रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा में फिलहाल उनके भाई पशुपति पारस की अगुवाई में 5 सांसदों ने चिराग पासवान के नेतृत्व से बगावत कर दी है। माना जा रहा है कि इस बगावत के पीछे नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का बड़ा हाथ माना जा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और जदयू को जो नुकसान हुआ वह चिराग पासवान की ही वजह से हुआ। चिराग पासवान नीतीश कुमार को खुली चुनौती देते रहें। यही कारण है कि नतीजों के बाद जदयू चिराग पासवान की पार्टी लोजपा में सेंधमारी की कोशिश करने लगी। वर्तमान परिदृश्य में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का क्या होगा? चिराग पासवान की राजनीतिक कैरियर पर इसका कितना असर पड़ेगा? भाजपा चिराग पासवान को कितना मदद कर पाएगी?
इन सबके बीच एक बात तो सच है कि नीतीश कुमार और चिराग पासवान की लड़ाई में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ रहा है। भाजपा वर्तमान परिस्थिति में शांत रहकर सब कुछ देख ही रही है। लेकिन यह भी सच है कि चिराग पासवान को इतनी आसानी से कोई भी दल इग्नोर नहीं कर पाएगी। इसका कारण यह है कि हाल में ही बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हमने देखा कि किस तरह से चिराग पासवान को अच्छा खासा समर्थन हासिल हुआ था। वर्तमान में जदयू को छोड़कर सभी दल चिराग पासवान को अपने पाले में करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा समस्या भाजपा के लिए है। नीतीश के कारण भाजपा ना चिराग के समर्थन में कुछ बोल सकती है ना उनकी मदद कर सकती है। अगर नीतीश के दबाव में चिराग पासवान को भाजपा छोड़ दें तो गठबंधन में जदयू का दबदबा बढ़ने लगेगा। दूसरी ओर अगर चिराग पासवान को भाजपा छोड़ती है तो लालू यादव और उनकी पार्टी को मजबूत होने का भी मौका मिल सकता है।
भाजपा अभी यही चाहती है कि वह नीतीश और चिराग दोनों को एक साथ लेकर चलें। लेकिन नीतीश और चिराग के बीच में खाई इतनी बड़ी हो गई है कि उसे पाट पाना भाजपा के लिए फिलहाल मुश्किल होता दिखाई दे रहा है। चिराग की वजह से नीतीश कुमार को लगभग 40 सीटों का नुकसान हुआ। लेकिन भले ही पासवान की पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली लेकिन चिराग ने यह साबित जरूर कर दिया कि वह सक्षम हैं और किसी का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं। भाजपा जानती है कि अगर वह चिराग पासवान को छोड़ती है तो राजद उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश करेगा जिससे कि वह मजबूत हो जाएगा। राजद और कांग्रेस की ओर से तो फिलहाल पासवान को ऑफर भी मिलने लगे हैं। अगर चिराग आरजेडी के पाले में चले जाते हैं तो तेजस्वी के सीएम बनने का रास्ता आसान हो जाएगा और भाजपा के लिए मुश्किल हो जाएगा।
भले ही नीतीश कुमार के दबाव में भाजपा चिराग को साथ लेकर ना चल पाई हो, उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल न कर पाई हो लेकिन आने वाले दिनों में भाजपा की रणनीति का हिस्सा रह सकते हैं। भाजपा फिलहाल चुपचाप मजबूर होकर वर्तमान परिस्थिति को देख रही है और समझने की कोशिश कर रही है। साथ ही साथ अपने पुराने सहयोगियों को बरकरार रखने की भी कोशिश में है और नए सहयोगियों के तलाशने का भी जिम्मा उठाया जा रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक ये भी दावा करते हैं कि 5 सांसदों के बगावत से इन्हें कुछ खास फायदा होने वाला नहीं है। पांचों सांसद जीतकर संसद भवन पहुंचे उस में भाजपा-लोजपा गठबंधन का बड़ा योगदान है। बिहार में रामविलास पासवान के बाद चिराग पासवान को ही लोग जानते हैं ना कि पशुपति पारस को।