हमारे गौरवशाली सनातन धर्म में हम सभी का अपनी मिट्टी में लालन-पालन करने वाली पृथ्वी को माँ का दर्जा दिया गया है, दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण करके पृथ्वी की रक्षा करने को समर्थन देने के लिए 22 अप्रैल 2020 को हम सभी लोग लॉकडाउन में रहकर सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों के द्वारा पृथ्वी की रक्षा करने के संदेशों का आदान-प्रदान करके "पृथ्वी दिवस" मनाकर पृथ्वी माँ के प्रति अपनी सभी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लेंगे। आज जिस समय सम्पूर्ण विश्व बेहद गंभीर कोरोना वायरस संक्रमण की आपदा से जूझ रहा है। जिसके बचाव के लिए विश्व के अधिकांश भागों में लॉकडाउन जारी है, जिसके चलते लोगों को बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इस दौरान हम सभी लोगों को पृथ्वी पर फलने-फूलने वाली बेहद खूबसूरत प्रकृति के तरह-तरह के सुंदर अनमोल नजारे भी देखने को मिल रहे हैं।
एकाएक विश्व में सब कुछ बंद होने के चलते हर तरफ बेहद शांति है, वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का कंपन तक कम हो गया है, इस अद्भुत शांति का प्रकृति प्रेमी लोगों के साथ-साथ वन्यजीव-जंतु भी भरपूर आनंद ले रहे हैं, सबसे बड़ी अच्छी बात यह है कि भारत में पर्यावरण को लॉकडाउन से संजीवनी मिली है, हवा-पानी एकाएक साफ हो गये हैं। जिस तरह से हम लोगों ने अंधाधुंध शहरीकरण करके अव्यवस्थित विकास के नाम पर पृथ्वी को खोखला करके हर जगह भारी उथलपुथल मचाकर प्रकृति का अपने हाथों से विनाश किया है, आज उसके चलते प्राकृतिक संतुलन की स्थिति बहुत ही चिंताजनक हो गयी है। कहीं ना कहीं आये दिन हम लोगों को विनाश की तर्ज पर किये गये विकास का खामियाजा प्रकृति के अलग-अलग तरह के प्रकोप के रूप में उठाना पड़ता है। जब से हम लोगों ने शहरी सभ्यता की ओर बढ़ने की चाह में पृथ्वी पर तरह-तरह के अत्याचार करने शुरू किये उसके चलते पृथ्वी का अस्तित्व तो हमेशा बना रहेगा, लेकिन अगर सब कुछ इसी तरह अंधाधुंध अव्यवस्थित ढंग से चलता रहा तो मानव सभ्यता के अस्तित्व पर एक दिन जरूर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। जिस ढंग से हमने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करके जंगलों को साफ करना शुरू किया, जगह-जगह बिना किसी व्यवस्थित प्लानिंग के कल-कारखाने लगाए, पक्के घर बनाए, आसमान तक जाती गगनचुंबी इमारतें बनाईं, नदियों के प्रवाह को रोककर बड़े-बड़े डैम बनाए, पृथ्वी का सीना चीरकर जगह-जगह बड़े पैमाने पर खनन किया, यह हमको विकास के रूप में आज तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा है कि इस विकास की हमको आने वाले समय में क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। वैसे भी हम लोगों के गलत व्यवहार के चलते पेड़-पोधों के अंधाधुंध कटान व वन्यजीवों पर अत्याचार के चलते आज दुनिया में बहुत सारी प्रजातियों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो गया या फिर बहुत ही जल्द समाप्त होने वाला है, जिसकी रक्षा के लिए हम सभी को अब तुरंत कुम्भकर्णी नींद से जगना होगा।
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पृथ्वी पर निवास करने वाले तमाम वन्यजीव-जंतुओं और पेड़-पौधों वनस्पतियों आदि को बचाने के उद्देश्य से तथा दुनिया भर में पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य के साथ ही 22 अप्रैल के दिन "पृथ्वी दिवस" यानी "अर्थ डे" मनाने की शुरुआत की गई थी। यहां आपको बता दें कि "पृथ्वी दिवस" की शुरुआत अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड एंटोन नेल्सन ने पर्यावरण की शिक्षा के रूप में की थी। नेल्सन ने पर्यावरण को राष्ट्रीय एजेंडा से जोड़ने के लिए लगातार प्रयास किये और वर्ष 1970 में अमेरिका के कई स्कूली और कॉलेज स्तर के छात्रों ने लोगों में स्वस्थ पर्यावरण के लिए जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया था। इस आंदोलन में 20 हजार अमेरिकी शामिल हुए थे, तब से ही "पृथ्वी दिवस" मनाने की शुरुआत हुई थी। जिसे धीरे-धीरे आज लगभग 195 से अधिक देश हर वर्ष मनाते हैं। इस दिवस को मनाने के लिए हर वर्ष एक विशेष थीम भी होती है।
आज हमारे देश में पृथ्वी की रक्षा के लिए पर्यावरण सुरक्षा के लिए बहुत तेजी से पहल करने की आवश्यकता है। क्योंकि भारत में जिस तरह से बहुत ही तेजी से स्वच्छ जल व स्वच्छ वायु का दिन-प्रतिदिन अभाव होता जा रहा है, वह स्थिति हमारे लिए व हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए ठीक नहीं है। लॉकडाउन से पहले देश में हर तरफ वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ने लोगों का जीवन जीना मुश्किल कर रखा है। देश में कहीं-कहीं तो जल व वायु में प्रदूषण का लेवल इतना अधिक बढ़ गया था कि वहां ना तो पीने के लिए स्वच्छ पेयजल है और ना ही सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा लोगों को मिल पा रही थी। जिसके चलते हमारे देश में पेयजल व वायु प्रदूषण से जनित रोगियों की संख्या में बहुत तेजी से बढोत्तरी हो रही है।
वैसे भी सम्पूर्ण विश्व में आज मानव सभ्यता के आगे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सबसे बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी है, आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है, क्योंकि प्रकृति का सही अनुपात ही हमारी दुनिया को सहज रूप से रहने के योग्य बनाता है।
आज हम लोगों ने अपने घरों में सुख-सुविधा के तरह-तरह के साधन तो जुटा लिए है, हमको चार कदम जाने के लिए भी मोटरसाइकिल व कार चाहिए। वायुमंडल में हर वक्त हवाई जहाजों की दौड़ ने कभी ना रुकने वाली रफ्तार पकड़ रखी है। जीवन के लिए कल-कारखाने आवश्यक हो गये हैं। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि हमारा वातावरण कई तरह की गैसों से मिलकर बना हुआ है, यह सभी गैसें एक निश्चित आनुपातिक संतुलन में होती हैं। अगर हमारे रोजमर्रा के व्यवहार के चलते इनमें से ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि गैसों की मात्रा में थोड़ा भी हेरफेर होता है तो पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने लगता है और पर्यावरण प्रदूषित होने लगता है। आज पृथ्वी पर अव्यवस्थित मानवजनित गतिविधियों के चलते वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने लगी है। जिसके चलते पर्यावरण संतुलन बिगाड़ने लगा है। हम लोगों को इस बिगड़ती हालात को समय रहते सजग होकर स्थिति को कारगर ढंग से नियंत्रित करना होगा।
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अब वह समय आ गया है जब हमको पृथ्वी व पर्यावरण को बचाने के लिए हर संभव प्रयास हर हाल में करना ही होगा। अपनी बहुत सारी रोजमर्रा की आदतों में तुरंत बदलाव करना होगा। अपने आसपास साफ-सफाई रखनी होगी, पृथ्वी को हर तरह के कचरे का ढेर बनने से बचाना होगा, हवा-पानी को स्वच्छ रखना होगा, प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा, वायु प्रदूषण कम करने के लिए बेहतरीन सार्वजनिक यातायात प्रणाली विकसित करनी होगी, सौर ऊर्जा पर अपनी निर्भरता बढ़ानी होगी, हरियाली बरकरार रखने के लिए व पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए तत्काल जगंलों की कटाई रोककर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना होगा, कल-कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना होगा, कैमिकलों के उपयोग को भी नियंत्रित करना होगा, सभी का पेट भरने के लिए बंजर होती भूमि को बचाना होगा उसकी उर्वरकता को बढ़ाना होगा, रोडियो-एक्टिव पदार्थों के रेडिएशियन से धरा को सुरक्षित रखना होगा। धरती पर रहने वाले हर जीव जंतु व वनस्पति का संरक्षण करके इकोलॉजिकल बैलेंस को बनाए रखना होगा, ध्वनि प्रदूषण कम करना होगा, पृथ्वी पर कंपन कम करना होगा, प्राकृतिक जलस्रोतों व नदियों को स्वच्छ रखना होगा, कल-कल करती नदियों के बहाव को अविरल बनाना होगा, पहाड़ों की अंधाधुंध कटाई को बंद करके उनको टूटने से बचाना होगा, बेवजह जमीन की खुदाई रोकनी होगी, देश में अधिकतर समस्याओं की जननी बढ़ती जनसंख्या के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को समझाकर तत्काल जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए केंद्र सरकार को ठोस प्रभावी कदम उठाने होंगे, सरकार को लोगों में साक्षरता के स्तर को बढ़ाना होगा, सभी लोगों में पृथ्वी व पर्यावरण के हमारे जीवन में महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ानी होगी, तभी आने वाले समय में हम व हमारी जीवनदायिनी पृथ्वी माँ सुरक्षित रह सकेंगी। हम लोगों को समय रहते ही पृथ्वी की रक्षा के लिए उपरोक्त महत्वपूर्ण कदम धरातल पर उठाने होंगे, हमको पृथ्वी को वास्तव में माँ का दर्जा अपने रोजमर्रा के व्यवहार में देना होगा, किसी भी कार्य को करने से पहले पृथ्वी व पर्यावरण के प्रति अपने परिवार की तरह अपनत्व की भावना रखनी होगी, क्योंकि जिस प्रकार हम स्वयं कभी अपने परिवार को हानि नहीं पहुंचा सकते है ठीक उसी प्रकार हम अपनी पृथ्वी माता को भी हानि नहीं पहुंचा सकते, अब हमारे देश में लोगों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिए वह समय आ गया कि धरती माँ की सुनो पुकार, बंद करो ये अत्याचार, तब ही पृथ्वी दिवस माने का असली लक्ष्य हम सभी देशवासियों को जल्द प्राप्त होगा।
-दीपक कुमार त्यागी
(स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व रचनाकार)