कांग्रेस के लिए कई मायनों में बेहद उतार-चढ़ाव वाला साल रहा 2022

By गौतम मोरारका | Dec 29, 2022

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए साल 2022 काफी उतार चढ़ाव वाला रहा। साल की शुरूआत में हुए पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ का नारा देकर प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा लेकिन इस नारे की पोस्टर गर्ल ही भाजपा में चली गयीं। कांग्रेस ने ना सिर्फ उत्तर प्रदेश में निराशाजनक प्रदर्शन किया बल्कि ऐन चुनावों के समय जिस तरह पार्टी के बड़े नेता जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह आदि भाजपा में गये, उससे यह भी संदेश गया कि कांग्रेस खुद को एकजुट रखने में नाकाम सिद्ध हो रही है। खास बात यह रही कि उत्तर प्रदेश के अमेठी से 15 साल सांसद रहे राहुल गांधी ने विधानसभा चुनावों में बमुश्किल ही पार्टी के लिए प्रचार किया।


उत्तराखण्ड का जबसे गठन हुआ है तबसे वहां एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस का शासन आता रहा है लेकिन इस बार यह रिवाज बदल गया और हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस गुटबाजी की ऐसी शिकार हुई कि सत्ता हासिल करने का उसका सपना चकनाचूर हो गया। ऐसा नहीं है कि भाजपा के खिलाफ नाराजगी नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के नेता आपस में ही भिड़े रहे और भाजपा की कमजोरियों का लाभ नहीं उठा पाये जिससे भगवा दल एक बार फिर सत्ता में आने में कामयाब हो गया।


पंजाब में कांग्रेस को आपसी लड़ाई और बार-बार प्रयोग करने की आदत ले डूबी। कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा कर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दलितों को रिझाने का जो दांव चला था वह ना तो पंजाब और ना ही यूपी में काम आया। चन्नी को काम करने के लिए मात्र 6 महीने का समय मिला था जोकि काफी कम था। उस पर से नवजोत सिंह सिद्धू जिस तरह बयानबाजी कर रहे थे उसके चलते कांग्रेस की नैय्या पूरी तरह डूब गयी।


मणिपुर और गोवा में भी कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई पार्टी को ले डूबी। गोवा में तो कांग्रेस के इतने निराशाजनक प्रदर्शन की कल्पना राजनीतिक विश्लेषकों ने भी नहीं की थी। इसके बाद कांग्रेस में राजस्थान की सत्ता को लेकर जो संघर्ष तेज हुआ, वह तमाम प्रयासों के बावजूद शांत नहीं हुआ है। महाराष्ट्र में भी उद्धव सरकार गिरने के कारण कांग्रेस के हाथ से एक और राज्य की सत्ता में भागीदारी छिन गयी। यही नहीं, दिल्ली नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस का बेहद निराशाजनक प्रदर्शन रहा।

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कांग्रेस ने उदयपुर में चिंतन शिविर के माध्यम से जो लक्ष्य तय किये थे वह हासिल होते हैं या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन साल 2022 कांग्रेस के इतिहास में इसलिए याद रखा जायेगा कि दशकों बाद पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराया गया जिसमें लंबे समय बाद गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति अध्यक्ष बनने में कामयाब रहा। हालांकि गांधी परिवार संगठन चुनावों से दूर रहा लेकिन यह माना गया कि मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का समर्थन प्राप्त है। शशि थरूर ने गाहे बगाहे संकेतों में यह बात कही भी थी।


साल का अंत आते-आते गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए मिले जुले संदेश लेकर आये। गुजरात में जहां कांग्रेस को राज्य की स्थापना के बाद से अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा वहीं हिमाचल में एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस सरकार का रिवाज होने के कारण इस बार कांग्रेस की सरकार बन गयी। इसके अलावा कांग्रेस के लिए यह साल इस मायने में भी महत्वपूर्ण रहा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस संगठन में नई जान फूंकने में कामयाब रही और इससे राहुल की अगंभीर राजनेता की छवि में भी सुधार हुआ।


बहरहाल, आने वाला साल राजनीतिक रूप से कई बड़ी चुनौतियां लेकर आ रहा है, देखना होगा कि कांग्रेस उनका सामना कैसे कर पाती है। कांग्रेस ने हिंदुत्व की राजनीति में जो कदम रखा है, उसके प्रति जनता को विश्वास दिलाना भी एक चुनौती ही है, क्योंकि विरोधी उन्हें चुनावी हिंदू कहकर प्रचारित करते हैं। इसके अलावा राहुल और कांग्रेस का मुकाबला सिर्फ भाजपा या मोदी से नहीं है बल्कि अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, के. चंद्रशेखर राव जैसे अन्य पीएम उम्मीदवारों से भी उन्हें मुकाबला करना है।


-गौतम मोरारका 

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