By नीरज कुमार दुबे | Nov 06, 2023
दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में सोमवार सुबह प्रदूषण का स्तर सरकार द्वारा तय सुरक्षित स्तर से सात से आठ गुना अधिक दर्ज किया गया और लगातार सातवें दिन क्षेत्र के ऊपर वातावरण में जहरीली धुंध छाई रही। दिल्ली के आरके पुरम इलाके में 900 एक्यूआई की खबरों ने सबको चिंता में डाल दिया है। बताया जा रहा है कि हवाओं की प्रतिकूल दशाओं तथा समूचे उत्तर भारत में पराली जलाने की घटनाओं में तेजी के कारण तीन दिनों में यहां की वायु गुणवत्ता दूसरी बार ‘अत्यंत गंभीर’ की श्रेणी में दर्ज की गई। इस बीच, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शहर में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि दिल्ली सरकार वाहनों के लिए 'ऑड-ईवन' नीति लागू कर सकती है।
हम आपको यह भी बता दें कि केंद्र ने अपनी वायु गुणवत्ता नियंत्रण योजना ‘ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान’ (ग्रैप) के अंतिम चौथे चरण के तहत जरूरी सभी आपात उपायों को लागू करते हुए प्रदूषण फैलाने वाले ट्रकों के प्रवेश पर रोक सहित सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं। इसके अलावा क्षेत्र में प्रदूषण से निपटने को लेकर रणनीति तैयार करने के लिए जिम्मेदार वैधानिक निकाय, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने दिल्ली और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) राज्यों से सार्वजनिक परियोजनाओं से संबंधित निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाने और सरकारी एवं निजी कार्यालयों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों को घर से काम करने की अनुमति देने के लिए कहा है। ग्रैप के चौथे चरण के तहत, अन्य राज्यों से केवल सीएनजी, इलेक्ट्रिक और बीएस छह-अनुपालक वाहनों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति है। केवल आवश्यक सेवाओं से जुड़े वाहनों को छूट दी गई है। सीएक्यूएम के हालिया आदेश के अनुसार, आवश्यक सेवाओं में शामिल नहीं होने वाले सभी मध्यम और भारी माल वाहनों के प्रवेश पर भी राजधानी में प्रतिबंध लगा दिया गया है। सीएक्यूएम ने गैर-आवश्यक निर्माण कार्य और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की विशिष्ट श्रेणियों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने छोटे बच्चों को खतरनाक प्रदूषण से बचाने के प्रयास के तहत सभी प्राथमिक विद्यालयों को दो दिनों के लिए बंद करने की भी घोषणा की है।
दूसरी ओर, दिल्ली के साथ ही पड़ोसी राज्य हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई शहरों में वायु गुणवत्ता खतरनाक श्रेणी में पहुंचने की सूचना है। दिल्ली से सटे गाजियाबाद (413), गुरुग्राम (369), नोएडा (403), ग्रेटर नोएडा (396) और फरीदाबाद (426) में भी वायु गुणवत्ता सुबह सात बजे खतरनाक श्रेणी में दर्ज की गई। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, आगामी पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से प्रदूषकों को तितर बितर करने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मंगलवार रात से बनने की संभावना है। इसके कारण उत्तर पश्चिम भारत में बेमौसम बारिश हो सकती है।
देखा जाये तो वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, धान की पराली जलाने, पटाखों और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्रोतों के साथ मौसम संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियां हर साल सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक वायु गुणवत्ता स्तर में योगदान करती हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार, राजधानी में एक नवंबर से 15 नवंबर तक प्रदूषण उस समय चरम पर होता है, जब पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। नयी दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के अनुसार, रविवार को उत्तर भारत से खेतों में पराली जलाने की कुल 4,160 घटनाएं हुईं- जो इस मौसम में अब तक की सबसे अधिक घटनाएं हैं। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक, अकेले पंजाब में पराली जलाने की 3,230 घटनाएं दर्ज की गईं, जो इस मौसम में अब तक एक दिन में राज्य में सबसे ज्यादा है।
इस बीच, पता चला है कि दुनिया के देशों में राजधानी शहरों में दिल्ली की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है। अगस्त में शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वायु प्रदूषण दिल्ली में लोगों की लगभग 12 साल की उम्र कम कर रहा है। चिकित्सकों के अनुसार, जहरीली धुंध मौजूदा श्वसन समस्याओं वाले लोगों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर रही है। दिल्ली में हवा के गंभीर रूप से प्रभावित होने के बीच शहर के चिकित्सकों ने लोगों को आगाह किया है कि वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है, बल्कि सभी आयु समूह के लोगों के हृदय और मस्तिष्क जैसे अन्य प्रमुख अंगों को भी प्रभावित करता है।
सफदरजंग अस्पताल में श्वसन रोग संबंधी औषधि विभाग के प्रमुख डॉ. नीरज गुप्ता ने कहा कि वायु प्रदूषण के चलते विशेषकर बुजुर्गों, स्कूल जाने वाले बच्चों और गर्भवती महिलाओं जैसी संवेदनशील आबादी में सिरदर्द, चिंता, चिड़चिड़ापन, भ्रम और संज्ञानात्मक क्षमताओं में कमी के मामलों में अचानक वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘तंत्रिका संबंधी संज्ञानात्मक क्षमता का सीधा संबंध हवा में बढ़ते नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड से है क्योंकि वे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं।’’ डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि इसलिए ‘गैस चैंबर’ तकनीकी रूप से एक सही शब्द है जिसका इस्तेमाल हानिकारक गैसों की सांद्रता में वृद्धि के संदर्भ में किया जाता है, न केवल कणीय पदार्थ के संबंध में। डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि नॉर्थ कैरोलिना में स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का उनकी गणितीय क्षमताओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि इसलिए एकमात्र रास्ता इस जहरीली हवा के संपर्क में आने से बचना है, विशेष रूप से संवेदनशील आबादी और अस्थमा, ‘क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ (सीओपीडी) और रक्त के प्रवाह में कमी संबंधी हृदय रोग जैसी पहले से मौजूद स्थितियों वाले रोगियों को घर के अंदर रहने की कोशिश करनी चाहिए तथा निवारक उपाय करने चाहिए। डॉक्टरों ने कहा कि शहर के अस्पतालों में पिछले कुछ दिनों से श्वसन संबंधी जटिलताओं से पीड़ित रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कई अध्ययनों में वायु प्रदूषण को मस्तिष्काघात, मनोभ्रम और संज्ञानात्मक हृास के बढ़ते खतरों से जोड़ा गया है। डॉ. गुलेरिया वर्तमान में मेदांता अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा, श्वसन और निद्रा औषधि विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए ठोस कार्रवाई करने की तत्काल आवश्यकता है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि हर बार सर्दियों में हवा की गुणवत्ता खराब स्तर तक गिर जाती है और इस पर बहुत चर्चा होती है लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है। उन्होंने कहा, "लंबे समय तक खांसी, सांस लेने में कठिनाई, गले में संक्रमण और सीने में जकड़न के साथ-साथ मरीज चिंता, भ्रम और बढ़ते चिड़चिड़ापन की शिकायत कर रहे हैं। यह वायु प्रदूषण एक बड़ा संकट है जिसे तत्काल अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।"