आज अरुण जेटली का जन्मदिन है। अरुण जेटली को भारतीय राजनीति में अलग कद हासिल था जिन्हें भाजपा का संकट मोचक भी कहा जाता था। भले ही वह भारतीय जनता पार्टी के नेता थे परंतु उनकी पकड़ सभी पार्टियों में उतनी ही थी जितनी भाजपा में थी। उनका अंदाज सबसे अलग था, सबसे जुदा था और सबसे अद्भुत भी था। उनके जितने दोस्त अपनी पार्टी में थे उतने ही दूसरी पार्टियों और मीडिया में भी हुआ करते थे। यही तो उन्हें बाकियों से बिल्कुल अलग करता था। अद्भुत बौद्धिक क्षमता और दूरदर्शिता पूर्ण व्यक्तित्व के कारण उनके सभी कायल थे। वाह भाजपा में अटल-आडवाणी युग में भी उतने ही फिट थे जितने कि मोदी और अमित शाह के युग में देखा गया। वह अटल युग में भी उतने ही महत्वपूर्ण थे जितने वर्तमान समय में रहे। भाजपा के संकटमोचक होने के साथ-साथ वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भी संकटमोचक रहे। जब-जब भाजपा पर कोई संकट आती तो अरुण जेटली ढाल बनकर खड़े होते। वह विरोधियों को अपने तर्क से चित करते तो पार्टी और गठबंधन सहयोगियों को भरोसे में लेते थे। भले ही अरुण जेटली हम सबके बीच नहीं हैं लेकिन आज भी उनके कमी खलती है। भाजपा नेता आज भी मानते है कि पार्टी को जेटली की कमी हमेशा महसूस होती है। अब भी जब पार्टी मझधार में फंसती है तो अरुण जेटली के रास्ते पर चलकर ही वह इससे उबरने की कोशिश भी करती है। जेटली के जाने से जो पद पार्टी में खाली हुआ उसकी भरपाई कर पाना फिलहाल तो मुश्किल ही नजर आता है।
मोदी सरकार के लिए अरुण जेटली हर मर्ज की दवा थे। जब भी सरकार पर कोई संकट का बादल आया तो अरुण जेटली ने ही उसे दूर किया। आज जब सरकार के खिलाफ किसानों का आंदोलन अपने चरम पर है तो ऐसी परिस्थिति में अरुण जेटली बहुत याद किए जा रहे होंगे। अरुण जेटली की यही तो खासियत थी कि वह बिगड़ी बातों को बना देते थे। अरुण जेटली का पूरा जीवन काल दिलचस्प रहा है। कई उतार-चढ़ाव के बावजूद उनका व्यक्तित्व हमेशा बौद्धिक पूर्ण रहा। वित्त मंत्री कार्यकाल के दौरान उनके कई निर्णय ऐतिहासिक रहे हैं। 24 अगस्त 2019 को भले ही उन्होंने हम सब को अलविदा कह दिया लेकिन उनकी अद्भुत बौद्धिकता आज भी हमें पथ प्रदर्शित करते रहते हैं। अरुण जेटली की कहानी पाकिस्तान से भारत में आकर बसे एक परिवार से शुरू होती है। उनके परिवार में कोई भी राजनीति से नहीं जुड़ा था लेकिन उन्होंने अपने दम पर राजनीति में बड़े मुकाम हासिल किए। अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता महाराज किशन जेटली वकील हुआ करते थे। जेटली की शिक्षा दीक्षा दिल्ली में ही हुई। जेटली पढ़ाई में तो औसत थे लेकिन भाषण देने की कला उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। जेटली शुरू में इंजीनियर बनना चाहते थे लेकिन बाद में उनका इरादा बदल गया। जेटली ने अपनी उच्च शिक्षा दिल्ली के ही श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पूरी की जहां उनकी पहचान एक बेहतरीन डिबेटर के तौर पर भी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय से ही उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की। पिता वकील थे इसलिए उनमें भी वकालत के गुण भरे हुए थे।
अरुण जेटली बेजोड़ वक्ता तो थे ही साथ ही साथ वह शानदार व्यक्तित्व के भी धनी थे। उनका राजनीतिक सफर 70 के दशक में शुरू हुआ जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी। वह जनता पार्टी के भ्रष्टाचार उन्मूलन आंदोलन से खासे प्रभावित थे। सही मायनों में कहें तो अरुण जेटली की राजनीति की यात्रा 1974 में शुरू हुई जब वह पहली बार कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। शुरू में जेटली का झुकाव वामपंथ की तरफ जरूर था पर बाद में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से प्रभावित होने के बाद वह इस से जुड़ गए। राजनीतिक जीवन में अरुण जेटली के कद का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ तो उन्हें कमिटी फॉर यूथ एंड स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन का संयोजक बनाया गया। वह एबीवीपी के सक्रिय राजनीतिक चेहरा बनकर उभर चुके थे। आपातकाल के दौरान अरुण जेटली ने अपनी गिरफ्तारी भी दी और खूब सुर्खियां भी बटोरी। वह करीब 19 महीने तक अंबाला और तिहाड़ जेल में रहे।
माना जाता है कि बाबरी विध्वंस के समय वह बीजेपी में जरूर थे पर सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर पार्टी का बचाव नहीं करते थे। कुछ लोग यह भी कहते है कि उन्होंने भाजपा से दूरी बना ली थी। हालांकि अदालत के अंदर वह आडवाणी के वकील थे और पूरी निष्ठा के साथ उनका बचाव करते थे। यही कारण था कि वह आडवाणी के करीब हो गए और उन्हें बाद में पार्टी का महासचिव बना दिया गया। 1999 के आम चुनाव में अरुण जेटली को बीजेपी का प्रवक्ता बनाया गया। यह वह दौर था जब टीवी चैनलों के बहस की शुरूआत हुई थी और जेटली मजबूती से पार्टी का पक्ष रखते थे। जेटली टीवी चैनलों के जरिए लोकप्रिय होने लगे। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में पहले सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बनाया। जब राम जेठमलानी ने इस्तीफा दे दिया तो जेटली कानून मंत्री भी बन गए। जेटली को आडवाणी का करीबी माना जाता है पर वाजपेयी के साथ उनके रिश्ते इतने सहज नहीं थे। वह 2000 से 2018 तक में गुजरात से राज्यसभा के सांसद रहे। 2018 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सांसद चुने गए। जेटली खाने के बेहद शौकीन थे।
2014 में उन्होंने पहली बार अमृतसर से लोकसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया था। पार्टी ने उन्हें टिकट भी दिया पर सफलता नहीं मिल पाई। वे मोदी लहर के बावजूद भी 1 लाख वोटों से हार गए। वह क्रिकेट से भी जुड़े रहे और डीडीसीए के कई सालों तक अध्यक्ष रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके राजनीतिक कद को देखते हुए 2014 में वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय जैसे बड़े मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी। माना जाता है कि अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहते हुए कई ऐतिहासिक फैसले हुए जिसमें नोटबंदी हुआ, कालेधन पर नकेल कसने की कोशिश की गई, देश में जीएसटी लागू किया गया। अरुण जेटली 2009 से 2014 तक राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष में रहे। राजनीतिक जानकार यह मानते है कि अगर देश में नेता प्रतिपक्ष के कार्य को देखना है तो सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से सीखा जा सकता है। लंबे राजनीतिक सफर के दौरान जेटली पर कई आरोप भी लगे तो जेटली ने कई मुद्दों पर वाहवाही भी लूटी। अपनी पार्टी के वो एक समर्पित कार्यकर्ता थे जिनकी लगन और तपस्या ने पार्टी को शिखर तक पहुंचाया। जब भी भाजपा पर संकीर्ण और रूढ़िवादी पार्टी का आरोप लगता था तो वह अरुण जेटली को ही उदाहरण के तौर पर पेश करती थी और कहती थी कि हमारे पास बुद्धिजीवी भी हैं। अरुण जेटली को लुटियंस जोन का धाकड़ नेता माना जाता था। उनकी पकड़ पत्रकारों से लेकर आम आदमी तक के बीच थी। जेटली के तर्क बेमिसाल होते थे। आलोचकों को साधने में जेटली की कला गजब की थी। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद जेटली भाजपा सरकार के लिए हर मर्ज की दवा थे। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह के सबसे भरोसेमंद थे। बीमार अवस्था में भी ना ही उन्होंने अपनी पार्टी का साथ छोड़ा और ना ही पार्टी के लोग उनसे बिना परामर्श लिए कोई काम करते।