70 साल बाद भारत में चीतों की वापसी तो हो गयी लेकिन अब क्या? सरकार के सामने आने वाली है ये बड़ी चुनौतियां?

By रेनू तिवारी | Sep 18, 2022

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क (केएनपी) में आठ चीतों को छोड़ा। घरेलू स्तर पर विलुप्त होने का सामना करने के 70 साल बाद बड़ी बिल्लियों के आगमन पर उत्साह के बीच, यहां उनकी वापसी और उनके सर्वाइलव के लिए सामने आने वाली चुनौतियों और चिंताओं के बारे में बताया गया है। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के आसपास के इलाकों के ग्रामीणों में कई तरह की चिंताएं हैं, जिनमें जमीन अधिग्रहण का डर और चीतों का खौफ भी शामिल है। राधेश्याम यादव एक विक्रेता केएनपी से 15 किमी दूर एक दुकान चलाता है ने इस बात पर अपनी चिंता जताई है कि अगर चीतें यहां तक आ गये तो हमारी जान को भी खतरा हैं।

कुनो नेशनल पार्क के आसपास बसे गांव के लोगों से बात करने पर पता चलता हैं कि लोग चीते के काफी डरते है। लंबे समय से जंगली जानवरों का इतना खौफ इन इलाकों में नहीं था लेकिन अब चीते आ गये हैं इससे जहां पर्यटन और वन विभाग के लिए जश्न का महौल है वहीं इस ग्रामीणों के सामने नयी समस्या खड़ी हो गयी हैं। मानव-पशु संघर्ष से बचने के लिए चीतों को बाड़ों में रखा जाता है। चीतों को विशेष बाड़ों में रिहा करने के बाद, पीएम मोदी ने 'चीता मित्रों' से कहा कि वे मांसाहारियों की रक्षा करें और सुनिश्चित करें कि मानव-पशु संघर्ष से बचा जाए। अपनी बातचीत के दौरान, प्रधान मंत्री ने उनसे कहा था कि जब तक चीते अपने नए निवास स्थान के लिए अभ्यस्त नहीं हो जाते, तब तक वे स्वयं सहित किसी को भी केएनपी के अंदर नहीं जाने दें। जब तक चीते नए वातावरण से परिचित नहीं हो जाते, तब तक पार्क आगंतुकों के लिए बंद रहेगा।

चीतों को जीवित रखने की चुनौती

इस परियोजना की सफलता, निश्चित रूप से, एक समान वातावरण में चीतों के अस्तित्व पर निर्भर करती है, लेकिन यह वातावरण नामीबिया से अलग है। केंद्र ने परियोजना के पहले चरण की सफलता के लिए अपना मानदंड निर्धारित किया है, जिसमें पहले वर्ष के लिए पेश किए गए चीतों के कम से कम 50 प्रतिशत जीवित रहने और कुनो में चीतों के लिए एक होम रेंज की स्थापना शामिल है ताकि वे सफलतापूर्वक प्रजनन कर सकें। सरकार यह सुनिश्चित करने की भी योजना बना रही है कि कुछ जंगली चीता शावक कम से कम एक वर्ष से अधिक समय तक जीवित रहें और पहली पीढ़ी सफलतापूर्वक प्रजनन करे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दोबारा लाए गए चीते जीवित नहीं रहते हैं या पांच साल में प्रजनन करने में विफल रहते हैं तो परियोजना को असफल माना जाएगा। 1947 में महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा प्रजातियों की आखिरी संतान को गोली मारने के बाद 1952 में एशियाई चीता को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। बड़ी बिल्लियों को एक अंतरमहाद्वीपीय स्थानान्तरण परियोजना के हिस्से के रूप में नामीबिया से भारत लाया गया था।

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आगे की क्या है प्लानिंग?

संगरोध बाड़े में एक महीने बिताने के बाद, आठ चीतों - पांच मादा, तीन नर - को राष्ट्रीय उद्यान के भीतर एक अनुकूल बाड़े में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जहां वे जंगल में रिहा होने से पहले चार महीने तक रहेंगे। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार आठ बड़ी बिल्लियों को निर्धारित आहार के अनुसार भैंस का मांस खिलाया जाएगा, यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान रखा जाएगा कि वे मनुष्यों के साथ कम से कम बातचीत करें। 

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चीतों को वर्तमान में उनके स्वास्थ्य की निगरानी के लिए अस्थायी संगरोध बाड़ों में रखा गया है। उन्हें उनकी सामाजिक इकाइयों के अनुसार रखा गया है: भाइयों की एक जोड़ी को एक बाड़े में रखा गया है जबकि एक जोड़ी बहनों को दूसरे में रखा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चार चीतों को अलग-अलग बोमा या बाड़ों में रखा गया है। स्वास्थ्य के अलावा उनकी शिकार क्षमता पर भी अगले कुछ महीनों में नजर रखी जाएगी। इसके लिए, कुनो नेशनल पार्क के अधिकारियों को बड़ी बिल्लियों के लिए एक निरंतर शिकार आधार सुनिश्चित करना होगा और कोई अवैध शिकार न हो। कुनो राष्ट्रीय उद्यान को चीतों के लिए अपने अच्छे शिकार आधार के कारण विलुप्त जानवर को पेश करने के लिए इष्टतम स्थान के रूप में चुना गया था। पार्क में चिंकारा, चित्तीदार हिरण और काले हिरण की अच्छी आबादी है, जिस पर चीते जंगली में शिकार कर सकते हैं और बढ़ सकते हैं। यहां, बड़ी बिल्लियों के लिए सुविधाएं विकसित की गई हैं, कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया है, और तेंदुए जैसे बड़े शिकारियों को दूर ले जाया गया है।

चीतों के लिए खास व्यवस्था 

भारत में अफ्रीकी चीतों के नए बसेरे मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में 20 से 25 चीतों को रखने के लिए पर्याप्त जगह और उनके भोजन के लिए शिकार उपलब्ध है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। नामीबिया से विशेष बी747 विमान से लाए गए आठ चीतों को केएनपी में 17 सितंबर को छोड़ा गया, जिससे यह उद्यान पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गया है। इन आठ चीतों में से पांच मादा और तीन नर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने 1952 में भारत में विलुप्त हुए चीतों की आबादी को फिर से बसाने की परियोजना के तहत नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को शनिवार सुबह केएनपी के विशेष बाड़ों में छोड़ा। मोदी ने तीन चीते छोड़े, जबकि शेष पांच चीतों को अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने छोड़ा। विशेष बाड़े को छह हिस्सों में विभाजित किया गया है। दो हिस्सों में दो-दो चीते रखे गये हैं, जबकि अन्य चार में एक-एक चीता रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार एक महीने की पृथक-वास अवधि खत्म होने के बाद उन्हें जंगल में स्वच्छंद विचरण के लिये आजाद किया जायेगा।

चीतों की आबादी को पुनर्जीवित करने की परियोजना से जुड़े मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जे एस चौहान ने विश्वास व्यक्त किया कि यह योजना बहुत सफल होगी। उन्होंने प्रदेश के पन्ना बाघ अभयारण्य का उदाहरण देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश ने वन्यजीव संरक्षण और पशु प्रजातियों के पुनरुद्धार की कला की कला में महारत हासिल कर ली हैं। उन्होंने कहा कि 2009 में पन्ना बाघ अभयारण्य बाघ विहीन हो गया था, लेकिन बाद में इसमें सफलतापूर्वक बाघ पुनरुद्धार कार्यक्रम शुरु किया गया, जिसके परिणामस्वरुप अब यहां 65 से 70 बाघ एवं उनके शावक हैं। अधिकारियों ने बताया कि नामीबिया से चीते की पहली खेप मिलने के बाद भारत अब दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीतों को आयात करेगा और इसके लिए प्रयास जारी हैं। चौहान ने कहा, केएनपी 750 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है और इसमें 20 से 25 चीतों को रखने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध है। इसके अलावा, उनके भोजन के लिए वहां प्रर्याप्त मात्रा में शिकार उपलब्ध हैं, जिनमें हिरण, चीतल, जंगली सूअर, नील गाय एवं चिंकारे शामिल हैं।’’ यह पूछे जाने पर कि कुछ विशेषज्ञों की राय है कि इए चीते को बसाने के लिए कम से कम 100 वर्ग किलोमीटर की जरूरत होती है, तो इस पर उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण सही नहीं है। हालांकि, चौहान ने आशंका जताई कि चीते उनके लिए निर्धारित क्षेत्र से भटक सकते हैं, लेकिन मानव-पशु संघर्ष की कोई संभावना नहीं है।

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