By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 20, 2020
मुंबई। बम्बई उच्च न्यायालय को बताया गया है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए गरीब और जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए 20 प्रतिशत बिस्तरों को आरक्षित किये जाने के बावजूद यहां एक धर्मार्थ अस्पताल ने केवल इस तरह के चार मरीजों का इलाज किया है। न्यायालय को बताया गया कि इस अस्पताल ने तीन मरीजों का इलाज मई में और एक अन्य का इलाज जून में किया। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ये मरीज कोरोना वायरस से संक्रमित थे। राज्य के धर्मादाय (चैरिटी) आयुक्त ने के जे सोमैया अस्पताल की उस कथित घटना की जांच के बाद एक हलफनामे के जरिये इस बात का खुलासा किया। अस्पताल पर कोविड-19 के कुछ ‘गरीब’ मरीजों से 12.5 लाख रुपये लिये जाने का आरोप लगाया गया है। हालांकि, हलफनामे में यह भी कहा गया है कि उपनगरीय बांद्रा में एक एसआरए इमारत के रहने वाले सात याचिकाकर्ताओं ने अपनी आय की स्थिति का खुलासा नहीं किया है और न ही कोई दस्तावेजी साक्ष्य दिया है जिससे उनका मुफ्त में इलाज हो सके।
याचिकाकर्ताओं ने अस्पताल के बिलों की वापसी की मांग की है। जांच के दौरान अस्पताल ने दलील दी कि सरकारी आदेश में कोविड-19 के मरीजों के लिए खर्च की सीमा तय की गई है और 20 प्रतिशत बिस्तर आरक्षित किये गये है और गरीबों के लिए मुफ्त इलाज की पेशकश की गई है। पिछले सप्ताह सात निवासियों ने उच्च न्यायालय का रूख कर आरोप लगाया था कि अस्पताल ने इलाज के लिए 12.5 लाख रुपये वसूल लिये और धमकी दी कि यदि पैसा नहीं दिया तो उन्हें छुट्टी नहीं दी जायेगी। न्यायमूर्ति आर डी धानुका और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने तब राज्य चैरिटी आयुक्त को मामले की जांच करने का निर्देश दिया था। आयुक्त के अनुसार अस्पताल ने मई के अंत तक लॉकडाउन की अवधि के दौरान इस योजना के तहत तीन मरीजों का इलाज किया जबकि इस तरह केएक मरीज का इलाज जून में किया गया। हलफनामे में कहा गया है कि हालांकि इस अवधि के दौरान अस्पताल द्वारा किसी मरीज का इलाज से इनकार करने के बारे में कोई शिकायत नहीं है। अदालत के इस मामले में 23 जून को सुनवाई किये जाने की संभावना है।