लालू के बिना आसान नहीं तेजस्वी और तेजप्रताप की राह, विधानसभा चुनाव में मिल रही कड़ी चुनौती

By अंकित सिंह | Oct 14, 2020

बिहार में चुनावी सरगर्मियों के बीच सबकी निगाहें लालू यादव के दोनों बेटों पर टिकी हुई है। सबसे ज्यादा चर्चा इस बात को लेकर है कि क्या इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव की अनुपस्थिति में उनके दोनों बेटे पार्टी को सत्ता में ला पाते हैं या नहीं? इसके साथ-साथ सबकी निगाहें इस बात पर भी टिकी है कि क्या तेजस्वी यादव को बिहार में मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिलता भी है या नहीं? दरअसल महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव का ही नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर आगे किया गया है। आरजेडी भी लगातार उनके नामों को ही आगे करती रही है। वर्तमान में देखें तो नीतीश को सीधी टक्कर देने के मामले में तेजस्वी यादव ही बिहार में हुंकार भर रहे हैं। लेकिन अब इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि क्या लालू यादव की अनुपस्थिति में उनके दोनों बेटे अपनी विधानसभा की सीटें निकाल पाएंगे या नहीं?

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2015 की ही तरह तेजस्वी यादव इस बार भी वैशाली जिले के राघोपुर सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 2015 के विधान सभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने सतीश यादव को करारी शिकस्त दी थी। पर इस बार भाजपा और जेडीयू के साथ होने के कारण राघोपुर में सतीश यादव मजबूत दावेदार के रूप में सामने हैं। माना जा रहा है कि सतीश यादव इस बार तेजस्वी यादव को कड़ी टक्कर दे सकते है। सतीश यादव इस बार राघोपुर सीट से तीसरी बार अपनी किस्मत आजमा रहे है। सतीश यादव ने 2010 में जदयू के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता राबड़ी देवी को हराया था। राघोपुर विधानसभा क्षेत्र सालों से सुर्खियों में रहा है। यह सीट 1995 में तब चर्चा में आया जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने इसे अपना चुनावी क्षेत्र चुना। लालू यादव ने यहां से 1995 और 2000 में चुनावी जीत दर्ज की थी। इसके बाद से उन्होंने यह सीट अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी।


राबड़ी देवी ने आरजेडी के टिकट से यहां से 2005 में भी चुनाव जीता पर 2010 में वह सतीश यादव से हार गईं। इतना ही नहीं, 2010 में राबड़ी देवी सोनपुर से भी विधायकी का चुनाव लड़ रही थी। यहां से भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लालू परिवार को राघोपुर की सीट 1980 से 1995 तक यहां से लगातार तीन बार विधायक रहे समाजवादी नेता उदय नारायण राय उर्फ भोला राय ने दी थी। वर्तमान में यह सीट लालू परिवार की परंपरागत सीट बन गई है। 2010 को छोड़ दिया जाए तो लगभग 1995 के बाद से यहां हर साल लालू परिवार का कोई सदस्य चुनाव जीतता रहा है। समीकरणों की बात करें तो राघोपुर सीट यादव बहुल मानी जाती है। यहां ज्यादातर चुनाव में 2 यादवों के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला है। इस बार भी यहां दो यादव के बीच मुकाबला है। आरजेडी और भाजपा दोनों की ही नजर यादव वोटों पर है। इसके अलावा यहां लगभग 60,000 राजपूत मतदाता हैं तो दलित मतदाताओं की भी संख्या अच्छी है।

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इस बार राघोपुर सीट भाजपा के खाते में गई है। भाजपा ने 2015 के ही अनुसार इस बार भी सतीश यादव पर ही भरोसा किया है। भाजपा को उम्मीद है कि गैर यादव वोटर्स लामबंद होंगे और नतीजे उसके पक्ष में हो सकते है। राजपूत और दलित मतों से भी भाजपा की उम्मीदें है। इसके अलावा भाजपा यह भी उम्मीद कर रही है कि सतीश कुमार खुद यादव समुदाय से आते हैं, ऐसे में उनके पक्ष में कुछ यादव का वोट भी जरूर जाएगा। आरजेडी यादव के साथ-साथ दलित और मुसलमानों का वोट साधना चाहती है। यही कारण है कि वहां से तेजस्वी यादव खुद चुनावी मैदान में उतरे हैं। इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राजपूत कार्ड भी जमकर खेला है। इसका फायदा उसे राघोपुर सीट पर भी होगा। रघुवंश प्रसाद सिंह के नहीं होने और आखिरी वक्त में आरजेडी में उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाने के कारण तेजस्वी यादव को इसका नुकसान राघोपुर में हो सकता है।


लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव इस बार अपनी पुरानी सीट महुआ के बजाय समस्तीपुर के हसनपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं। जब तेज प्रताप ने अपनी चुनावी क्षेत्र बदली तो इसको लेकर तरह-तरह के बातें कहीं गईं। चाहे कारण जो भी हो लेकिन हसनपुर सीट भी इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में हॉट सीट बन गया है। हसनपुर सीट भी यादव बाहुल्य मानी जाती है। हालांकि, यहां कुशवाहा वोटर भी अच्छी खासी संख्या में है। 1967 के बाद से यहां लगातार यादव समाज का ही विधायक जीत रहा है। 2010 के परिसीमन के बाद से जेडीयू हसनपुर सीट लगातार जीतती आई। लेकिन इस बार तेज प्रताप के जाने से वहां का मुकाबला दिलचस्प माना जा सकता है। तेज प्रताप का मुकाबला यादव समाज के ही राजकुमार राय से है।


- अंकित सिंह

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