गुप्त चंदे में बीजेपी नं-1, एक कतार में कांग्रेस समेत अन्य, Electoral Bond की लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, एक्सपर्ट की राय, यहां जानें

By अभिनय आकाश | Nov 01, 2023

चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए त्योहार सरीखे होते हैं। इसमें बेहतर कल के लिए आम आदमी की आकांक्षाएं और उम्मीदें जुड़ी होती हैं। लेकिन इसी चुनावी प्रक्रिया में कुछ ऐसी चिताएं भी जुड़ी हैं जो बीते सात दशकों से लोकतंत्र के इस पर्व के जायके को थोड़ा कड़वा कर देती है। पालिटिकल फंडिग और खर्च का सवाल भी चिताओं की फेहरिस्त का हिस्सा है। यूं तो चुनाव में चंदा देना आम बात है। लेकिन ये चंदा कौन दे रहा है? कितना दे रहा है, किसे दे रहा है और क्यों दे रहा है? ये सवाल हर चुनाव में उठते रहे हैं। इलेक्ट्रॉरल बांड का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चुनावी बांड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे के ब्योरे की जांच करेगा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से समीक्षा के लिए चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों के वित्तपोषण का विवरण तैयार करने को कहा। बॉन्ड के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान याची के वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि इसमें पारदर्शिता नहीं है। इससे लोगों के जानने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। चुनाव आयोग तक को पता नहीं होता। यह जानने का लोगों को मौलिक अधिकार है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इलेक्ट्रॉरल बांड है क्या, BJP-कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को कितना मिलता है चंदा? पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट और एक्सपर्ट की क्या राय है? 

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आखिर इलेक्टोरल बांड लाने कि क्यों पड़ी जरुरत और उसके उद्देश्य के बारे में जानने से पहले पूर्व वित्त मंत्री अरूण जेटली के 2018 के बजट भाषण के कुछ अंश पर नजर डालते हैं।

बजट 2017 के दौरान संसद में तत्तकालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि अभी तक चुनावी चंदा में कोई पारदर्शिता नहीं है। अगर नगद चंदा दिया जाता है तो धन का स्रोत, देने वाले और किसे दिया जा रहा है। कोई नहीं जान पाता है। अब चंदा देने वाला बैंक एकाउंट के जरिए ही चुनावी बांड खरीद सकेगा और राजनीतिक दल भी चुनाव आयोग को आयकर दाखिल करते हुए ये बताएंगे कि उन्हें कितना चंदा चुनावी बांड के जरिए मिला है।  सरकार की माने तो इन बांड का मकसद राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाना है। केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रंजिस्टर्ड हैं। उन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए डाले गए वोटों में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किए हों, वे ही चुनावी बांड हासिल करने के पात्र हैं। साल 2018 में इसके शुरू होने के बाद हर साल करीब दो बार इसको जारी किया जाता है। अक्टूबर महीने की शुरुआत में 11वें इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए गए। शुरू में उन्हें लेकर जहां ठंडा रुख दिखा था। वहीं इस साल चुनावों से पहले तक उनकी अच्छी खरीद हुई। चुनावी बांड योजना को अंग्रेजी में इलेक्टोरल बॉन्डस स्कीम कहते हैं। ये भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कलकत्ता और गुवाहाटी समेत 29 शाखाओं में मिलते हैं। 

BJP-कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को कितना मिलता है चंदा

बीजेपी: चुनावी बांड योजना बनने के बाद से पांच वर्षों में बांड के माध्यम से दिए गए धन का आधे से अधिक (57 प्रतिशत) भाजपा के पास गया है। चुनाव आयोग को दिए खुलासे के मुताबिक, पार्टी को 2017 से 2022 के बीच बॉन्ड के जरिए 5,271.97 करोड़ रुपये मिले। मार्च 2022 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भाजपा को चुनावी बांड में 1,033 करोड़ रुपये, 2021 में 22.38 करोड़ रुपये, 2020 में 2,555 करोड़ रुपये और 2019 में 1,450 करोड़ रुपये मिले। पार्टी ने वित्तीय वर्ष के लिए प्राप्तियों में 210 करोड़ रुपये की भी घोषणा की। 

कांग्रेस: ​​कांग्रेस को 2022 तक बेचे गए कुल चुनावी बांड का 952 करोड़ रुपये या 10 प्रतिशत प्राप्त हुआ। कांग्रेस को वित्तीय वर्ष 2022 में चुनावी बांड से 253 करोड़ रुपये, 2021 में 10 करोड़ रुपये, 2020 में 317 करोड़ रुपये मिले। 2019 में 383 करोड़ रुपये मिले। 

टीएमसी: तृणमूल कांग्रेस, जो 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है, ने पूरे वर्षों में कुल 767.88 करोड़ रुपये के योगदान की घोषणा की है, जो भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर है। मार्च 2022 में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष में तृणमूल कांग्रेस को 528 करोड़ रुपये, 2021 में 42 करोड़ रुपये, 2020 में 100 करोड़ रुपये और 2019 में 97 करोड़ रुपये मिले।

बीजू जनता दल: ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने 2018-2019 और 2021-2022 के बीच चुनावी बांड में 622 करोड़ रुपये की घोषणा की। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से राज्य में प्रभुत्व रखने वाली पार्टी को योजना के शुरुआती वर्ष में चुनावी बांड के माध्यम से कोई दान नहीं मिला।

डीएमके: द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), जो 2021 से तमिलनाडु में सत्ता में है, ने 2019-2020 से 2021-2022 तक तीन वर्षों में 431.50 करोड़ रुपये के दान की घोषणा की। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले दो वित्तीय वर्षों में पार्टी द्वारा कोई चुनावी बांड योगदान की सूचना नहीं दी गई थी।

आम आदमी पार्टी (आप): इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी ने पूरे वर्षों में "चुनावी बांड/चुनावी ट्रस्ट" योगदान में 48.83 करोड़ रुपये इकट्ठा करने की घोषणा की है। हालाँकि, इस बात का कोई संकेत नहीं है कि उस राशि का कितना हिस्सा केवल बांड से प्राप्त हुआ है।

जदयू: बिहार में सत्ता में रही जदयू ने 2019-2020 से 2021-2022 तक कुल 24.40 करोड़ रुपये के चुनावी बांड की घोषणा की।

राकांपा: राकांपा ने गैर-सत्तारूढ़ दलों के बीच चुनावी बांड के माध्यम से सबसे अधिक 51.5 करोड़ रुपये का योगदान अर्जित किया। 

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चुनावी बांड चंदे में बढ़ोतरी

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार, राष्ट्रीय पार्टियों ने चुनावी बांड दान में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव किया, जिसमें वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच 743 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों को कॉर्पोरेट चंदा केवल 48 प्रतिशत बढ़ा। राज्य पार्टियों को भी अपने चंदे का एक बड़ा हिस्सा चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त हुआ। चुनावी बांड योजना 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश की गई थी और 2018 में लागू की गई थी। यह व्यक्तियों और संस्थाओं के लिए दाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के साधन के रूप में कार्य करता है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में बांड जारी करता है। इस साल जुलाई में एडीआर ने कहा था कि 2016-17 और 2021-22 के बीच राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त सभी दान का आधे से अधिक हिस्सा चुनावी बांड के माध्यम से था और भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में अधिक धन प्राप्त हुआ। इसमें कहा गया है कि 2016-17 और 2021-22 के बीच सात राष्ट्रीय दलों और 24 राज्य दलों को लगभग 16,437 करोड़ रुपये का दान प्राप्त हुआ। इसमें से 9,188.35 करोड़ रुपये लगभग 56 प्रतिशत - चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त हुए। पहले चुनावी बॉन्ड के जरिये सियासी दलों तक जो धन आता था उसे वो गुप्त रख सकती थीं. लेकिन पिछले दिनों इस पर विवाद हुआ. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को इलेक्शन कमीशन के समक्ष इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देनी होगी. इसके साथ दलों को बैंक डीटेल्स भी देना होगा। अदालत ने कहा है कि राजनीतिक दल,आयोग को एक सील बंद लिफाफे में सारी जानकारी दें। 

क्या फैसले से तय होगी चुनावी फंडिंग की दशा

इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू से ही विवादों में है। केंद्र ने 29 जनवरी 2018 को इसे लागू किया था । तर्क था कि इसके जरिए डोनेशन से चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार होगा। अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर तमाम खामियां गिनाई गई हैं। अदालत में चुनाव आयोग ने भी बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के कारण राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग की पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच इसका परीक्षण कर रही है और उम्मीद है कि आम चुनाव से पहले इस पर सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला आ जाए। जो भी फैसला होगा वह आने वाले दिनों में चुनावी फंडिंग की दिशा और दशा तय करने में अहम होगा। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि चंदा लेने का ये तरीका लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। वेस्टमिंस्टर विश्विद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेमोक्रेसी की डायरेक्टर निताशा कौल फाइनेंशियल टाइम्स के लिए लिखे एक लेख में बताया कि भारत में चुनाव किस हद तक महंगा होता है। वो आंकड़ों के हवाले से लिखती हैं कि 2019 के आम चुनाव में 2014 की तुलना में दोगुना खर्च हुआ था। भारत का आखिरी आम चुनाव 2016 के यूएस प्रेसिडेंट इलेक्शन से ज्यादा महंगा था। इससे पता चलता है कि चुनाव में रुपयों का बोलबाला बढ़ा है। 


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