हमारे एक मित्र मिले, उन्होंने हैट लगाया हुआ था। हमने कहा अंग्रेज़ लग रहे हो। बोले यार, गंजे को धूप ज़्यादा लगती है वैसे मुझे थोड़ा सा अंग्रेज़ होना अच्छा लगता है। ज़्यादा बढ़िया तब हो, जब ज़्यादा अंग्रेज़ जैसे हो जाएं। हमने कहा कैसे, वह बोले वैसे आम आदमी का अंग्रेज़ होना बहुत मुश्किल है। हम गलत नक्षत्रों में पैदा हुए, संकीर्ण माहौल में कितने ही आकार और प्रकार के संस्कारों में पले बढ़े और जी रहे हैं। वास्तव में हम कल्पते रहते हैं कि मन पसंद पहनें, अनुशासन में रहें, सब कुछ खाएं पिएं, तरह तरह की वाइन, विह्स्की, बीयर का मज़ा लें लेकिन ले नहीं सकते। कपड़ों के रंग तक संभल संभल कर पहनने पड़ते हैं।
मुझे लगा इनकी बात काफी ठीक है। हम अंग्रेजों को कोसते रहते हैं कि अंग्रेज़ चले गए, अंग्रेज़ी छोड़ गए लेकिन क्या हमारा काम अंग्रेज़ी के बिना चल सकता है। क्या हम स्कूलों में हिंदी को अंग्रेज़ी में घोलकर नहीं पढ़ा रहे। मित्र बोले, क्या सोच रहे हो यही न कि अंग्रेजों ने हमारे ऊपर राज किया, यहां की दौलत, बहुमूल्य वस्तुएं ले गए। मैंने कहा, उन्होंने हमें जी भर कर लूटा तो मित्र बोले वो गोरे अंग्रेज़ चले गए अब कौन सा कमी है भूरे, काले, सफ़ेदपोश लूट ही रहे हैं। यह नए किस्म, नए रंग के अंग्रेज़ ही तो हैं। हां इनका स्तर अंग्रेजों को छू भी नहीं सकता। जो इमारतें, पुल या रेल अंग्रेज़ बनाकर गए हैं इतने साल बाद भी बढ़िया हालत में हैं।
हमारे यहां तो पुल निर्माण के दौरान ही लूट लिए जाते हैं। पुरानी इमारतों में पानी संग्रहित करने का प्रावधान है लेकिन हम पानी बचाने के प्रस्ताव सूखे में बहा देते हैं। हम थोड़ा सा अंग्रेज़ होते तो ऐसा न होता। सभी किस्म का खाना खाने में हिचकिचाहट न होती, अपनी पत्नी, बच्चों यहां तक कि काम करने वालों को पूरा सम्मान देने की प्रवृति होती। कपड़े पहनने के मामले में बचपन से खुलापन मिलता। कुछ भी खाना पीना बुरा न समझा जाता। यह करना, वह कहना गलत न माना जाता। हमारे यहां तो असमंजस में ज़िंदगी बीत जाती है।
अंग्रेजों जैसी सोच होती तो हर काम को उच्च स्तर का करते। अंग्रेज़ी बढ़िया आती और हिंदी सीखते तो हिंदी वालों से बेहतर सीखते। अपने और देश के पुरातत्व से प्यार करते। मूर्तियों की नहीं इंसान की कद्र करते। ज़िंदगी का आनंद लेना सीख जाते लेकिन यह सब तभी संभव रहता अगर थोड़ा सा अंग्रेज़ हो जाते। वह बात दीगर है कि उनकी कुछ अच्छी बातें अब भी सीख लें तो बात बन सकती है।
- संतोष उत्सुक