Mahabharat Curses: महाभारत युद्ध के बाद शकुनि को मिला था स्वर्ग और पांडव गए थे नर्क, जानिए इसके पीछे की रोचक कथा

By अनन्या मिश्रा | Jul 09, 2024

हमारे कर्म ही स्वर्ग और नर्क का रास्ता तय करती है। बचपन से लेकर अभी तक हम सभी को यही सिखाय़ा जाता है कि यदि हम अच्छे कर्म करेंगे, तो हमको स्वर्ग जाने का मौका मिलेगा। वहीं बुरे कर्म होने पर नर्क में जाना पड़ेगा। यह साधारण सी बात हम सभी अच्छे और बुरे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है। वहीं महाभारत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

 

आपको भी पता होगा कि महाभारत के युद्ध में पांडव धर्म के साथ थे और कौरव अधर्म के साथ थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब पांडु पुत्र युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे तो वहां पर शकुनि, दुर्योधन और दुशासन पहले से मौजूद थे। जबकि अन्य पांडव और पत्नी द्रौपदी नर्क में थे।

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शकुनि को क्यों मिला स्वर्ग

दरअसल, कथा के मुताबिक शकुनि ने कभी अपने स्वार्थ लिए किसी तरह का कोई पाप नहीं किया था। वह सिर्फ अपने और अपने परिवार के खिलाफ हुए अपराधों का बदला लेने का प्रयास किया था। क्योंकि अखंड भारत में गांधारी सबसे अधिक सुंदर राजकुमारी थी और शकुनि अपनी बहन से बहुत प्यार करता था। लेकिन पंडितों ने बताया कि द्रौपदी के पति कि आयु कम होगी। इस लिए राजकुमारी के पिता महाराज सुबला ने गांधारी का विवाह एक बकरी से कर दिया। फिर उसको बकरी को मार दिया, जिससे कि गांधारी का दोष कम हो जाए।


वहीं जब शकुनि को पता चला कि उनकी प्यारी बहन का विवाह राज्य की रक्षा के लिए जन्मांध धृतराष्ट्र से हो रहा है, तो उन्होंने इस विवाह को रोकने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। जिस कारण वह क्रोधित हुए और बाद में धृतराष्ट्र को गद्दी भी नहीं मिली। वहीं जब भीष्म पितामह को गांधारी का बकरी से विवाह होना पता चला, तो उनको बहुत क्रोध आया कि उन्होंने एक विधवा को अपने राज परिवार की बहू बनाया। इस बात को छिपाने के लिए भीष्म पितामह ने महाराज सुबला और उनके पूरे परिवार को जेल में डाल दिया। 


उस समय महाराज सुबला और उनके परिवार को खाने के लिए सिर्फ एक अन्न का दाना दिया जाता था। लेकिन महाराज सुबला और उनके परिवार ने वह एक अन्न का दाना भी शकुनि को खाने के लिए दिया। जिससे कि वह उनके परिवार के अपमान का बदला ले सके। इसके बाद शकुनि के परिवार का हर सदस्य भूख के कारण मरता चला गया। तब शकुनि ने अपनी पिता की अस्थियों से जादुई पासे बनाए और परिवार की मौत का बदला लेने की ठानी।


शकुनि हमेशा अपने परिवार के लिए जिए और अपने परिवार के खिलाफ किए गए अपराधों का बदला लेने के लिए अधर्म का साथ दिया। इसलिए शकुनि को कुछ समय के लिए स्वर्ग मिला था। वहीं पांडवों ने धर्म का रास्ता चुना था, लेकिन हर पांडव ने कुछ न कुछ गलत किया था, जिसके कारण उनको कुछ समय के लिए नर्क में वास करना पड़ा था।


क्यों नर्क गए पांडव

महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव हस्तिनापुर में राज करने लगे। युधिष्ठिर धर्म का राह पर चलते थे और उन्होंने 36 सालों तक हस्तिनापुर में राज किया। इसके बाद अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परीक्षित राजा बनें और खुद युधिष्ठिर अन्य भाईयों और पत्नी के साथ स्वर्ग की ओर चल दिए। रास्ते में द्रौपदी पर्वत से गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुईं। पत्नी की मृत्यु पर अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव ने पीछे पलट कर देखा, लेकिन युधिष्ठिर नहीं पलटे। यह देख अन्य पांडवों ने उनसे सवाल किया तो युधिष्ठिर ने जवाब देते हुए कहा कि द्रौपदी ने हम सभी को पति माना, लेकिन इसके बाद भी वह अर्जुन से सबसे अधिक स्नेह रखती थीं। ऐसे में द्रौपदी ने धर्म का पालन नहीं किया। 


आगे जाकर नकुल मृत्यु को प्राप्त हुए, तो युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर घमंड था और वह खुद को इस संसार का सबसे अधिक सुंदर पुरुष मानते थे। सुंदरता पर घमंड उनका सबसे बड़ा पाप था। थोड़ा आगे चलकर सहदेव गिर कर मृत्यु को प्राप्त हुए, तो युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव के सामने सब होता रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं किया। भले ही उन्होंने कोई पाप नहीं किया, लेकिन गलत के खिलाफ आवाज भी नहीं उठाई। इसलिए सहदेव भी जीवित स्वर्ग नहीं पहुंच पाए।


फिर यही घटना महाबली भीम के साथ हुई तो युधिष्ठिर ने बताया कि भीम को लालच था। वह इंसान होने हुए भी अन्य लोगों की तरह खाना नहीं खाते थे। वह खाना देखकर खुद को रोक नहीं पाते थे और दूसरों की विपत्तियों पर हंसते थे। इसलिए भीम के साथ ऐसा हुआ। अंत में अर्जुन मृत्यु को प्राप्त हुए, तो युधिष्ठिर से सवाल करने वाला कोई नहीं था। तब उन्होंने कहा कि अर्जुन को घमंड था कि वह संसार के सबसे अच्छे और बड़े धनुर्धर हैं। हालांकि वह अपनी कला में अच्छे थे, लेकिन श्रेष्ठ नहीं थे। अर्जुन को हमेशा डर सताता रहता था कि कोई उनसे बेहतर न आ जाए।


अंत में जब युधिष्ठिर अकेले सुमेरू पर्वत पर पहुंचे, तो देवराज इंद्र ने अपना वाहन भेजा। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति जिंदा सुमेरू पर्वत के शिखर पर पहुंच जाता था, तो उसको संपूर्ण ज्ञान हो जाता था और उसको शरीर के साथ स्वर्ग जाने को मिलता है। जब युधिष्ठिर इंद्र के वाहन में बैठकर स्वर्ग की ओर जाने लगे तो उन्होंने देखा कि हस्तिनापुर से एक कुत्ता भी उनके पीछे-पीछे सुमेरु पर्वत तक आ पहुंचा है। लेकिन इंद्र ने उस कुत्ते को स्वर्ग से जाने से मना कर दिया। तो युधिष्ठिर ने कहा कि इतनी लंबी यात्रा करने के बाद भी कुत्ता आगे जाएगा या नहीं इस बात का फैसला वह नहीं कर सकते हैं। 


ऐसे में देवराज इंद्र को युधिष्ठिर का बात मानने पड़ी और कुत्ते को भी स्वर्ग लेकर गए। जब युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे तो देखा कि वहां पर पहले से शकुनि, दुर्योधन और दुशासन मौजूद हैं। जबकि उनके भाई और पत्नी नहीं है। तब युधिष्ठिर ने भाईयों और पत्नी के बारे में पूछा तो पता चला कि वह सभी नर्क में हैं। तब युधिष्ठिर ने भी नर्क जाने का फैसला कर लिया। युधिष्ठर ने नर्क की आग में बहुत सारी चीजें दी और नर्क की आग में भाइयों और पत्नी को यातनाएं झेलते देखा। 


तब उन्होंने पूछा कि यह अधर्म क्यों किया, युधिष्ठिर ने कहा कि उनको भी परिवार के साथ नर्क में रहना है। तब इंद्र और अन्य देवता प्रकट हुए और कहा कि आपने अपने मन से स्वर्ग भी त्याग दिया और खुद को कठोर कर लिया, यहां तक कि परिवार के अन्य सदस्यों के मरने पर मुड़कर भी नहीं देखा। लेकिन स्वर्ग आते ही आप अपने क्रोध को प्रकट किए बिना नहीं रह पाए, आप क्रोध वश कौरवों को स्वर्ग में भी नहीं देख पाए। यही आपका पाप है।


इंद्र और अन्य देवताओं के कहने पर युधिष्ठिर ने अपने कर्मों के बारे में सोचा और कौरवों के प्रति अपने मन से नफरत को हटाया। तब वह स्वर्ग पहुंचे। बता दें कि कौरव सिर्फ कुछ समय के लिए स्वर्ग गए थे और पांडव कुछ समय के लिए नर्क गए थे। युधिष्ठिर को ज्ञान के बारे में बताने के लिए इंद्र ने यह छल किया था। 

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