बजटजी की बैठक (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 07, 2023

बजटजी सामान्य व्यक्तित्व के मालिक नहीं हैं। उनका साम्राज्य विराट है। इतने दशकों से उन्होंने, एक बरस में सिर्फ एक बार ही सार्वजनिक बैठक की है। उनकी इस सामाजिक बैठक में छोटा मोटा बंदा या योजना आने की सोच भी नहीं सकता। बड़े से बड़े विशाल क्षेत्रफल वाले मैदान टाइप बंदे भी बहुत मुश्किल से उनकी इस बैठक में शामिल हो पाते हैं। आम तौर पर उनकी घोषणाएं शासक प्रिय होती हैं। अपने जलवे को हलवे के रूप में पकाकर और खास बंदों को खिलाकर, माननीय बजटजी लोक लुभावन आंकड़ों के वस्त्र पहनकर आते हैं और हर किसी के दिमाग पर पसर जाते हैं। इतने पसर जाते हैं कि कुछ समझ नहीं आता।  


बजटजी की शान बढ़ाऊ योजनाओं का निर्माण करने वाले प्रसिद्ध अर्थ शास्त्री होते हैं तो मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा करने वाले भी प्रसिद्ध अर्थ करामाती होते हैं और तो और दिमाग से उनकी आलोचना करने वाले भी समझदार अनर्थ शास्त्री होते हैं। प्रशंसा करने वाले अर्थशास्त्री, शासक वर्ग की राजनीतिक पार्टी के अभिनेता होते हैं और आलोचक, विरोधी विपक्षी पार्टी के चरित्र अभिनेता। बजटजी ने व्यक्ति रूप धारण कर शासक वर्ग से पूछा कैसा लगा हमारा इस बार का कार्यक्रम तो उन्होंने कहा बुनियादी ढांचा ऊंचा उठाया गया। इससे पर्यावरण की बोलती बंद हो जाएगी लेकिन समाज और राष्ट्र का विकास ज़रूरी है। विकास होगा तो छोटा मोटा विनाश भी होगा। 

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ज्यादा से ज़्यादा एप होंगे तो नौजवान व्यस्त और पस्त रहेंगे। ओल्ड पॉलिटिकल व्हिकल हटाना मुश्किल काम है, इनके बदले पुरानी गाड़ियां हटा देंगे। शासकीय राजनीति ने आकांक्षाओं और संकल्पों की नई ईंटों से बजटजी की तारीफ़ में खूब पुल बना दिए। उन्होंने कहा हमारी सरकार का बजट बहुत स्वादिष्ट, सरल और आकर्षक है। हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम इसकी भूरी ही नहीं लाल, पीली व हरी प्रशंसा करें। विपक्ष कुछ कहे तो उनके आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब दें। उन्होंने बजटजी को मील का पत्थर, क्रांतिकारी, शानदार, देश और विश्व की उम्मीदें पूरी करने वाला, समावेशी, विकासोन्मुखी व ऐतिहासिक बताया। इस बीच यह राज़ खुल गया कि ऐसा बजट होने से कई किस्म के फायदे मिलते हैं।  


वैचारिक असंतुलन बनाने के लिए विपक्ष वालों को भी न्योता गया था। उनकी बारी आने तक वे आग बबूला हो चुके थे। उन्होंने बजट को अच्छा बताना ही नहीं था क्यूंकि यह उनकी सरकार ने नहीं बनाया था। उन्होंने बजटजी को गुस्से में, बजट ही कहा। निर्मम बजट, चुनावी बजट, बेरोजगारी महंगाई बढाने वाला, दिशाहीन, जन विरोधी, अवसरवादी, पच्चीस साल बाद की बात करता बजट बताया। जब उनसे पूछा गया कि भविष्य में चुनाव होने वाले हैं शासक पार्टी की सरकार ने कुछ तत्व तो स्वादिष्ट भी डाले होंगे। बजट के हलवे को शुद्ध देसी घी में बड़े गौरवशाली ढंग से पकाया गया है। कुछ विपक्षी नेताओं ने बहुत गुस्से में कहा, बिलकुल इस बजट में कई अच्छी बातें और योजनाएं हैं लेकिन हम अपनी पार्टीलाइन और मौजूदा स्थिति और अपने वर्तमान विरोध प्रकट करु चरित्र के कारण इसकी तारीफ़ में एक शब्द भी नहीं बोल सकते। बोलना चाहें भी तब भी नहीं बोल सकते। हम विपक्ष में हैं और अभी निकट महीनों में चुनाव भी नहीं हैं जो दलबदल का मौक़ा जेब में आने वाला हो। अगर हमारी सरकार बनेगी तो बजट पकाएगी, तब हम उसकी खूब तारीफ़ करेंगे। हो सकता हैं हम हलवे की परम्परा को बदल कर बिरयानी पकाना शुरू कर दें। इस बीच उनकी बातों को अनसुना कर बजटजी तारीफ़ करने वालों के साथ चियर्ज़ करने चले गए थे। बजटजी की बैठक का खाना वाकई स्वादिष्ट था।   


- संतोष उत्सुक

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