By अभिनय आकाश | Oct 25, 2021
कट्टरता किसी एक संप्रदाय के लोगों की अमानत नहीं है। ये हर तरफ़ समान मात्रा में पाई जाती है। धर्म के नाम पर अधर्म करने वाले जमकर उत्पात मचा रहे हैं, लेकिन कहां? बांग्लादेश में। हंमारे पड़ोस में एक देश है बांग्लादेश जिसकी कुछ दिनों से आलोचना हो रही है। कश्मीर की तरह ही बांग्लादेश में भी हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की चिंगाड़ी नजर आई। हिन्दू मंदिरों, पंडालों और मूर्तियों की तोड़फोड़ से शुरू हुआ मामला हत्या और आगजनी तक पहुंच गया। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा ने दुनिया को इस्लामी कट्टरता के प्रति नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के युद्ध ने साबित कर दिया कि 'मुस्लिम एकता' एक गलत धारणा थी, भारत का विभाजन एक गलत फैसला था और लोगों की भाषा और संस्कृति धर्म और जाति से ऊपर थी। लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों ने बंगाली हिंदुओं, मुसलमानों, बौद्धों और ईसाइयों को एकजुट किया। हालाँकि, स्वतंत्रता के 50 वर्षों के भीतर ही बांग्लादेश का धर्मनिरपेक्षता के ताना-बाना डगमगाने लगा है। बांग्लादेश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसी कोई चीज नहीं है और लोकतंत्र धरातल पर पहुंच गया है। ऐसे में आज समझेंगे बांग्वादेश में हालिया हिंसा की पूरी कहानी क्या है? हिन्दुओं पर हो रहे हमलों के पीछे कौन लोग हैं, बांग्लादेश सरकार इस मसले पर क्या कदम उठा रही है और साथ ही जानेंगे इसके धर्मनिरपेक्षता से अल्लाह के प्रति आस्था का सफर तक जाने की कहानी के बारे में।
कट्टरपंथियों नफरत फैलाई
मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में इन दिनों एक झूठी अफवाह की आड़ लेकर बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों, मंदिरों और हिंदुओं के घरों पर जैसे भीषण हमले किए गए। पहले दिन से ये अफवाह फैलाई गई कि हिन्दुओं ने कुरान का अपमान किया। हैरानी तो तब हुई जब इसके खिलाफ भारत से भी आवाजे उठी। बिना सबूतों के और बिना सोचे-समझे बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा तक शुरू हो गई। पश्चिम बंगाल से भी कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं के खिलाफ नफरत भड़काई गई। यहां तक कहा गया कि कुरान के अपमान की सजा मौत ही होगी और इसी बहाने से हिन्दू देवी-देवताओं और पूजा पद्धतियों के खिलाफ फिक्रे भी कसे।
मुस्लिम युवक ने रखी कुरान
बाद में इसको लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ। पता चला कि दुर्गा पंडाल में कुरान रखने की साजिश किसी हिन्दू ने नहीं बल्कि एक मुस्लिम युवक ने रची थी। पुलिस ने बताया कि इकबाल ने 13 अक्टूबर को कुरान की प्रति को दुर्गा पूजा पंडाल में रखा। पुलिस ने दुर्गा पूजा पंडाल के बाहर लगाए गए निगरानी कैमरे से इकबाल की पहचान की है। लेकिन बांग्लादेश के इस्लामिक कट्टरपंथियों ने दुकाने लूटी गई मंदिरों और घरों को निशाना बनाया। इसे बांग्लादेश के इतिहास का सबसे बुरा सांप्रदायिक दंगा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बांग्लादेश में हिंसा तो थम गई है लेकिन इसके साथ ही सेक्युलरिज्म की बहस को एक बार फिर से हवा दे दिया है। बांग्लादेश को एक मॉर्डन मुस्लिम मैजोरिटी देश कहा जाता है। इसकी इस्लाम के प्रति आध्यात्मिक प्रतिबद्धता है ।वहीं कल्चर बंगाली है।
बांग्लादेश का गठन
बांग्लादेश में हिन्दुओँ पर हमले का पुराना इतिहास रहा है। 1970 के चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल हुई थी। लेकिन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान और चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने शेख मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तान की कमान सौंपने से इनकार कर दिया। इस रवैये से नाराज शेख मुजीबुर्रहमान ने 7 मार्च 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। जब पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू किया तब उनका पहला निशाना हिन्दू ही थे। 1971 ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ क्रिएशन ऑफ बांग्लादेश पलायन पर एक बात दर्ज की है। उन्होंने लिखा है कि ऑपरेशन के शुरुआती दिनों में पूर्वी पाकिस्तान से पलायन करने वाले 80 फीसदी लोग हिन्दू थे। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्च लाइट को हरी झंडी दिखाई थी। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवाद के आंदोलन को कुचलने की शुरुआत की गई थी। आंदोलन के प्रणेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया था।अत्याचार के शिकार लोग भागकर भारत आने लगे। तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ से पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई करने को कहा लेकिन मानेकश़ॉ ने इससे साफ इनकार कर दिया। जिसका फायदा ये हुआ कि भारतीय सेना को युद्ध में उतरने के लिए तैयारी करने का अतिरिक्त समय मिल गया। नतीजा जब पाकिस्तान ने हवाई हमला किया तो उसका मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी की जा चुकी थी। 16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान ने 92 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर की वो तस्वीरें इतिहास के पन्नों में एक अहम अध्याय की तरह दर्ज हैं। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान का नया नामकरण हुआ और बांग्लादेश के नाम से एक आजाद मुल्क अस्तित्व में आया। भारत बांग्लादेश को मान्यता देने वाला पहला देश था।
सेक्युलरिज्म को संविधान में जगह
भारत इस नए मुल्क के निर्माण का सबसे बड़ा सूत्रधार था। लड़ाई खत्म होने के बाद शेख मुजीब की आवामी लीग ने सरकार बनाई। शेख मुजीब आजाद बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने। 1971 में जब देश बना तो उसने खुद को एक सेक्युलर देश के रूप में उद्घोषित किया। ये साउथ एशिया का पहला मुस्लिम बहुसंख्यक देश था जिसने सेक्यूलरिज्म को अपने संविधान में जगह दी। शेख मुजीब कहा करते थे मुस्लिम अपने धर्म का पालन करे। हिन्दू, बौद्ध, ईसाई अपने धर्म का पलान करे। हम सिर्फ धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल का विरोध करेंगे। शेख मुजीब को प्यार से लोग बंग बंधु भी करते थे। बंग बंधु को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। बंग बंधु की सोच कई मुस्लिम कट्टरपंथिों को पसंद नहीं आई। अगस्त 1975 में तख्ता पलट की साजिश रची गई। तख्तापलट में बंग बंधु और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या कर दी गई।
इस्लाम को स्टेट रिलीजन घोषित किया गया
1977 में मेजर जनरल जियाउर रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने। 1978 में सेक्यूलरिज्म को संविधान से हटा दिया गया। एक नया फ्रेज अल्लाह में पूर्ण विश्वास और आस्था को जगह दी। इसके साथ ही जियाउर रहमान ने जमात-ए-इस्लामी पर लगा बैन भी हटा दिया। जमात ए इस्लामी ने बांग्लादेश लिबरेशन वॉर के दौरान पाक आर्मी का साथ दिया था। ये संगठन बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ था इसके साथ ही वो शरीया कानून का हिमायती भी था। इन्हीं वजहों से शेख मुजीब सरकार द्वारा इस संगठन पर बैन लगाया गया था। रहमान ने बैन हटाया तो संगठन ने अपने नाम को बदलकर जमात ए इस्लामी बांग्लादेश कर लिया लेकिन काम और चरित्र वही रहा। फिर जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई। लेकिन उन्होंने कट्टरका का बीजारोपण बांग्लादेश में कर दिया था। । रहमान के बाद सत्ता में आए सैन्य तानाशाह हुसैन मुहम्मद इरशाद ने इस्लामी कट्टरता को मजबूत करने की दिशा में एक और कदम बढ़ा दिया। 1988 में हुसैन मोहम्मद इरशाद एक कदम आगे बढ़ाते हुए इस्लाम को स्टेट रिलीजन घोषित कर दिया। दोनों ही शासक ने बांग्लादेश को पाकिस्तान की तर्ज पर ही एक धार्मिक शासन वाले देश में तब्दिल करने के लिए काम किया। 1991 में बांग्लादेश में लोकतंत्र की वापसी हुई और सत्ता जियाउर रहमान की विधवा खालिदा को मिली। उनके शासन के दौरान हिन्दुओं पर हमलों में खूब बढोतरी हुई। 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हमले बढ़ गए। ढाकेश्वरी मंदिर पर हमला हुआ। दुकानों में लूटपाट की गई। भारत ए और बांग्लादेश ए के बीच उसी दिन मैच चल रहा था और तभी पांच हजार से ज्यादा की संख्या में उन्मादी भीड़ हाथों में हथियार लिए मैदान स्टेडियम में घुस गई। पुलिस ने काफी मशक्त के बाद दंगाईयों को रोकने में सफलता पाई। हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा 1993 तक चलती रही।
बांग्लादेश में ईशनिंदा जैसे कानून बनाने का समर्थन
इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश की स्थापना फजलुल करीम ने इस्लामी शासन आंदोलन के रूप में की थी। वर्ष 2008 में इसे इसका नया नाम दिया गया। इसकी छात्र शाखा भी है। इस संगठन ने बांग्लादेश में ईशनिंदा कानून जैसे काले कानून को बनाए जाने का समर्थन किया था। हज और मुहम्मद की आलोचना करने पर पूर्व मंत्री अब्दुल लतीफ सिद्दकी के खिलाफ प्रदर्शन किया था। यह संगठन रोहिंग्या मुस्लिमों का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र से उठा चुका है। वर्ष 2017 में इसके कार्यकर्ता पीएम आवास को घेर चुके हैं। वे एक नास्तिक ब्लॉगर की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे। बांग्लादेश के संसदीय चुनाव में इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश पार्टी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। बांग्लादेश में इस कट्टरपंथी पार्टी के समर्थकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ये लोग भारत में कैब और एनआरसी लागू किए जाने का कड़ा विरोध कर रहे हैं।
मदरसों की बढ़ती संख्या और अल्पसंख्य समुदाय पर हमले
संविधान संशोधनों के बाद बांग्लादेश में मदरसों की बाढ़ आ गई। 1970 से 2008 के बीच बांग्लादेस में मदरसों की संख्या 2700 से बढ़कर 12152 हो गए। देश की शिाक्षा नीति में भी इसका असर देखने को मिला। साल 2017 में कई बंगाली अध्याय को बेहद ही खामोशी के साथ किताबों से हटा दिया गया। उनकी जगह इस्लामी पाठ को जोड़ा गया। कट्टरपंथी समूहों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमन के कार्य जारी रखे। ह्यूमन राइट ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2019 के बीच अल्पसंख्य समुदाय से जुड़े 1500 लोगों पर हमले की घटनाएं सामने आई।
ज्यादातर शिकार बनने वाले हिन्दू समुदाय से जुड़े लोग ही थे। इसके अलावा ईसाई और बौद्ध धर्म के लोग भी निशाने पर रहे। यही नहीं शिया और अहमदिया मुसलमानों को भी नहीं बख्शा गया।
बांग्लादेश में घटते अल्पसंख्यक
1951 सेंसस के डाटा के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान में 22 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी। 2011 में ये संख्या 8.5 प्रतिशत पर चली गई। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि धार्मिक कट्टरता का बढ़ना भी उन कारणों में से एक है। 1999 से 2000 के बीच ये कट्टरवाद आतंकवाद में तब्दील हो गई और देश में कई आतंकी हमले हुए। अफगानिस्तान युद्ध से बांग्लादेशियों की वापसी के लिए ये सब किया गया। ये एक तरह का कट्टरता से भरा सोच के साथ इस मंशा के साथ उठाया गया कदम था कि वो बांग्लादेश को भी अफगानिस्तान की तरह कर देंगे। समाज और राजनीति को भी कट्टरता में बदल देंगे। आलम ये है कि बांग्लादेश में शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता होगा, जब किसी हिन्दू महिला के साथ कट्टरवादी बदतमीजी न करते हों। आपको याद होगा कि तस्लीमा नसरीन ने भी अपने उपन्यास 'लज्जा' में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की दर्दनाक स्थिति को ही बयां किया। मुस्लिम कट्टरपंथी इसलिए ही उनकी जान के दुश्मन हो गए थे। उसी विरोध के कारण तस्लीमा को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था।
मूल संविधान की बहाली के वादे से सत्ता में आईं हसीना
शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी 1972 के संविधान की बहाली का वादा करके जनवरी 2009 में सत्ता में लौटी थी। शेख हसीना के नेतृत्व में बनी सरकार ने 2013 में 15वें संविधान संशोधन के जरिए इस दिशा में आंशिक पहल भी की, लेकिन इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म बनाए रखा। उसने धार्मिक पाठ्यक्रम 'कौमी दव्रा' को भी मास्टर डिग्री के बराबर मान्यता दी। इतना ही नहीं, हसीना सरकार धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वालों को दंडित करने के लिए डिजिटल सिक्यॉरिटी एक्ट, 2018 भी ले आई। उसने 560 'आदर्श मस्जिदों' का निर्माण शुरू करवाया और इस्लामिक दलों के गठबंधन 'हिफाजत' की मांग पर स्कूली किताबों में भी बदलाव किए। हालांकि मौजूदा सरकार द्वारा बांग्लादेश में बहुसंख्यक की धार्मिक कट्टरता पर नरम रुख अपनाने का परिणाम सबके सामने है।
क्या दोबारा लागू होगा 1972 का संविधान
बांग्लादेश के सूचना राज्य मंत्री मुराद हसन ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश है जो राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के बनाए 1972 के संविधान की तरफ वापस लौटेगा। बांग्लादेश धार्मिक कट्टपंथियों का अड्डा नहीं बन सकता है। मुराद हसन ने कहा कि हमारी रगों में स्वतंत्रता सेनानियों का खून बह रहा है। किसी भी कीमत पर हमें 1972 के संविधान पर वापस लौटना होगा। उन्होंने कहा कि मैं बंगबंधु के संविधान पर वापस लौटने के लिए संसद में बोलूंगा। इस दौरान उन्होंने यहां तक कह दिया कि बांग्लादेश का धर्म इस्लाम नहीं है।
कट्टरपंथी समूह धमकी दे रहे
बांग्लादेश को फिर से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किए जाने की हलचल से कट्टरपंथी तबका भी चौकन्ना हो गया है। बहुसंख्यक मुस्लिम तबके के कट्टरपंथियों के विभिन्न समूह धमकी दे रहे हैं कि बांग्लादेश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किए जाने की पहल की गई तो पूरा देश जल उठेगा। हसीना सरकार को भरोसा है कि अगर कट्टरपंथियों ने उपद्रव मचाया तो उसे दबाने में भारत से मदद मिलेगी।
-अभिनय आकाश