूति की मम्मी ने पापा से कहा, ‘कितनी अच्छी बात है कि हमारी बेटी खुद ही प्रकृति से जुड़ रही है।’ अपने इस शौक के कारण अनुभूति ने पढने में कोई कमी नहीं की। नियमित गुड़ाई, खाद, पानी और लगातार देखभाल के कारण बगिया लहलहाने लगी। उनमें फूल खिले और सब्जियां लगने लगी। अनुभूति ने अपनी क्यारी में उगे टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च और बैंगन की सब्जी पड़ोसियों को भी खिलाई। 


अब तो अनुभूति जब भी परिवार के साथ घूमने जाती तो नया गमला और पौधा ज़रूर लेकर लाती। उसके सहपाठी नन्ही बगिया देखते तो उसकी खूब तारीफ़ करते तो वह और प्रोत्साहित होती। कई बार रविवार को पापा खुद उससे कहते, अनु चलें पौधे लेने नर्सरी में, तो वह अपनी मम्मी और भैया को भी साथ ले जाती। बहुत कम समय में उनका पूरा परिवार ही प्रकृति प्रेमी हो गया और उनके घर में हरियाली बढ़ती गई। 


- संतोष उत्सुक

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