हमारी पत्नी कार चलाती नहीं बलिक उन्हें गाड़ी तेज़ चलवाना पसंद है। कभी कभार चंडीगढ़ जाना हो तो उन्हें इतनी ट्रैफिक लाइट्स अच्छी नहीं लगती, किसी रेड लाईट पर दो तीन सैकिंड भी रह जाएं तो कहती है निकाल लो गाड़ी। गाडी निकालने की ज़िम्मेदारी ड्राईवर की होती है न। अगर चालान होता है तो जुर्माने के पैसे हमें ही देने होते हैं। बाद में सुनना पड़ता है, तो फिर आपको गाड़ी निकालनी नहीं चाहिए थी या ज्यादा तेज़ चलानी चाहिए थी। गाड़ी चलवाते हुए जहां चाहे रुकवाती है। जहां जहां बिकने के लिए सेब रखे होते हैं नज़र रखती है फिर किसी मनपसंद जगह रुकवाकर, कार में बैठे बैठे सेब खरीदवा कर नारी शक्तिकरण भी सशक्त करती जाती है।
सेब बेचने वाला, सेब काटकर टेस्ट कराएगा, उन्हें अच्छा लगेगा, स्वादिष्ट मानकर खरीदूंगा फिर भी मुश्किल से उन्हें स्वाद लगेंगे। कहेगी आपने स्वाद सेब नहीं खरीदे। उनकी आंख और जीभ पसंद सेब वातानुकूलित कार में घर पहुंच जाएंगे। कई बार सुरक्षित रास्ता अपनाकर उन्हें खुद सेब खरीदने के लिए कहूंगा तो कहेगी इतने साल में आपको.... खैर। अगला दिन रविवार रहा, नाश्ते के बाद शक्ल से अच्छा लगने वाला सेब परोसा। हम वह बात नहीं मानते कि छिलके में विटामिन होते हैं इसलिए सेब छीलकर काटकर खाते हैं। सेब का पहला टुकडा मुंह में रखते ही बोली इतना भी स्वाद नहीं है।
हमने कहा सभी सेबों का स्वाद एक जैसा नहीं होता। मज़ा नहीं आ रहा, बोली। हमने कहा, यह समझ कर खालो कि किसी और के यहां खा रहे हैं। हम चाय काफी के लिए मना कर चुके हैं इसलिए उन्होंने सेब काटकर परोसे हैं। संबंध बनाए रखने के लिए खाने हैं। जिस प्लेट में रखकर परोसे हैं, कितनी सुन्दर और बढ़िया है। सेब के टुकड़ों को प्रसाद समझकर खा लो, उपहार में मुफ्त मिले समझकर हजम कर लो। यह मानकर खा लो कि सालों बाद खुद चुनकर लाई लेकिन अच्छे नहीं निकले। इतने महंगे है, इज्ज़त बख्शो और खा लो। पति की एक नंबर की कमाई से खरीदे हैं इसलिए खा लेने चाहिए। पत्नी बोली ऐसा नहीं होता। हमने कहा, यह मान लो इस सेब का पौधा ईमानदार मंत्री के हाथों रोपा गया होगा। आप सौभाग्यशाली हैं जो उस भाग्यवान वृक्ष के सेब खा रहे हैं। खुश हो जाओ कि उच्च क्वालिटी के महंगे सेब खाने को मिल रहे हैं। हमारे देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें सेब नसीब नहीं होते, कुछ ने तो सेब देखा भी नहीं होगा।
हमने कहा सब भूलकर, यह सोच कर खाओ कि जो खा रहे हो, आपका मनचाहा फल आम है। अच्छी शक्ल वाले की दुकान से चुनकर सेब खरीदने के बाद उन सेबों को आम समझने में क्या हर्ज़ है। वह बोली, सेब कभी आम नहीं हो सकता। आम तो जैसे भी मिल जाएं खा सकती हूं। फिर महिला शक्तिकरण का सवाल आ गया था। मौसम न हो और कितने भी महंगे मिलें, चाहे खट्टे हों तब भी खा सकती हूं। खाकर गला खराब कर सकती हूं। कई दिन दवाई खा सकती हूं। मुझे किसी से क्या लेना, मैं लोकतंत्रवासी, स्वतंत्र विचारों वाली महिला हूं। कोई भूखा रहे या सेब न देखा हो, मुझे सब कुछ स्वादानुसार चाहिए और सेब को आम समझने की गुस्ताखी नहीं करनी चाहिए।
- संतोष उत्सुक