भक्तों के रोग-शोक को दूर करता है शीतलाष्टमी का व्रत

sheetla mata

हिंदू धर्म में देवी पूजा का खास महत्व है तथा शीतला माता हिन्दुओं की प्रमुख देवी है। शीतला माता के बारे में स्कंद पुराण में भी विस्तार से बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता बहुत प्रतापी हैं तथा वह भक्तों को रोगों से दूर करती हैं।

हिन्दू धर्म में देवी पूजा का खास महत्व है। शीतलाष्टमी की पूजा भी विशेष फलदायी होती है जिसे बसौड़ा व्रत के नाम से जाना जाता है। यह पूजा होली के आठवें दिन की जाती है तो आइए हम आपको शीतलाष्टमी व्रत की पूजा-विधि तथा महत्व के बारे में बताते हैं।

जानें शीतलाष्टमी के बारे में

चैत्र महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को शीतलाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस साल यह व्रत 16 मार्च पड़ रहा है। शीतलाष्टमी की खास बात यह है कि यह त्योहार होली के एक हफ्ते बाद मनाया जाता है। होली के आठवें दिन मनाए जाने वाले शीतलाष्टमी के व्रत में मां शीतला देवी की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। शीतला अष्टमी को बसौड़ा और लसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो यह त्यौहार पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है लेकिन राजस्थान में खासतौर से बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।

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रोगों से दूर करता है शीतलाष्टमी का व्रत 

हिंदू धर्म में देवी पूजा का खास महत्व है तथा शीतला माता हिन्दुओं की प्रमुख देवी है। शीतला माता के बारे में स्कंद पुराण में भी विस्तार से बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता बहुत प्रतापी हैं तथा वह भक्तों को रोगों से दूर करती हैं। वैसे तो शीतला माता सभी प्रकार के रोग-शोक को दूर कर भक्तों को सुख प्रदान करती हैं लेकिन चेचक जैसे रोगों को मुक्ति दिलाने में उनकी विशेष कृपा है। मां शीतला देवी के स्वरूप विशेष प्रकार है। देवी अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते लिए हुए गदर्भ पर सवार दिखाई देती हैं। शीतला माता के साथ कुछ अन्य देवी-देवता भी मौजूद होते हैं उनमें ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, चौंसठ रोग, हैजे की देवी, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी प्रमुख हैं।

जानें मुहूर्त के बारे में  

शीतला अष्टमी– सोमवार 16 मार्च 2020

शीतला अष्टमी के दिन पूजा का मुहूर्त –प्रातः 6:46 बजे से सायं 06:48 बजे तक

शीतला सप्तमी- रविवार 15 मार्च 2020

शीतला अष्टमी का महत्व 

हिन्दू धर्म में शीतलाष्टमी की पूजा का खास महत्व है लेकिन शीतला माता की पूजा अनोखे ढंग से होती है। शीतलाष्टमी के दिन पूजा कर देवी को भोग लगाने के विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। अष्टमी के दिन ये बासी पकवान देवी को भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है शीतलाष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है और लोग प्रसाद स्वरूप बासी खाना खाते हैं। 

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शीतला अष्टमी पर ऐसे करें पूजा

शीतलाष्टमी का दिन बहुत खास होता है इसलिए इस सुबह जल्दी उठें और सूर्योदय से पहले नहा लें। नहाने के बाद साफ कपड़े पहन कर घर की साफ-सफाई करें। उसके बाद घर के मंदिर की सफाई कर शीतला माता को याद करें। अब पवित्र मन से व्रत का संकल्प लें और शीतलाष्टक का पाठ करें। देवी-देवताओं को प्रसाद का भोग लगाएं। प्रसाद विशेष प्रकार से बनाएं, प्रसाद में दही, राबड़ी, गुड़ और कई अन्य जरूरी चीजें अवश्य अर्पित करें। प्रसाद अर्पित कर ईश्वर से आर्शीवाद लें। उसके बाद, घर के बुजुर्ग लोगों का आर्शीवाद लें और गरीब लोगों को दान दें। उसके बाद शाम को पूजा के बाद व्रत खोल कर भोजन ग्रहण करें।

इस व्रत में ही खाया जाता है ठंडा खाना 

हिन्दू धर्म के सभी व्रतों में शीतला माता का ही व्रत ऐसा है जिसमें प्रसाद के रूप में शीतल यानी ठंडा खाना खाया जाता है। इस व्रत में बासी भोजन खाने के कारण इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार शीतला मां की पूजा-अर्चना और इस व्रत में ठंडा या बासी भोजन करने से संक्रमण एवं अन्य तरह की बीमारियां नहीं होती है।

प्रज्ञा पाण्डेय

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