अयोध्या की उन गलियों से गुजरते हुए जहां इन आँखों ने नब्बे बयानबे में हिंदू नेताओं की हिंदू पुलिस द्वारा रक्तरंजित कारसेवक संहार देखा था आज भी सिहरन होती है, आँखें विस्फारित हो कर राम शरद कोठारी के चित्र देखती हैं उनके अधरों से निकले जय सिया राम के स्वर सुनायी देते हैं। मैं यहाँ आते ही मणिरामदास छावनी केप्रमुख, राम आंदोलन के महा सेनापति पूज्य महंत नृत्य गोपाल दास जी से मिला, आशीर्वाद लिया। वे पहचान गये। रामभद्राचार्य जी, पूज्य जयदेव राम जी, सालासर बालाजी के सिद्धेश्वर महाराज, सर्व कार्य प्रमुख चंपत राय, और संपूर्ण राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र के महिमावान प्रमुख संत पूज्य गोविंद गिरि जी महाराज से तो रात्रि साढ़े दस बजे भेंट हुई। रात दिन काम और अविश्राम जीवन। राम जी की शक्ति है।
स्वामी गोविंद गिरि ने ठीक कहा- इस जन्मभूमि को लेने में हिंदुओं को पाँच सौ साल क्यों लगे ? क्योंकि हिंदू के मानस में राष्ट्र तथा धर्म का समन्वय नहीं था। शिवाजी के विरूद्ध औरंगज़ेब के लिये शिव भक्त मिर्जा राजा जय सिंह लड़े, शिवाजी के तेरह सगे संबंधी उनके विरुद्ध मुगल सेना में थे। गत सौ वर्षों में पहली बार विवेकानंद तथा डॉ हेडगेवार ने देश के साथ धर्म का चैतन्य जागृत किया तो राम मंदिर बना। अब काशी और मथुरा सहित अन्य भग्न काराबद्ध आक्रांत मंदिर वापस लिए बिना हिंदू रुकेगा नहीं।
अयोध्या का हर कण हर कोना सज गया है। रातों रात सड़के नयी बन गयीं, दुकानें चौड़ीं हो गयीं, दस दस फीट पीछे कर दीं, आश्रम मठ नये कलेवर नयी सज्जा, नये निर्माण से अलंकृत हो गये, अयोध्या महाराज का महल अयोध्याकालीन महल लगने लगा, राम जन्मभूमि पथ स्वर्गानुकूल भव्यता ले रहा है। सब कुछ स्वप्न वत्। चिकोटी काटें तब विश्वास हो। हर कोने चौहारे पर आंध्र से लेकर पंजाब दुर्ग्यआणा मंदिर के मुफ़्त चाय भोजन के 24 घंटा लंगर चल रहे हैं। हजारों स्त्री पुरुष गोद में बच्चे हाथों में कपड़ों कंबल के थैले लिये चले आ रहें हैं। राम लला से मिलने आयें हैं राम लला व्यवस्था करेंगे।
जिन लोगों ने, हिंदू तथा मुस्लिम दोनों ने राम जन्मभूमि का सत्य जानते हुये भी अंधा अपशब्दयुक्त विरोध किया उनको हिंदुओं से हाथ जोड़कर क्षमा याचना करनी चाहिए। उन्होंने अपने ही रक्त अपने पूर्वजों अपने देश अपने देवताओं अपनी संस्कृति के प्रवाह से विश्वासघात किया। अब स्मृति -जागृत भारत अपने मन और काया पर आघात नहीं सहेगा। स्मृति हर मनुष्य और राष्ट्र के जीवन हेतु अनिवार्य तत्व है। स्मृति हीन देश या व्यक्ति शून्य होता है, भविष्यविहीन और दिशाहीन। अयोध्या में मंदिर नहीं भारत राष्ट्र की स्मृति के जागरण द्वारा नवीन राष्ट्रीय अभ्युदय के शक्ति स्रोत की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है।
हर काल में हिंदू का राष्ट्र और धर्म के समन्वय से युक्त जागरण कठिन, प्रायः असंभव और जटिल रहा है। ढाई हज़ार मील दूर अनुल्लेखनीय कस्बे गजनी से एक लुटेरा महमूद प्रभास पाटन आता है, सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर तोड़ता है, इतनी बड़ी संख्या में हिंदू स्त्री पुरुष दास बनाकर ले जाता है कि बग़दाद में ग़ुलामों का मूल्य गिर गया, लूट का सामान अलग ले जाता है। मार्ग में सब हिंदू खड़े हुए?
सुहेलदेव अपवाद हैं। बाक़ी ? कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का जय सोमनाथ उपन्यास पढ़ा है? उन्होंने उच्च ब्राह्मण कुलोत्पन्न शिव राशि के चरित्र का उल्लेख किया है जो ग़ज़नवी को हिंदू संघ की परमार राजाओं के नेतृत्व में खड़ी सेनाओं से बचाकर सोमनाथ मंदिर के भीतर ले आया था. जीती बाज़ी हिंदू हार गये।
चार सौ वर्ष गोवा पर क्रूर व अमानुषिक अत्याचारों के लिए कुख्यात पुर्तगालियों ने लगातार शासन किया। पणजी में आज भी एक हाथ कातरो खंभ है जहां उन हिन्दुओं के हाथ काटे जाते थे जिनके घर पर तुलसी का पवित्र पौधा पूजित होता था।
उस भयानक काल से गुजर यदि आज हिंदू समाज धर्म और राष्ट्र से जुड़ा दिखता है तो यह आठवाँ आश्चर्य है- हिंदुओं के एक वर्ग या बड़े आचार्यों या हिंदू नामधारी सेकुलरों के हिंदू मंदिर विरोध में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है। ग़ज़नवी से पुर्तगालियों तक उसका देश से विमुख धर्म से विमुख एक स्वार्थी भाव रहा है जिसे पिछली शताब्दी में लाल बाल पाल, विवेकानन्द, अरविंद, दयानंद , सावरकर ने बदला और डॉ हेडगेवार ने उसे एक सैन्य अनुशासन में ढालने का असाधारण अभूतपूर्व कार्य किया. वरना मंदिर की जगह हिंदू सेकुलर शौचालय बनवा रहे होते।
यह भारत की सुप्त विजिगीशु प्रवृत्ति, काल को परास्त करने वाली जिजीविषा और सामूहिक सांगठनिक शक्ति का ऐसा ऐतिहासिक प्रकटीकरण है जो धरातल पर आदि शंकर के बाद या राजनीतिक स्तर पर राज राज चोल, कृष्णदेवराय, उससे पूर्व विक्रमादित्य, अशोक, के बाद कभी संभव हुआ नहीं। दुर्बल, आत्म विस्मृत, समझौतावादी, यही पिछले सेकुलर युग में हिंदू की पहचान थी। उस छवि के टूटने और नवीन साहसी निर्भीक हिंदू के उदय से जन्मी वेदना भारत शत्रुओं को होना स्वाभाविक ही है। ध्यान रहे राम ने पश्चाताप विहीनरावण युग का अंत किया पररावण पर का कभी अपशब्दों से तिरस्कार नहीं किया, उसका सम्मान अंतिम संस्कार किया, उसके भाई विभीषण का राज्यारोहण करवाया, लंका को अयोध्या में सम्मिलित नहीं किया।
आज यही मर्यादा पुनरुज्जीवित होती दिखती है। संपूर्ण विश्व में भारत की प्राचीन गौरवशाली धरोहर के प्रति नवीन चैतन्य उभरा है। अनगिनत पुस्तकें भारत की विद्या, महापुरुषों की जीवनियों, प्राचीन नगरों , नदियों, तीर्थों, पर्यटन स्थलों, समुदायों यहाँ तक कि अरुणाचल- मणिपुर- मेघालय में प्राचीन राम कथाओं के पुनःस्मरण- प्रकाशन का रेला दिख रहा है। राम कथा के टेली सीरियल से लेकर राम मंदिर विरोधी नये नये शंकराचार्यों की अपने अपने उद्देश्यों हेतु पादवंदना करते, जातियों के गूढ़ मर्म व अर्थ ढूँढते दिखने लगे हैं। विश्व नवीन आर्थिक व सैन्य शक्ति युक्त भारत की ओर भिन्न एवं सम्मान भाव से देख रहा है। यह अचानक जादू से नहीं हुआ।
स्मृति जागरण पर्व उन अनाम अजान अचीन्हे संस्कृति वीरों महापुरुषों गुरुओं त्यागराज, चैतन्य महाप्रभु, रामानन्दाचार्य, आदि शंकर, गुरु गोविंद सिंह तेग़ बहादुर, बंदा बहादुर के संचित तप, बलिदानों, साधना, काले पानी की जेल में अनजान रह कर मर खप गये सेनानियों की सामूहिक अभीप्साओं का फल है।
आज चन्द्रायण से लेकर मंगल तक की यात्राओं का निर्धारण आस्थावान विश्व विश्रुत भारतीय वैज्ञानिक कर रहे हैं, खेल, चिकित्सा, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, कठिनतम क्षेत्रों को राजमार्गों से जोड़ता भारत, सिंधु सरस्वती सभ्यता के विराटतम आगार के रूप में विश्व के समक्ष स्वयं को प्रस्तुत करने लगा है। विश्व के संपन्नतम आधुनिकतम स्थानों में हिंदू संस्कृति और सभ्यता के उत्कर्ष को दर्शाते मंदिर सैंकड़ों एकड़ों में बन गये हैं जहां वे लोग आकर श्रद्धावनत और विस्मित हो रहें हैं जो कल तक हमारे अध्यात्म की, धरोहर की मजाक उड़ाते थे।
इन सब गतिविधियों में 18 से 30 वर्ष का हिंदुस्तानी है। वह भाजपा समर्थक नहीं भी होगा, संघ से सहमत नहीं भी होगा पर वह एक नये हिंदुस्तान का अन्वेषण कर रहा है, नवीनता का आविष्कार कर रहा है, अपनी जड़ों की पहचान और पश्चिमी औपनिवेशिक दंभ को करारा तीखा आहत करनेवाला उत्तर दे रहा है। न्यूयॉर्क के प्रसिद्ध थिंक टैंक के निदेशक ने इस दृश्य को उद्धृत करके मुझसे कहा था- दिस इंडिया इस अनस्टॉपेबल नाउ- अब इस भारत को कोई रोक नहीं सकता।
यह भारत श्री अरविंद की उस भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध कर रहा है कि विश्व को मार्गदर्शन देने वाले शक्तिशाली समर्थ भारत का उदय अवश्यंभावी है। विवेकानंद ने इस स्मृति जागरण अश्वमेध यज्ञ का आरंभ 11 सितंबर 1893 को शिकागो में कर दिया था। कार सेवकों ने अपने रक्त की आहुति से अयोध्या को जगा कर बलिदानी ऊष्मा से भारत ज्योति जलायी और जो भी भारतीय जहां भी था उसके मानस में जो आत्मविश्वास आया वह अवर्णनीय और शब्दातीत है।
राजनेताओं को विनम्रतापूर्वक इस पुनर्जागरण पर्व का वंदन करना होगा। अयोध्या सशुल्क धर्मशालाओं होटलों विलासिता के धनी वर्ग और अर्द्ध साक्षर उच्चाधिकारियों के पानी की तरह बहाए पैसे से आप्लावित न होने पाए. नेताओं के अहंकार हूटर, सड़क बंद करवाकर पूजा का दंभ यहाँ न दिखे. गरीब दरिद्र किसान मजदूर झोंपड़ी वाले हिंदू ने अयोध्या की आत्मा बचायी, यहाँ कभी कोई भूखा नहीं सोया, कभी ठंड में सड़क पर नहीं पड़ा। हर आश्रम शरण स्थल बना रहा है। अब अचानक धन वैभव फेंक कर उनको होटल व्यावसायीकरण की ओर धकेलने तथा ग़रीब भक्तों को अवांछनीय और धनियों को सुपात्र समझने वाली अयोध्या न बनने दें। सरकार संस्कृति कार्यों में अपनी भूमिका की नयी सीमा निर्धारित करे।
सोमनाथ से अयोध्या तक के पुनर्निर्माण का पथ भारत वर्ष के सामूहिक स्मृति जागरण का अविजेय, अमर्त्य, शत्रु हनन- सज्जन प्रतिपालक ज्योति पर्व है। अबसे भारत एक नया मन, नया कलेवर धारण करनेवाला है। अयोध्या में इस शक्ति के ऊर्जा केंद्र की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है- मंदिर मात्र की नहीं।
तरुण विजय
(लेखक पूर्व सांसद व पाँचजन्य के दो दशक संपादक रहे- यह आलेख अयोध्या से भेजा है)