By अंकित सिंह | Jul 26, 2023
भारतीय समाज में महिलाओं को देवी का स्थान हासिल है। घर के कामों से लेकर ऑफिस के कामों तक और यहां तक की सेना में भी आज के समय में महिलाओं का योगदान है। देश में महिलाओं की तरक्की को लेकर लगातार कई बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। इसका असर भी हमारे समाज में दिखने लगा है। महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। हालांकि, महिलाओं के उत्थान पर खुशी तब और बढ़ जाती है, जब वह किसी पिछड़े जगह या समाज से आती हैं। जब द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनी थीं तब इसकी चर्चा खूब हुई थी क्योंकि वह आदिवासी समाज से आती हैं। साथ ही साथ वह उस जगह से ताल्लुक रखती हैं जहां से दिल्ली काफी दूर दिखाई देता है।
ऐसे ही पूर्वोत्तर राज्यों की महिलाएं भी लगातार तरक्की कर रही है। पूर्वोत्तर में विकास को नई रफ्तार देने की कोशिश की जा रही है। खेलों में तो हमने पूर्वोत्तर का खूब नाम सुना है। मैरीकॉम हो या फिर मीराबाई चानू या फिर लवलीना बोरगोहेन हो, इन लोगों ने हमारे देश का नाम रोशन किया है। इन सबके बीच राज्यसभा की सदस्य एस फान्गनॉन कोन्याक ने पीठासीन उपाध्यक्ष के रूप में उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन किया। वह ऐसा करने वाली नगालैंड की पहली महिला सदस्य हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे गर्व का क्षण बताया। कोन्याक ने एक ट्वीट में कहा कि वह इससे काफी गौरवान्वित और अभिभूत हैं। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज महिलाओं को राजनीति और नेतृत्व के क्षेत्र में उचित सम्मान और स्थान दिया जा रहा है। कोन्याक के इस ट्वीट पर प्रधानमंत्री ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा, गर्व का क्षण। कोन्याक ने इस अवसर के लिए राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के प्रति भी आभार व्यक्त किया।
एस फांगनोन कोन्याक नागालैंड के दीमापुर से हैं, जहां उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। कोन्याक ने दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। अपने कॉलेज के दिनों में, वह छात्र सक्रियता और सामाजिक संगठनों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। बाद में वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गईं। वह पिछले साल अप्रैल में नागालैंड से भाजपा सांसद के रूप में राज्यसभा के लिए चुनी गईं थीं। कोन्याक परिवहन, पर्यटन और संस्कृति समिति के साथ-साथ उत्तरी पूर्वी क्षेत्र के विकास मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं।
हाल में ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भी नागालैंड ने इतिहास रचा था। भाजपा के गठबंधन सहयोगी, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) की हेकानी जखालू केन्से और सल्हौतुओनुओ क्रूस राज्य की पहली दो महिला विधायक बनी थीं। 1977 में, नागालैंड ने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी से रानो मेसे शाइज़ा को लोकसभा के लिए अपनी महिला सांसद के रूप में चुना, जबकि 2022 में, भाजपा ने फांगनोन कोन्याक को नागालैंड से राज्यसभा सदस्य के रूप में नामित किया।
सुप्रीम कोर्ट ने नगालैंड में निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था को लागू नहीं करने पर केंद्र और नगालैंड सरकार के प्रति अप्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि केंद्र सरकार संविधान को लागू करने को इच्छुक नहीं है। नगालैंड एक ऐसा राज्य है, जहां महिलाएं जीवन के हर पहलू में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं, यह उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि केंद्र यह कहकर नगर निकायों में महिलाओं को आरक्षण देने से नहीं रोक सकता कि यह आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है। पीठ ने कहा कि इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। आप क्या कर रहे हैं? आपको बता दें कि नगालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्तारूढ़ सरकार में भागीदार है। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा, ‘‘केंद्र सरकार संविधान लागू करने को तैयार नहीं है। जरा सा इशारा होने पर आप राज्य सरकारों के खिलाफ कार्रवाई कर देते हैं। जहां संवैधानिक प्रावधान का पालन नहीं हो रहा हो, वहां आप राज्य सरकार को कुछ नहीं कहते। संवैधानिक व्यवस्था को क्रियान्वित होते देखने में आपने क्या सक्रिय भूमिका निभाई है?’’ नटराज ने कहा कि संविधान के अनुरूप शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 प्रतिशत कोटा प्रदान किया जाना चाहिए। जब पीठ ने पूछा कि फिर इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है, तो एएसजी ने कहा कि राज्य में स्थिति इसके लिए अनुकूल नहीं है।
एक ओर जहां राज्यसभा में नागालैंड की एक महिला ने इतिहास रचा तो उसको हर तरफ बधाई मिल रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी उनको प्रोत्साहित करते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन जैसे ही महिला आरक्षण की बात होती है तो इसमें सरकारी पेचीदगियां सामने आ जाती हैं। नगालैंड में अगर 2023 में कोई महिला विधायक बनती है तो वहां की स्थितियों को आसानी से समझा जा सकता है। ऐसे में सरकारों को महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए जो आरक्षण के प्रावधान है, उसको लागू करने में देरी नहीं करनी चाहिए। फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कि आखिर महिलाओं के उत्थान को लेकर सरकार नगालैंड के लिए आगे की क्या रणनीति तय करती है। लेकिन इतना जरूर है कि समाज के हर वर्ग के लोगों की राजनेताओं पर पैनी नजर रहती है और उसी के आधार पर अपना फैसला भी लेते हैं। यही तो प्रजातंत्र है।