काशी के दोषी को फांसी: 16 साल पहले का धमाका, 18 मौतों का गुनहगार, बचाने में लगी थी सपा सरकार, कोर्ट ने लगाई फटकार

By अभिनय आकाश | Jun 07, 2022

16 साल पहले की एक शाम, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की वो शाम जब महज 15 मिनट के भीतर एक-एक कर धमाकों की आवाज से सहम उठा पूरा शहर। जिसके बाद लाशों का मंजर और घायलावस्था में उधर-उधर पड़े इंसानों के शरीर। एक गुनहगार, उसे बचाने की कोशिश में लग गई थी एक राज्य की सरकार, फिर सुननी पड़ी थी कोर्ट की फटकार। लेकिन डेढ़ दशक के इंतजार के बाद अब जाकर इस मामले में फैसला आ गया। 

16 साल बाद आया फैसला

16 साल पुराने वाराणसी ब्लास्ट मामले में आरोपी वलीउल्लाह को गाजियाबाद जिला कोर्ट ने फांसी सुनाई है। साथ ही उस पर 2 लाख 65 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। वलीउल्लाह को 4 जून को दोषी करार दिया गया था। उसके वकील की दलील थी कि उसे फंसाया गया है। घर में कमाने वाला कोई नहीं है इसलिए कम से कम सजा दी जाए। दलील सुनने के बाद जिला जज जितेंद्र कुमार सिन्हा ने ब्लास्ट की घटना को दुर्लभ श्रेणी का अपराध माना और फांसी की सजा सुनाई।  

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18 लोगों की गई थी जान 

मोहम्मद वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुना दी गई। 7 मार्च 2006 को शाम के 6:15 के करीब पंद्रह मिनट के अंतराल पर वाराणसी के संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर धमाके हुए थे। इनमें 18 लोगों की मौत हो गई थी और 100 के करीब लोग घायल हो गए थे। प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर भी कुकर बम मिला था। जिसे समय रहते निष्क्रिय कर दिया गया था। हमले में पांच आरोपियों के नाम सामने आए थे। एक को एलओसी पर ढेर कर दिया गया था। जबकि 3 ट्रेस नहीं हो पाए थे। 

 फूलपुर का रहने वाला है वलीउल्लाह

वलीउल्लाह उस वक्त एक मुफ्ती था और प्रयागराज के फूलपुर का रहने वाला था। सीरियल ब्लास्ट मामले में यूपी पुलिस ने 5 अप्रैल 2006 को प्रयागराज जिले के फूलपुर गांव निवासी वलीउल्लाह को गिरफ्तार किया था। पुख्ता सबूतों के साथ पुलिस ने दावा किया था कि संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन वाराणसी पर धमाके की साजिश रचने में वलीउल्लाह का ही हाथ था। पुलिस ने वलीउल्लाह के संबंध आतंकी संगठन से भी बताए थे। 

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ऐसे पहुंची वलीउल्लाह तक पुलिस

साल 2006 की वो दहशत वाली शाम जिसे याद कर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है। जगह-जगह पर इंसानी शरीर के टुकड़े बिखरे पड़े थे। विस्फोट करने वाले दहशतर्द पुलिस की पहुंच से दूर थे। एसटीएफ के साथ मिलकर यूपी पुलिस ने जांच शुरू की। कॉल डिटेल को खंगाला गया। इसके बाद धीरे-धीरे नाम सामने आने लगा। भेलुपर के तत्कालीन उपाधीक्षक त्रिभुवन नाथ त्रिपाठी ने मामले की तफ्तीश शुरू की। कॉल डिटेल की जांच में वलीउल्लाह का नाम सामने आया। वलीउल्लाह की जांच शुरू हुई तो पाया गया कि वो इस हादसे से पहले कभी बनारस गया ही नहीं था। शहर में उसके अचानक आने के तार जब जोड़े गए तो पूरी कहानी निकलकर सामने आ गई।  

 सपा सरकार ने की बचाने की कोशिश

विस्फोट के बाद पुलिस के गिरफ्त में आतंकी वलीउल्लाह के आने के बाद अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार की तरफ से उसे बचाने की भी कोशिश की गई थी। उस वक्त सपा सरकार ने गुपचुप तरीके से मुकदमा वापसी की तैयारी शुरू कर दी थी। विशेष सचिव राजेंद्र कुमार की ओर से इस बारे में एक पत्र जिला प्रशासन को भेजा गया था। लेकिन विरोध शुरू हो जाने पर सरकार को इसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था। अखिलेश यादव ने 2012 में सत्ता में आने से पहले अपने चुनावी घोषणात्र में वादा किया था कि वो सरकार बनने पर देखेगी की किया आतंकी गतिविधियों में मुस्लिम युवकों को फंसाया तो नहीं गया है। अखिलेश यादव ने मुस्लिमों के ऊपर से केस वापस लेने का वादा किया था। सरकार बनने पर अखिलेश यादव की सरकार ने वाराणसी जिला प्रशासन को पत्र लिखकर 14 बिंदुओं पर केस वापसी के बारे में राय मांगी थी। इसके खिलाफ इलाहबाद हाई कोर्ट में कई याचिका दायर की गई जिसके बाद हाई कोर्ट ने अखिलेश यादव सरकार को फटकार भी लगाई थी। अदालत ने इस मामले में काफी सख्त टिप्पणी करते हुए सरकार सवाल किया कि जब कोर्ट में मुकदमा चल रहा है तो सरकार इसे वापस क्यों लेना चाहती है। जस्टिस आर.के .अग्रवाल और जस्टिस आरएस आर मौर्य की पीठ ने कहा, 'आज आप आतंकियों को रिहा कर रहे हैं, कल आप उन्हें पद्म भूषण भी दे सकते हैं।'

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वकीलों से केस लड़ने से कर दिया था मना

वाराणसी के वकीलों ने उसका केस लड़ने से मना कर दिया था। इसके बाद हाई कोर्ट ने यह केस गाजियाबाद जिला जज के न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया। तभी से गाजियाबाद स्थित जिला जज की कोर्ट में केस की सुनवाई चल रही थी। ब्लास्ट केस में वलीउल्लाह, मोहम्मद जुबेर, जकारिया, मुसतकीफ और बशीर के नाम सामने आए थे। जुबेर को 9 मई 2006 को एलओसी के पास मार गिराया था। मुस्तकीफ, जकारिया और बशीर ट्रेस नहीं हो पाए थे। वलीउल्लाह के कब्जे से पुलिस ने पिस्टल और विस्फोटक बरामद किए थे।

विस्फोट में जान गंवाने वाले युवक के पिता ने फैसला सुना तो गला रुंध गया। उन्होंने कहा कि देर से ही सही लेकिन न्याय मिला। वैसे तो देर से न्याय मिलना कोई न्याय मिलने की परिभाषा में आता नहीं है। हमें न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। 

-अभिनय आकाश 


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