By आरएन तिवारी | Oct 15, 2021
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम:॥
प्रभासाक्षी के धर्म प्रेमियों !
पिछले अंक में हमने पढ़ा कि अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए परीक्षित ने गंगा तट पर आमरण अनशन करने का निश्चय किया। वहाँ सृष्टि के बड़े बड़े कुशल वक्ता उपस्थित थे वे कथा सुना सकते थे किन्तु उनको भी परमहंस श्री शुकदेव जी महाराज की कथा का स्वाद चखना था। इसीलिए सभी मौन थे। आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलें--
उसी समय पृथ्वी पर विचरण करते हुए व्यास नन्दन भगवान श्री शुकदेव जी महाराज वहाँ प्रकट हो गए। शुकदेव जी को किसी ने बुलाया नहीं था। कथा का संदेश, जब किसी योग्य शिष्य पर संकट आता है तो इस जिंदगी की राह मे चलते-चलते कोई योग्य गुरु अवश्य मिल जाता है। जब जिंदगी रूपी रात का चिराग बुझने लगता है तब अँधेरे को चीरती हुई भगवान भाष्कर की आशा रूपी किरणें निकल आतीं हैं।
यूं ही कोई मिल गया था मेरे साथ चलते चलते ....
ये चिराग बुझ रहे हैं सारी रात ढलते ढलते....
ठीक उसी समय परम हंस श्री शुकदेव जी महाराज का आगमन हुआ। सबने हाथ जोड़कर स्वागत किया। मानो ! परीक्षित को डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया हो।
आइए ! हम भी ऐसे सर्वभूत-हृदय स्वरूप श्री शुकदेव जी महाराज को प्रणाम करें।
यं प्रव्रजन्तमनुपेत मपेत कृत्यम द्वैपायनों विरह कातर आ जुहाव।
पुत्रेति तन्मयतया तरवोभिनेदु; तं सर्वभूत हृदयम् मुनिमानतोस्मि ॥
बोलिए--- श्री शुकदेव जी महाराज की जय-----
परीक्षित ने श्री शुकदेव जी का अभिनंदन किया और भगवान श्रीकृष्ण का आभार व्यक्त किया।
परीक्षित कहते हैं- हे प्रभों आप योगियो के परम गुरु हैं।
जो पुरुष मृत्यु के निकट हो उसे क्या करना चाहिए, तथा यह भी बताइये कि मनुष्य मात्र को किसका जप,तप, स्मरण और भजन करना चाहिए।
अत; पृच्छामि संसिद्धिम् योगिनाम परमं गुरुम
पुरुषस्येह यत्कार्यम म्रियमानस्य सर्वथा ॥
शुकदेव जी ने कहा– राजन! तुम्हारा यह प्रश्न लोक-हित में बड़ा ही सुंदर है। इस जगत में जन्म लेकर प्राणी अपने सच्चे स्वरूप को भूल जाता है, वह सांसारिक मोह-माया के जंजाल मे फंस जाता है। वह झूठी माया को सत्य समझने लगता है और माँ के गर्भ में ईश्वर से जो वादा करता है उससे भटक जाता है। उसकी पूरी उम्र परिवार के भरण-पोषण और स्त्री प्रसंग मे बीत जाती है।
शुकदेव जी कहते है- परीक्षित ! आश्चर्य तो तब होता है, जब वह अपने घनिष्ठ सम्बन्धियों को काल के गाल में जाते हुए देखकर भी नहीं चेतता है। इसलिए जो परम पद को प्राप्त करना चाहता है उसे सर्व शक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिए। आपके पास तो सात दिन है, खटवांग राजा के पास तो दो घड़ी का समय था उसी में उनको परम पद प्राप्त हो गया था।
गधे का दृष्टांत;---- मनुष्य की भी हालत उस गधे की तरह हो जाती है जो जीवन भर बोझा ढोता है और बूढ़ा हो जाने पर मालिक दो डंडे लगाकर घर से निकाल देता है।
मनुष्य जीवन का बस इतना ही लाभ है कि मन वचन और कर्म से जीवन को ऐसा बना लिया जाए कि मृत्यु के समय भगवान का स्मरण बना रहे। धन दौलत रुपया पैसा, मकान महल गाड़ी बंगला सब इस धरती का है। धरा का धरा पर धरा ही रहेगा।
धरा का धरा पर धरा ही रहेगा, सब छोड़ हमको जाना पड़ेगा।
सुख की घड़ी में न भूलना प्रभु को दुख की घड़ी में न कोसना प्रभु को
कर लो भजन तू यशोदा ललन का वही तेरी नैया पार करेगा। धरा----
सत्य अहिंसा को मन मे बसाओ लोभ मोह माया को मन से भगाओ
सुमिरो सुबह शाम राधा रमन को वही तेरी नैया पार करेगा। धरा----
प्रशंसा से पिघलना मत, आलोचना से उबलना मत। नि;स्वार्थ भाव से काम किए जा क्योकि इस धरा का इस धरा पर सब धरा ही रह जाएगा। मृत्यु के समय घबराएं नहीं, बल्कि पृथ्वी, जल, तेज वायु आकाश प्रकृति के इन आवरणों से घिरे हुए विराट पुरुष का स्मरण करें।
विराट पुरुष का वर्णन:-
पाताल मेतस्य हि पादमूलं पठन्ति पार्ष्णि प्रपदे रसातलम्
महातलं विश्वसृजोथ गुल्फौ तलातलं वै पुरूषस्य जंघे ।।
पाताल विराट भगवान के तलवे हैं, आकाश नाभि है, स्वर्गलोक छाती है, तपोलोक ललाट है, सत्यलोक मस्तक है, सूर्य उनके नेत्र हैं, रात और दिन उनकी दो पलकें हैं, चंद्रमा मन है। ब्राह्मण उनके मुख हैं क्षत्रिय भुजाएँ वैश्य जंघाएँ और शूद्र उस विराट भगवान के चरण हैं।
हे परीक्षित ! समस्त ब्रह्मांड उस विराट पुरुष मे स्थित है, ऐसा समझकर उस सत्य स्वरूप विराट भगवान का ही भजन करना चाहिए।
क्रमश: अगले अंक में --------------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
-आरएन तिवारी