जॉन बोल्टन की किताब में भारत का भी जिक्र, खोले डोनाल्ड ट्रंप के कई राज़

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 23, 2020

वाशिंगटन। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जॉन बोल्टन ने ईरान से तेल के आयात पर भारत के रुख का समर्थन करने को लेकर अमेरिकी विदेशी विभाग की आलोचना की है। साथ ही, उन्होंने यह दावा भी किया है कि उस वक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के मामले में हमदर्दी नहीं दिखाई थी। पूर्व एनएसए की बहुचर्चित पुस्तक ‘‘द रूम वेयर इट हैपन्ड : ए व्हाइट हाउस मेमोयर’’ मंगलवार को दुकानों पर आ गई। इस पुस्तक में कहीं-कहीं भारत का भी इस संदर्भ में जिक्र है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सभी देशों को ईरान से तेल का आयात घटा कर शून्य पर लाने को कह रहे हैं। साथ ही, पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ने का भी इसमें जिक्र आया है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने पिछले साल भारत और अन्य देशों से कहा था कि वे चार नवंबर (2019) तक ईरान से तेल का आयात करना पूरी तरह से समाप्त कर दें, अन्यथा उन्हें (ऐसा नहीं करने वाले देशों को) अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने और ईरान पर कठोर प्रतिबंध लगाने के एक साल बाद यह फैसला लिया गया। ईरान, भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है। इस मामले में इराक और सऊदी अरब के बाद उसका स्थान आता है। ईरान ने अप्रैल 2017 और जनवरी 2018 के बीच 1.84 करोड़ टन कच्चे तेल की आपूर्ति की।

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बोल्टन (71) ने अपनी पुस्तक में लिखा है, ‘‘विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के साथ एक टेलीफोन वार्ता में, ट्रंप यह कहते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति हमदर्दी प्रदर्शित करते नहीं दिखे कि, ‘वह इस संकट से निकल जाएंगे। ’ मुझे इसी तरह की एक और बातचीत का स्मरण हो रहा है , जिसमें छूट से जुड़े फैसलों को सहयोगी देशों को बताने में ट्रंप की रूचि नहीं दिख रही थी। ’’ उल्लेखनीय है कि अमेरिकी न्याय विभाग ने इस पुस्तक के लोकार्पण को रोकने के लिये अदालत का रुख किया था। ट्रंप प्रशासन ने यह आशंका जताई थी कि इससे गोपनीय जानकारी का खुलासा हो सकता है। हालांकि, एक संघीय न्यायाधीश ने बीते शनिवार को आदेश जारी किया कि बोल्टन अपनी पुस्तक का प्रकाशन कर सकते हैं। बोल्टन ने लिखा है, ‘‘एक विदेशी नेता की वाशिंगटन यात्रा को देखते हुए ट्रंप ने एक सुझाव दिया था: ‘उनके यहां आने से पहले यह कर लो और फिर कह देना कि मैं (ट्रंप) इस बारे में कुछ नहीं जानता,’ तथा ‘इसे सप्ताह के शुरू में ही कर लो। मैं इसके आसपास कहीं नहीं होना चाहता।’’ इस विदेशी नेता ने भी छूट समाप्ति का विषय उठाया था।

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बोल्टन ने यह भी कहा कि वह (ट्रंप) नहीं चाहते थे कि विदेश विभाग के अधिकारी ईरान से तेल के आयात पर भारत का समर्थन या बचाव करें। उन्होंने लिखा है, ‘‘सबसे खराब मामला भारत का था, जो अन्य देशों की तरह ही वैश्विक बाजार से कम कीमत पर ईरानी तेल खरीद रहा था क्योंकि ईरान तेल बेचने को लेकर बहुत व्यग्र था। भारत ने शिकायत भरे लहजे में कहा था कि यह सिर्फ इसलिए नुकसानदेह नहीं होगा कि उसे नये आपूर्तिकर्ताओं को ढूंढना होगा, बल्कि इसलिए भी कि नये स्रोत बाजार की मौजूदा कीमतों पर जोर देंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत के इस तर्क को समझा जा सकता है लेकिन यह समझ आने लायक नहीं है कि अमेरिकी अधिकारियों ने यह बात हमदर्दी के साथ दोहराई। बोल्टन ने पुलवामा हमले के बाद भारत-पाक संबंधों में तनाव का संभवत: जिक्र करते हुए लिखा है कि कई घंटों के फोन कॉल के बाद यह संकट खत्म हुआ। उन्होंने पुस्तक में लिखा है, ‘‘कई घंटे के फोन कॉल के बाद संकट खत्म हुआ, शायद इसलिए कि सचमुच में ऐसा कुछ नहीं था। लेकिन जब दो परमाणु शक्तियां अपनी सैन्य क्षमताओं को हरकत में लाती हैं, तब इसे नजरअंदाज नहीं करने में ही भलाई है। उस वक्त किसी को परवाह नहीं थी, लेकिन मेरे लिए यह बात स्पष्ट थी : यह वही हुआ, जब लोग ईरान और उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिशों को गंभीरता से नहीं लेते हैं।’’ पिछले साल 14 फरवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के हमले में सीआरपीएफ के 40 कर्मी शहीद हो गये थे। बोल्टन ने अफगानिस्तान पर अध्याय में इस बात का जिक्र किया है कि तालिबान के साथ बातचीत के दौरान ट्रंप कश्मीर पर चर्चा करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करना चाहते थे। हालांकि, पूर्व एनएसए ने बातचीत के संदर्भ का जिक्र नहीं किया है। उन्होंने लिखा है कि ट्रंप ने कहा था, ‘‘तब, कश्मीर पर जाएंगे, ‘मैं सोमवार को मोदी से बात करना चाहता हूं।’ व्यापार के कारण हमारे पास अपार शक्ति है।

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