By अशोक मधुप | Oct 05, 2021
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सक्रियता से लखीमपुर प्रकारण जल्दी ही टांय−टांय फिस हो गया। इस प्रकरण की मिसाइल की बारूद आग ही नहीं पकड़ सकी, जिसे कुछ विपक्षी राजनीतिक दल और खतरनाक बनाकर छोड़ने की तैयारी में थे। वह तो इस प्रकरण को गरमाने और इस पर राजनीतिक रोटियां सेंकने में कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। योगी की विशेषता है त्वरित निर्णय लेना। वही सक्रियता उन्होंने यहां दिखाई। उधर लखीमपुर खीरी में हुई मौत पर राजनीतिक दलों ने जितनी सक्रियता दिखाई, इतनी सक्रियता इससे पहले कभी नही देखी गई। हालात यह रहे कि प्रियंका गांधी रात में ही लखीमपुर के लिए निकल पड़ीं। ओवैसी हैदराबाद से चल पड़े। अखिलेश बहुत सवेरे ही निकलने लगे। यहां तक कि पंजाब के नए बने मुख्यमंत्री चरण जीत सिंह चन्नी को भी दो दिन में पर निकलने लगे। वे भी लखीमपुर प्रकरण की आग में रोटी सेंकने में लग गए। उत्तर प्रदेश सरकार से घटनास्थल के आसपास अपने हेलीकॉप्टर को लैंड कराने की अनुमति मांगते रहे।
देश के राजनीतिक दल सोचने समझने की क्षमता शायद खो चुके हैं। चुनाव मैदान में आकर अब उनकी जीतने की कूवत नहीं रही। वे एक तरह की घटनाओं पर राजनीतिक रोटी सेंकने में लग गए। कलकत्ता से भी बयान आने लगा। ममता बनर्जी बंगाल में विजयी होकर अपने को भावी प्रधानमंत्री समझ रहीं हैं। किसी ने इस घटनाक्रम की सच्चाई को जानना भी गंवारा नहीं समझा। इस मामले में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने अपनी बुद्धिमत्ता का जरूर परिचय दिया। उन्होंने इस मामले में समझौता कराने में देर नहीं लगाई। जिससे राजनैतिक दलों की फूं−फा स्वतः बंद हो गयी। मामला क्या था ॽ क्या नहीं ॽ इसके लिए न्यायिक जांच बैठा दी गई है। उसमें सच्चाई निकल कर सामने आ जाएगी। पर जिस तरह की सूचनाएं आ रही हैं, वह ठीक नहीं हैं। प्रदर्शनकारियों में शामिल एक व्यक्ति भिंडरावाला की चित्र लगी शर्ट पहने हुए है। एक कार के चालक को आंदोलनकारी डंडों से मार रहे हैं। उसे जबरदस्ती कुछ कबूल करवाना चाहते हैं। न मानने पर उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी जाती है। इस प्रकरण की वीडियो बनाने वाले की साइड में एक व्यक्ति काला झंडा लिए हुए है। उस झंडे पर भिंडरावाला का निशान साफ चमक रहा है। क्या भिंडरावाले के चित्र बनी शर्ट और भिंडरावाले का झंडा किसी षड्यंत्र का संकेत नहीं दे रहे ॽ क्या ऐसा नहीं लगता कि किसानों में कुछ अराजक तत्व नहीं घुस गए हों ॽ जैसा कि 26 जनवरी को लालकिले पर हुआ था। लखीमपुर खीरी तराई बेल्ट का सिख बहुल जिला का है। इसके नेपाल से सटे होने पर यह भी संभावनाएं हैं कि यहां के लोगों में खालिस्तान और भिंडरावाला के नाम पर जहर घोला जा रहा हो। यह सब जांच का विषय है और जांच में खुलकर सब सामने आ जाएगा।
इस पूरे प्रकरण में एक पत्रकार की मौत अलग कहानी कहती है। घटनास्थल पर प्रदर्शन के दौरान, कवरेज करते पत्रकारों पर हमला हुआ तो एक पत्रकार को पीट-पीटकर मार डाला गया। उसकी लाश को छिपाने की कोशिश की गई। अगले दिन जाकर लाश मिली। पत्रकार के शव को छिपाने में किसका लाभ था, क्यों छिपाया गया, यह बात समझ से परे है ॽ पत्रकार के शव को छिपाने के राज का भी जांच के दौरान पता
लगाने की जरूरत है ? यह भी पता लगाने की जरूरत है कि क्या प्रदर्शन करने वालों में कुछ गलत लोग भी थे ॽ जो चाहते थे मौके कि कवरेज न हो, ना मानने वालों पर उन्होंने हमले किए और एक पत्रकार को मार डाला।
उप मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर के उतरने की जगह पर कब्जा करना, प्रदर्शन करना, तो समझ में आता है। पर हेलीपैड के आसपास लगे झंडे फाड़ना आंदालनकारियों की नीयत पर सवाल खड़े करता सवाल खड़े करता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी सुनवाई के दौरान इस प्रकरण पर नाराजगी जाहिर की है। कहा है कि आंदोलन की अनुमति मांगने वाले आंदोलन के हिंसक होने, लखीमपुर जैसी घटना होने पर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं।
कुछ भी हो इस प्रकरण को समाप्त करने में, समस्या का निदान निकालने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी नाथ आदित्यनाथ कि जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उनकी सूझबूझ की तारीफ करनी पड़ेगी। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी इस मामले में समझौता कराकर ये बता दिया कि उनकी रूचि समस्या के निदान में है। समस्या बढ़वाने में उनकी रूचि नहीं है।
एक चीज और है। देखने में आ रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के कुछ विधायक और सांसदों की जबान पर नियंत्रण नहीं है। वे कब क्या बोल दें, यह नहीं कहा जा सकता। भारतीय जनता पार्टी को अपने कार्यकर्ता, विधायक और सांसद, मंत्री सब को निर्देश देने होंगे कि वह अपनी जुबान पर काबू रखें। उल्टे सीधे बयन ना दें। ऐसी बात ना करें, जिसका लोग राजनीतिक लाभ उठाने में लग जाएं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने अगर किसानों के बारे में गलत बयान न दिया होता, तो यह घटना कभी नहीं होती। कुछ समय से यह भी देखने में आ रहा है कि कुछ भाजपा विधायक और सांसद पार्टी के नियंत्रण से बाहर हैं, इनकी गतिविधि पर भी पार्टी को ध्यान देना होगा, इन्हें भी समझाना होगा।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)