अरूंधति रॉय, देवदत्त पटनायक, रामचंद्र गुहा सहित कई लेखकों ने भी किया CAA का विरोध

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 17, 2019

नयी दिल्ली। नागरिकता (संशोधन) कानून का विरोध करने वाले लोगों में शामिल होते हुए अरूंधति रॉय, देवदत्त पटनायक और रामचंद्र गुहा सहित कई प्रख्यात लेखकों ने दावा किया है कि यह ‘‘भारत विरोधी’’ कानून हमारे संविधान के ‘आधार स्तंभ’ को तोड़ने वाला है। पटनायक सहित कई लेखकों ने इस नये कानून के विरोध में दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन करने वालों छात्रों पर की गई पुलिस कार्रवाई की भी आलोचना की।

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इस संशोधित कानून के खिलाफ देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच लेखिका एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता अरूंधति रॉय ने इस कानून की तुलना (नाजी जर्मनी के) ‘‘1935 न्यूरेमबर्ग लॉ ऑफ द थर्ड रेस’’ से की और लोगों से (इसके खिलाफ) खड़े होने की अपील की। बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका ने हेमार्केट बुक्स के जरिए जारी एक बयान में कहा, ‘‘तीन साल पहले हम आज्ञाकारी तरीके से बैंकों के बाहर कतार में खड़े हुए थे क्योंकि हम पर नोटबंदी थोपी गई थी, एक ऐसी नीति जिसने हमारे देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। अब राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के साथ नागरिकता संशोधन कानून हमारे संविधान के आधार स्तंभ को तोड़ने वाला हैऔर हमारे पैरों तले से जमीन खिसकाने वाला है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘क्या हम एक बार फिर से आज्ञाकारी तरीके से कतार में खड़े होने और इस नीति का पालन करने जा रहे हैंजो ‘1935 न्यूरेमबर्ग लॉ ऑफ थर्ड रेस’ से मिलता जुलता है? यदि हम ऐसा करेंगे, तो भारत खत्म हो जाएगा। आजादी के बाद हम सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। कृपया खड़े हो जाइए।’’ पौराणिक कथाकार पटनायक ने ‘‘कभी कॉलेज नहीं गए नेताओं’’ को सुझाव दिया कि उन्हें छात्रों की गतिविधियों पर सलाह नहीं देनी चाहिए। 

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उन्होंने कहा कि जिस तरह से ब्रह्मचारी लोगों को यौन संबंधों पर सलाह नहीं देनी चाहिए, उसी तरह कभी कॉलेज का मुंह नहीं देखने वाले नेताओं को छात्र गतिविधियों पर सलाह नहीं देनी चाहिए और जिन छात्रों ने कभी काम नहीं किया है उन्हें उद्यमशीलता पर सलाह नहीं देनी चाहिए।’’ पौराणिक कथाओं के काल्पनिक किरदार ‘विक्रम और बेताल’ के बीच संवाद के रूप में उन्होंने व्यंग्य किया कि मंत्रियों को प्याज की बढ़ती कीमतों के बारे में कुछ पता नहीं है जबकि वे ‘‘हर कॉलेज परिसर में जिहादी/माओवादी पा सकते हैं’’।

उन्होंने विक्रम-बेताल के बीच संवाद के रूप में टिप्पणी की, ‘‘बेताल: कलयुग में सबसे पेचीदा चीज क्या है? विक्रम: मंत्री और उनके ट्रोल द्वारा हर कॉलेज परिसर में जिहादियों/माओवादियों को पाना जो उन्हें चुनौती देते हैं, लेकिन उन्हें इस बारे में कुछ अता पता नहीं कि प्याज की कीमतें इतनी ज्यादा क्यों हैं? ’’सरकार समर्थक अपने दृष्टिकोण को लेकर जाने जाने वाले लेखक चेतन भगत ने कहा, ‘‘भले ही उनके ऐतिहासिक नाम कुछ भी हो, भारत में कोई हिंदू या मुस्लिम विश्वविद्यालय नहीं है। वे सभी भारतीय विश्वविद्यालय हैं। और उनसभी की अवश्य ही हिफाजत करनी चाहिए।’’

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एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘‘आप 20 करोड़ मुसलमानों को खारिज करने की नहीं सोच सकते’’ और उन्होंने चेतावनी दी कि इससे देश जलने के रास्ते पर बढ़ेगा। जीडीपी औंधे मुंह गिर जाएगा और आपके बच्चे असुरक्षित एवं बेरोजगार हो जाएंगे। भगत ने ‘‘युवाओं के धैर्य की सीमा की परीक्षा लेने के खिलाफ’’ सरकार को चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था को तबाह करना, रोजगार खत्म करना, इंटरनेट बंद करना, पुलिस को पुस्तकालयों में भेजना...युवाओं के पास संयम हो सकता है लेकिन इसकी सीमा की परीक्षा मत लीजिए।’’

अपने रोमांटिक उपन्यासों को लेकर मशहूर रविंदर सिंह ने इस कानून को भारत विरोधी कानून करार दिया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘यह प्रदर्शन मुसलमानों द्वारा, मुसलमानों के लिए और मुसलमानों का नहीं है। यह लोगों द्वारा, लोगों के लिए और लोगों का है जो ‘भारत की परिकल्पना’ में यकीन करते हैं।’’ इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने सिलसिलेवार ट्वीट में 1919 के महात्मा गांधी के संकल्प को दोहराया, जिसमें उन्होंने अपने देशवासियों, हिंदुओं और मुसलमानों से एक ही माता पिता की संतान की तरह व्यवहार करने को कहा था। 

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उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘...(महात्मा) गांधी ने 1919 में अपने देशवासियों से यह संकल्प लेने कहा था--हम एक दूसरे के धर्म और धार्मिक भावनाओं का आदर करेंगे...हम धर्म के नाम पर एक दूसरे के खिलाफ हिंसा से हमेशा ही दूर रहेंगे...।’’गुहा ने कहा, ‘‘आइए एक बार फिर से यह संकल्प लेते हैं एवं इसे वाराणसी, अलीगढ़, मथुरा, मेरठ, श्रीनगर, जम्मू, गुवाहाटी, मुर्शिदाबाद में और भारत में हर जगह कायम रखते हैं।’’

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