By अंकित सिंह | Jan 07, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी, 2025 को कथित पेपर लीक को लेकर बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा आयोजित 70वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (प्रारंभिक) को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को राहत के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि सर्वोच्च न्यायालय प्रथम दृष्टया अदालत के रूप में काम नहीं कर सकता है, खासकर जब उच्च न्यायालय में कोई पूर्व याचिका दायर नहीं की गई हो।
मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह उचित और अधिक शीघ्र होगा कि याचिकाकर्ता अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका के माध्यम से पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाए। इसलिए हम वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं। आनंद लीगल एड फोरम ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका में परीक्षा रद्द करने और कथित कदाचार की जांच के लिए एक विशेष जांच बोर्ड के गठन की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के वकील अभिजीत आनंद ने राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में पेपर लीक के बार-बार आने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए कहा, "यह एक दिनचर्या बन गई है, जिस तरह से पेपर लीक हो रहे हैं।"
यह विवाद 13 दिसंबर, 2024 को 900 केंद्रों पर आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओं से उपजा है, जिसमें 5 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने भाग लिया था। आरोप लगे कि प्रश्न कोचिंग संस्थानों के मॉडल पेपर के समान थे, जिसके बाद जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, जिन्होंने 2 जनवरी, 2025 को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी। प्रदर्शनकारियों ने बापू परीक्षा परिसर से केवल 12,000 उम्मीदवारों के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित करने के बीपीएससी के फैसले की आलोचना की है, जहां कथित लीक हुई थी। वे निष्पक्षता और पारदर्शिता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए पूरी परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं।