बचपन से ही सच्‍चाई पर अडिग रहते थे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

By निधि अविनाश | Aug 01, 2022

देश की आजादी में कई लोगों ने अपनी पूरी जान लगा दी, हालांकि, कुछ ऐसे थे जिन्होंने आजादी की चिंगारी जन तक पहुंचाया और एक आजाद भारत का सपना दिखाया। उन्हीं में से एक थे बाल गंगाधर तिलक। अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने वालों में तिलक का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। तिलक ने अपना सारा जीवन समाज की कुरीतियों को दुर करने और जागरुकता फैलाने में लगा दिया। जानकारी के लिए बता दें कि तिलक का प्रारंभिक नाम केशव गंगाधर था। बाद में उन्हें लोकमान्य तिलक के नाम से बुलाया जाने लगा। 


जीवन का शुरूआती सफर

बाल गंगाधर का जन्म रत्नागिरी के कोंकण जिले में हुआ था। उनके पिता एक स्कूली शिक्षक थे। उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की। कॉलेज खत्म करने के बाद उन्होंने साल 1805 की शुरूआत में दो राष्ट्रवादी समाचार पत्रों की स्थापना की। ये अखबार थे अंग्रेजी भाषा के महरत्ता और मराठी भाषा में केसरी।

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किसी के सामने झुकना नहीं था पसंद

बचपन से ही तिलक सच्चाई की ओर चलना पसंद करते थे। अनुशासन का पालन करने वाले तिलक अपने दोस्तों के भी काफी करीब थे। इसी से संबधित एक किस्सा आज हम आपको बताने जा रहे है। एक दिन उनकी कक्षा के छात्रों ने मूंगफली के छिलके फर्श पर फेंक दिए थे। टीचर जब कक्षा में आए तो वह गंदा क्लासरुम देखकर काफी नाराज हुए। उन दिनों टीचर काफी कठोर हुआ करते थे। जब उन्होंने पूछा कि क्लास में गंदगी किसने फैलाई तो किसी भी छात्रों ने अपनी गलती नहीं स्वीकारी। इस पर टीचर ने सारी कक्षा के छात्रों को दंड दिया और अपनी छड़ी निकाल ली। टीचर हर छात्रों के हाथों पर बेंत जड़ने लगे।जब तिलक की बारी आई तो उन्होंने अपना हाथ आगे नहीं किया। तिलक ने हाथ आगे न करते हुए कहा कि, ‘मैंने मूंगफली नहीं खाई है और में बेंत नहीं खाऊंगा। जब टीचर ने तिलक से पूछा कि तुमने नहीं खाया है तो सच-सच उसका नाम बताओ की किसने मूंगफली खाई?  इस पर तिलक ने जवाब देते हुए कहा कि मैं किसी का नाम नहीं लूंगा और न ही में बेंत खाउंगा। इस बात पर टीचर भड़क गया और तिलक की शिकायत प्रिंसिपल से कर दी।

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जब ये शिकायत तिलक के घर पर पहुंची तो पिताजी को स्कूल आना पड़ा। स्कूल में पिता ने बताया कि तिलक के पास पैसे ही नहीं थे तो वह मूंगफली कैसे खरीदता। इसके बाद तिलक को स्कूल से निकाल दिया। लेकिन तिलक काफी अडिग और सच का साथ देने वालों में से एक थे और जब उन्हें स्कूल से निकाला गया तो उन्होंने इस बात को स्वीकार नहीं किया। इस पर तिलक ने आजीवन अन्याय का डटकर विरोध किया। तिलक ने कभी भी झूठ और अन्याय के आगे अपना सर नहीं झुकाया और इसी कारण से उन्हें काफी कष्ट झेलने पड़े।


- निधि अविनाश

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