बैटरियों से धातु निष्कर्षण की शून्य अपशिष्ट आधारित तकनीक

By उमाशंकर मिश्र | Feb 12, 2020

नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): मोबाइल उपकरणों की बढ़ती मांग के साथ-साथ उससे पैदा होने वाले ई-कचरे की मात्रा भी बढ़ रही है। भारतीय शोधकर्ताओं ने शून्य अपशिष्ट की अवधारणा पर आधारित ऐसी तकनीक विकसित की है, जो लीथियम बैटरियों के कचरे से कोबाल्ट और लीथियम जैसी मूल्यवान धातुओं को अलग करने में उपयोगी हो सकती है। 

 

राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल), जमशेदपुर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह तकनीक हाल में फिरोजाबाद की कंपनी यूनिक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित की गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक से लीथियम आयन बैटरियों के घटकों और उनमें उपयोग होने वाले ब्लैक पाउडर से कोबाल्ट और अन्य मूल्यवान धातुओं को आसानी से अलग किया जा सकेगा।

इसे भी पढ़ें: नई तकनीक से बन सकेंगे किफायती नैनो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरण

भारत में बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपात में उनसे निकलने वाले ई-कचरे के निपटारे की दर बेहद धीमी है। सही निपटारा न होने, बैटरियों के कचरे के संग्रह की गलत प्रणाली और किफायती प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी के अभाव के कारण मोबाइल फोन की बैटरियों के कचरे में पायी जाने वाली मूल्यवान धातुओं का नुकसान उठाना पड़ता है। दूसरी ओर, ये धातुएं पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती हैं।

 

ई-कचरे से कोबाल्ट को अलग करने की इस प्रक्रिया की खासियत यह है कि इसमें प्लास्टिक और कोबाल्ट, लीथियम, मैगनीज, निकल और कॉपर जैसी धातुओं के निष्कर्षण की पद्धति शामिल है। इसी कारण, इसे शून्य अपशिष्ट आधारित तकनीक बताया जा रहा है। इस प्रक्रिया की जांच प्रयोगशाला में विभिन्न अध्ययनों में की गई है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि ई-कचरे से धातुओं के निष्कर्षण की यह पद्धति पर्यावरण के अधिक अनुकूल है।

 

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक के उपयोग से ई-कचरे की समस्या से न केवल निजात मिल सकता है, बल्कि कचरे का पुनर्चक्रण करके पर्यावरण को बचाने में भी मदद मिल सकती है। ई-कचरे के सुरक्षित निपटारे और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने के लिए एनएमएल और यूनिक इंडिया के बीच एक करार किया गया है। इस समझौते के परिणामस्वरूप लीथियम बैटरियों से कोबाल्ट और ब्लैक पाउडर से सॉल्ट अलग करने को बढ़ावा मिल सकेगा।

इसे भी पढ़ें: कैंसर थैरेपी में उपयोगी हो सकता है बालों का कचरा

मोबाइल उपकरणों के बढ़ने के साथ-साथ बैटरियों समेत विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कचरे का बोझ भी बढ़ रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में कॉपर, निकल, सोना, चांदी, लेड और टिन जैसी धातुएं पायी जाती हैं। इन धातुओं का सही निपटारा न किया जाए तो पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए खतरा बढ़ सकता है। एनएमएल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनीष कुमार झा ने बताया कि ई-कचरे के सुरक्षित निपटारे के लिए हम नई प्रौद्योगिकियों के साथ तैयार हैं, जो स्वास्थ्य, कृषि और उद्योगों के लिए उपयोगी हो सकती हैं।

 

एनएमएल के निदेशक डॉ. इंद्रनील चट्टोराज ने बताया कि “जिस गति से इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ बढ़ रहा है वह एक चुनौती है। इस चुनौती को देखते हुए ई-कचरे के प्रबंधन को तेज करने की जरूरत है।” उन्होंने कहा कि ई-कचरे के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने के लिए एनएमएल उद्योगों के अनुकूल प्रौद्योगिकियों का विकास किया है। बड़े पैमाने पर ई-कचरे के उपयुक्त प्रबंधन के लिए बेहद कम समय में ऐसी 10 तकनीकें उद्योगों को हस्तांतरित की गई हैं। उन्होंने कहा कि यह पहल स्वच्छता अभियान में भी एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकती है। 

 

(इंडिया साइंस वायर)

प्रमुख खबरें

Sports Recap 2024: जीता टी20 वर्ल्ड कप का खिताब, लेकिन झेलनी पड़ी इन टीमों से हार

यहां आने में 4 घंटे लगते हैं, लेकिन किसी प्रधानमंत्री को यहां आने में 4 दशक लग गए, कुवैत में प्रवासी भारतीयों से बोले पीएम मोदी

चुनाव नियमों में सरकार ने किया बदलाव, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के सार्वजनिक निरीक्षण पर प्रतिबंध

BSNL ने OTTplay के साथ की साझेदारी, अब मुफ्त में मिलेंगे 300 से ज्यादा टीवी चैनल्स