मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस अपने ही लोगों की नाराजगी का कर रही सामना

By अनुराग गुप्ता | Oct 01, 2020

भोपाल। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों अपनी पूरी ताकत लगाने में जुटे हुए हैं और दोनों ही पार्टियां जीत के दावे कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने तो दावा कर दिया है कि वह उपचुनाव की सीटों पर जीत हासिल कर प्रदेश की सत्ता में लौटने वाले हैं। जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए यह साख बचाने वाला चुनाव है। 

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प्रदेश के दोनों बड़े दल कांग्रेस और भाजपा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल भितरघात की है। क्योंकि 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा 25 सीटों पर दल-बदल के सहारे है तो वहीं कांग्रेस ने भी दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ऐसे में दोनों दलों को विपक्षियों से ज्यादा अपनों के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक भविष्य को लेकर संशय में पुराने नेता

कांग्रेस के पूर्व नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा भाजपा का दामन थाम लेने की वजह से प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई थी और लॉकडाउन से पहले शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए थे। ऐसे में प्रदेश में होने वाले उपचुनाव में भाजपा में ज्यादातर उम्मीदवार दल-बदल वाले हैं। अगर हम तीन सीटों को छोड़ दें तो 25 सीटों पर कांग्रेस से भाजपा में आए उम्मीदवारों को टिकट मिलने की संभावना जताई जा रही है। 

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इन नेताओं की संभावित दावेदारी देखते हुए भाजपा के कई नेता अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतिंत हैं और वह कई मंचों पर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं। तो वहीं भाजपा के कुछ नेताओं ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। जिन्हें कमलनाथ ने उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। इनमें ग्वालियर पूर्व से सतीश सिकरवार और सुरखी विधानसभा से पारुल साहू को उम्मीवार बनाया गया है।

डैमेज कंट्रोल करने में जुटी भाजपा

उपचुनाव के मद्देनजर भाजपा अपने नाराज साथियों को मनाने के लिए डैमेज कंट्रोल करने में जुटी हुई है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि सांवेर के पूर्व विधायक राजेश सोनकर को पार्टी ने इंदौर ग्रामीण का जिला अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। जबकि गोहद के लालसिंह आर्य को राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की नई टीम में स्थान दिया गया है। 

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अपनों को नाराजगी झेल रही कांग्रेस

सिर्फ भाजपा ही नहीं है जिसे अपनो की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश का दूसरा दल यानी की कांग्रेस का भी कुछ यही हाल है। कांग्रेस ने उम्मीदवारों को दो सूची जारी कर दी है। पहली सूची में 15 और दूसरी में 9 उम्मीदवारों के नाम से पर्दा उठा चुकी है। इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार दूसरी पार्टी से हैं तो कुछ को पहली बार चुनाव लड़ने का मौका मिला है। जिसकी वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज चल रहे हैं।

कांग्रेस ने करैरा विधानसभा सीट से प्रागीलाल जाटव को उम्मीदवार घोषित किया है। जिसके चलते पूर्व विधायक शकुंतला खटीक ने पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा के खेमे में चली गईं। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र में कांग्रेस कार्यकर्ता बाहरी के आ जाने से नाराज हैं तो किसी क्षेत्र में दूसरी पार्टी के नेताओं से। 

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मंत्रियों की प्रतिष्ठा लगी दाव पर

कांग्रेस से भाजपा में आए 25 पूर्व विधायकों में से 14 को मंत्री पद से नवाजा गया था और यह वो लोग हैं जो बिना विधायक बने ही मंत्री पद संभाल रहे हैं। ऐसे में उपचुनाव में इन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। इनमें गोविंद सिंह राजपूत, तुलसी सिलावट, इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, हरदीप सिंह डंग, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, बिसाहूलाल सिंह, एदल सिंह कंसाना, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, ओपीएस भदौरिया और गिर्राज दंडोतिया शामिल हैं।

उपचुनाव के नतीजे 10 नवंबर को घोषित होंगे जिसके बाद प्रदेश में 230 विधानसभा सदस्य हो जाएंगे। किसी भी दल को बहुमत के लिए 116 के जादुई आंकड़े की जरूरत होगी। मौजूदा समय में भाजपा के पास सबसे ज्यादा 107, कांग्रेस के पास 88, बसपा के पास 2, सपा के पास 1 और 4 निर्दलीय विधायक हैं। अब 10 नवंबर को ही यह पता चलेगा कि कमलनाथ का दावा सही साबित होता है या फिर शिवराज सरकार अपनी साख बचाने में कामयाब होती है।

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