By डॉ दिनेश चन्द्र सिंह | Apr 07, 2022
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम में अगाध आस्था रखने वाले और समग्र मानव कल्याण के प्रति निष्पक्षता एवं समानता के भाव से समर्पित होकर कार्य करने वाले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कुछ लिखना यानी अभिव्यक्त करने की विद्वता एवं अनुभव मुझमें नहीं है। क्योंकि सन्त-महन्त की साधना को समीप से जाने एवं अनुभव किये बिना कुछ भी अभिव्यक्त करना तार्किक रूप से उचित नहीं है। हालांकि मैंने उनको बहुत नजदीक से अनुभव किया एवं वर्षों से आशीर्वाद प्राप्त करता रहा।
यदा-कदा कुछ क्षण पश्चिमी उत्तरप्रदेश की सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि पर विस्तारपूर्वक संवाद करने का अलौकिक अवसर भी प्राप्त हुआ। यह अवसर पूर्वी उत्तर प्रदेश स्थित गोरखपुर में अपर जिलाधिकारी- वित्त एवं राजस्व की तैनाती के दौरान भी प्राप्त हुआ। इस सन्दर्भ को मैं अतीत की स्मृतियों से विस्तारपूर्वक अनावृत करना चाहूंगा। लोगों को आपके स्नेही व कल्याणकारी व्यक्तित्व की एक मिशाल का स्मरण कराना चाहूंगा ताकि सबको यह पता चल सके आप कितने स्नेहसिक्त व्यक्तित्व के स्वामी हैं।
एक बार की बात है। जब मेरा स्थानान्तरण गोरखपुर से मेरठ के लिए वर्ष 2015 में हुआ तो 18 जून, 2015 को श्री गोरखनाथ मन्दिर से फोन आया कि योगी आदित्यनाथ जी का स्नेह पूर्वक निर्देश है कि आपको मेरठ जाने से पूर्व मठ यानी मन्दिर पर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सपरिवार बुलाया गया है। उत्सुकता वश मैं मन्दिर से प्राप्त आशीर्वाद से अभिसिंचित स्नेह एवं आमंत्रण को स्वीकार करते हुए परिवार सहित मन्दिर पहुंच गया और सपरिवार उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किया। वहां क्या बातें हुई, उसका वर्णन कर मैं उनके आशीर्वाद को भुलाना नहीं चाहता हूँ।
निःसन्देह योगी आदित्यनाथ जी एक महान सन्त हैं और संवेदनशील शासकीय व्यक्तित्व के स्वामी भी। हम सब जानते हैं कि सन्त सदैव परहित एवं जनकल्याण के लिये ही मानव के रूप में ईश्वर के प्रतिनिधि के तौर पर समाज हित के लिए सांसारिक माया मोह एवं भौतिक संसार के सुखों के आकर्षण को त्यागकर जनकल्याणार्थ बनने का दृढ़ संकल्प धारण करते हैं। उसी युगीन परम्परा के संत-महन्त परम श्रद्धेय योगी आदित्यनाथ जी हैं। कहना न होगा कि महन्त बनना मात्र गेरूआ वस्त्र को धारण करने की प्रक्रिया नहीं है, अपितु अपनी आन्तरिक संरचना के नैसर्गिक आवेग-संवेग को त्यागकर धार्मिक वृत्तियों को धारण कर वैश्विक जगत के कल्याण हेतु आध्यात्मिक जगत एवं समाज और राष्ट्रहित के लिये कार्य करने की युगों-युगों से चली आ रही परम्परा है, जिसे उन्होंने परमार्थ हेतु आत्मसात किया है। यहां समाज एवं मानव कल्याण में ही वन्य जीव जन्तुओं के कल्याण का भी भाव निहित है।
इसी परम्परा एवं भावना के साथ योगी आदित्यनाथ जी ने गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर सर्वोच्च सन्त, धार्मिक आस्था के युगीन प्रतिबिम्ब महन्त अवैद्यनाथ जी के गुरुत्व में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर नाथ सम्प्रदाय की परम्परा को अंगीकार किया। हम सब जानते हैं कि नाथ सम्प्रदाय स्वयं युगों से मानव कल्याण के प्रति धार्मिक आस्था का केन्द्र बिन्दु रहा है। उसी दीक्षा से पल्लवित-पुष्पित सन्त से गोरक्षनाथ पीठ के महंत तक की उनकी यात्रा हिन्दू धर्म एवं समाज के प्रति योगी जी के द्वारा किये जा रहे निःस्वार्थ कर्म का परिणाम है।
सच कहा जाए तो गोरखपुर की पीठ के महन्त योगी आदित्यनाथ जी हिन्दू धर्म के प्रति अगाध आस्था रखने वाले करोड़ों जनसमुदाय के लिये श्रद्धेय हैं। उन्होंने अपनी कर्मठता, अनुशासनप्रियता, निष्ठा, बिना भय एवं पदीय लालसा के हिन्दू धर्म के अनुयायियों की पीड़ा, वेदना, यातना, शोषण के खिलाफ मुखर आवाज उठाकर उन धर्मनिरपेक्ष चेहरों को बेनकाब किया है जो धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनकर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति के अन्तर्गत हिन्दू धर्म के अनुयायियों के कष्टों, उनकी पीड़ा, वेदना को जन आन्दोलन का रूप नहीं देने दे रहे थे।
अर्थात हिन्दुओं के प्रति हो रहे अन्याय एवं शोषण को सार्वजनिक रूप से कहने से कतराते थे।
समय के सापेक्ष ऐसे व्यक्तियों को खुली चुनौती देकर श्री योगी आदित्यनाथ जी 1998 से 2017 तक एक सन्यासी यानी योगी के रूप में एवं एक सांसद के रूप में न केवल जनमानस की आवाज बने, अपितु हिन्दुत्व के प्रति गहरी आस्था एवं लगाव के कारण हिन्दुओं के शुभेच्छु एवं संरक्षक बनकर उनकी पीड़ा को दूर करने का पुनीत कार्य किया।
जहां तक हमारे धार्मिक ग्रन्थों में सन्तों के स्वभाव एवं उनकी समाज कल्याण के भाव का वर्णन किया हुआ है, उसको मैं यहां उद्धृत करना चाहूंगा। सन्तों का कार्य ही सबके कष्टों के निवारण है। उसी सन्दर्भ में मुझे मानस के काकभूसण्डी संवाद का मार्मिक प्रसंग उदृत करना अपरिहार्य होगा:
नहिं दरिद्र सम दुख माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार वचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया॥
कहने का तातपर्य यह कि शरीर रूपी इस संसार में दरिद्रता के समान दु:ख नहीं है तथा संतों के मिलने के समान सुख नहीं है। और, मन से परोपकार करना ही संतों का सहज स्वभाव है।
संत सहहि दुख पर हित लागी। पर दुख हेतु असंत अभागी॥
भूर्ज तरू सम संत कृपाला। पर हित निति यह बिपति बिसाला॥
कहने का अभिप्राय यह कि वचन और सन्त दूसरों की भलाई के लिए दुःख सहते हैं, जबकि असन्त दूसरों को दुःख पहुंचाने के लिए। कृपालु सन्त भोज-वृक्ष के समान दूसरों के हित के लिए भारी विपत्ति सहते हैं, दुःख सहन करते है। योगी जी सन्त हैं, इसलिए धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित गुणों को उनमें स्वतः ही योग है।
संत उदय संतत सुखकारी। विस्व सुखद जिमि इंदु तमारी॥
परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा। पर निंदा सम अप न गरीसा॥
कहने का आशय यह कि सन्तों का अभ्युदय सदा सुखकर ही होता है, जैसे चन्द्रमा और सूर्य का उदय संसार भर के लिए सुखदायक है। वेदों में अहिंसा को परम धर्म माना गया है और परनिंदा के सामान भारी कोई पाप नहीं है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि कोविड-19 की वैश्विक महामारी से जनता भयाक्रान्त थी। भय का ऐसा वातावरण किसी ने भी अपने जीवन काल में नहीं देखा होगा। जैसा वातावरण कोविड-19 महामारी की द्वितीय लहर में मार्च 2021 से मई-जून 15, 2021 कालखण्ड में देखा गया, वैसा इससे पहले कभी नहीं। उस दौर में अधिकांश सरकारें अपने सम्पूर्ण संसाधनों से कोविड-19 की वैश्विक महामारी से निपटने का प्रयास कर रही थीं।
उसी समय मानवता के उद्धार के लिए सन्त एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में यानी कि योगी आदित्यनाथ के रूप में एक ऐसा व्यक्ति जो सामान्य कद काठी, साधारण, सरल व सहज वेशभूषा को धारण कर निकल पड़े, उत्तर प्रदेश की कराहती जनता के कष्टों के निराकरण के लिए। जबकि अन्य सभी नेता गण बन्द घरों के अन्दर बैठकर टीवी पर ही आ रही खबरों के आधार मात्र से आलोचना कर अपने कर्तव्यों की इति श्री मान रहे थे।
ऐसे भयावह समय में जब चारो ओर घनघोर निराशा एवं अंधकार का वातावरण बना हुआ था, उसी समय मानवता की रक्षा करने के लिए, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के प्रति अगाध आस्था रखने वाले उत्तर प्रदेश की जनता के मुखिया के रूप में एक सन्त रूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी निकल पड़े, अपनी प्राणों की रक्षा के प्रति लापरवाह होकर। क्योंकि उन्हें चिन्ता थी जनमानस के स्वास्थ्य की, उन्हें चिन्ता थी जनकल्याण के लिए कार्य करने की।
मैंने तद्समय में भी एक लेख लिखा था जो जनसत्ता एवं अन्य महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था। वह यह कि कर्म के प्रति अडिग रहकर मानव की सेवा में जुटा व जुड़ा एक ऐसा योद्धा है जो सामान्य कद काठी का होते हुए भी प्रभु श्री राम जी की कृपाशक्ति से सन्त की साधारण वेशभूषा में सीएम योगी आदित्यनाथ के रूप में कोविड-19 के संक्रमण से पीड़ित मानवों के जीवन की रक्षा एवं पीड़ितों व मानवों के लिये दवाईयों एवं ऑक्सीजन के संकट से निपटने हेतु असाध्य एवं कठोर श्रम किया। उनने प्रदेश भ्रमण कर भयंकर महामारी दौर में ट्रेस, टेस्ट & ट्रीटमेंट यानी कि 3 टी के भाव को आत्मसात करते हुये कोविड-19 के संक्रमण पर विजय प्राप्त की। कहने का अभिप्राय यह है कि जनता के सुखों की प्राप्ति के लिए सन्तरूपी मानव योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाये जाने से न केवल जनता का कल्याण हुआ अपितु सन्त स्वभाव के कारण धर्म की भी उन्नति हुयी।
इस प्रकार मिशन शक्ति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान एवं स्वावलम्बन की दिशा में बहुआयामी दूरदर्शी अभियान है, जो भारतीय संस्कृति की उस विचारधारा का संवाहक एवं आधारशिला पर केन्द्रित है, जिसमें महिलाओं और बालिकाओं की सुख-समृद्धि, वैभव को सभी प्रकार की उन्नति का द्योतक कहा है।
नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक न करे, न वे उदास होने पाएं... हमारी संस्कृति के मूलाधार मनुस्मृति में यह उपदेश दो बार दिया है। शोचन्ति जमायो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् न शोचन्ति तु यत्रेता वर्धते तद्धि सर्वदा। यानी कि जिस कुल में नारियां शोकमग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियां शोकमग्न नहीं रहती है, उस कुल की सर्वदा उन्नति होती है।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलः क्रियाः॥ यानी कि जहां नारियों की पूजा होती हैं, वहाँ देवता निवास करते हैं जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती, वहाँ के सारे कर्म व्यर्थ हैं।
नरं नारि प्रोद्धरति मज्जन्तं भववारिधी। यानी कि संसार-समुद्र में डूबते हुये नर का उद्धार नारी ही करती है। इसलिए मुख्यमंत्री ने उपेक्षित बालिकाओं और महिलाओं के सर्वांगीण उन्नति के लिये मिशन शक्ति अभियान जैसी महत्वाकांक्षी योजना को मिशन शक्ति का स्वरूप देकर नारी सुरक्षा, सम्मान एवं स्वालम्बन की दिशा में सराहनीय अनुकरणीय अद्भुत एवं अविस्मरणीय कार्य कर राष्ट्र की मूल धारा से जोड़कर नारी शक्ति की उस परम्परा को पुनर्जीवित किया, जिसके अन्तर्गत हम माँ एवं शक्ति रूप में नवरात्रि में शक्ति के विभिन्न नवरूपों की पूजा एवं आवाहन करते हैं। अतः यह योजना नहीं है अपितु उस भाव का प्रस्फुटन है, जिसमें बालिकाओं एवं महिलाओं के सभी प्रकार के अधिकारों को सम्मान के साथ सुरक्षित रखकर उनकी भारतीय लोकतंत्र में सक्रिय एवं अपेक्षित सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।
शासकीय योजनाओं का निष्पक्षता, पारदर्शिता एवं कठोरता के साथ क्रियान्वयन हुआ एवं राष्ट्र के प्रति जनता में प्रेम को स्थायित्व मिला तथा प्रभु श्री राम की कृपा से धार्मिक आस्था के प्रतीक राम मन्दिर के निर्माण का कार्य सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एवं सभी के सहयोग से सहिष्णुता पूर्वक बिना किसी हिंसा के अहिंसा के आत्मबल के सहारे पूर्णता की ओर है। इसी के कारण जनता ने सामान्य विधानसभा निर्वाचन-2022 में योगी आदित्यनाथ के प्रति लोकतंत्र में आस्था रखते हुये प्रचण्ड बहुमत के साथ सरकार के गठन यानी राजतिलक के लिए विश्वास अभिव्यक्त किया तथा सुदृढ़ विपक्ष के लिये अखिलेश यादव को जनता ने अपना मत दिया, जिससे सन्तुलन की परिस्थिति बने और जनकल्याण की योजनाओं को आगे बढ़ाने में भारतीय संविधान में दी गयी व्यवस्था के अनुरूप आलोचना की भी गुंजाइश रहे। परन्तु अकारण निन्दा, औचित्यहीन एवं साक्ष्यहीन आलोचना विकास की राह (मार्ग) को प्रशस्त नहीं कर सकती है। अकारण सन्त निन्दा करने का परिणाम बहुत भयानक होता है।
श्री रामचरित मानस में उल्लेख है कि
सुरश्रुति निर्दक जे अभिमानी। रौरव नरक परहि ते प्रानी॥
होहि उलूक संत निंदा रत। मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत॥
सब के निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।।
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा॥
कहने का आशय यह कि सन्तों की निंदा में लगे जीव उल्लू होते हैं और जो मूर्ख सबकी निंदा करते रहते हैं, वे चममादड़ के रूप में जन्म लेते हैं। लोकतंत्र में आलोचना, विरोध एवं प्रदर्शन का अधिकार है, परन्तु हमें अपने विवेक से सभी तथ्यों का अध्ययन कर अविवेकपूर्ण कार्यों एवं नीतियों का विरोध अवश्य करना चाहिए, परन्तु केवल इसलिए विरोध श्रेयस्कर एवं राष्ट्र हित में नहीं है कि हम सत्ता में नहीं है तो विरोध ही हमारी ताकत है। इससे सबको बचना चाहिए और तुष्टिकरण किसी का नहीं होना चाहिए। विकास सबका हो, सभी पीड़ितों, वंचितों की आवाज सरकार सुने तथा निष्पक्ष भाव से सभी के कल्याणार्थ योजनाओं की शुरूआत हो, ऐसा सभी लोकप्रिय सरकारों एवं लोकप्रिय सरकार के मुखिया से अपेक्षित है।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर योगी आदित्यनाथ की कार्यप्रणाली में ऐसे भाव का दर्शन होता है, जो निसंदेह कल्याणकारी और राष्ट्र के विकास के लिए हितकारी है और आगे भी होगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विषय में मुझे अल्बर्ट आइन्सटीन की प्रसिद्ध पंक्ति का स्मरण आता है कि "Generations to come will scare believe that such a one as this ever flesh & blood walked upon this earth." कहने का तातपर्य यह कि "भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हांड़मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी धरती पा आया था।"
जिसने सम्पूर्ण मानवता को सत्य, अहिंसा, सहसहिष्णुता और करुणा के मार्ग को, जो हमारे धार्मिक ग्रन्थों में पूर्व से समाहित थे, मानवता के कल्याण के लिए सबके सम्मुख लगकर स्वीकार्य बनाया और महान वैज्ञानिक को उपरोक्त भाव अभिव्यक्त के लिए बाध्य किया। क्योंकि गांधी अपने आप में एक विचार थे। गांधी युवा पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं एवं रहेंगे। गांधी के विचारों ने दुनियाभर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शान्ति की दृष्टि से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कुछ इसी प्रकार की परिस्थितियां पिछले वर्ष थी, जब सभी भयाक्रान्त थे और कैसे इस महामारी से सामना किया जाय, इसके लिये वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर रिसर्च चल रही थी। तद्समय लोकतंत्र में शक्ति का केन्द्र बिन्दु मतदाता है। इसलिए मतदाताओं के विश्वास को स्थायी रूप से जीतने के लिए सभी को अपनी विचारधारा के साथ जनमत का विश्वास जीतने की स्वतंत्रता हमारे संविधान में है। इसके लिए सभी को प्रयत्नशील रहना चाहिए, परन्तु जनमत की भावना का स्पष्ट संदेश है कि नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की जुगल जोड़ी अखण्ड एवं अपराजेय राष्ट्र के देवतुल्य मतदाताओं के अनवरत आशीर्वाद से सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिये इसी भाव से कार्य करती रहे। यही इच्छा सभी जनमानस की है और ऐसा होना जनहित यानी मानव कल्याण एवं राष्ट्र के विकास के लिये अपरिहार्य है और सभी को स्वीकार्य है।
अंत में सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि यह लेखक की व्यक्तिगत अनुभूति है। इसमें किसी प्रकार के महिमा मण्डन का प्रयास नहीं किया गया है अपितु जो विगत दो वर्षों में कार्यों से अनुभव किया गया, उसको ही यथार्थ के धरातल पर अभिव्यक्त करने का एक सहज प्रयास भर किया गया है, जो किसी भी बुद्धिजीवी का आपद धर्म समझा जाता है। ताकि लोगों की अच्छाई प्रकट हो और लोग उससे उत्प्रेरित हों। जय हिन्द।
- डॉ दिनेश चन्द्र सिंह,
आईएएस, डीएम बहराइच, यूपी