By अनुराग गुप्ता | Aug 09, 2021
नयी दिल्ली। संसद का मानसून सत्र समाप्त होने को है। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा विपक्षी एकजुटता की रही। क्योंकि हर बार की तुलना में इस बार विपक्षी दलों के बीच समन्वय बेहतर नजर आया। हालांकि कुछ दलों ने समय-समय पर दूरियां भी बनाईं। महंगाई, कृषि कानूनों और पेगासस जासूसी मामलों को विपक्षी दलों ने मजबूती से उठाया और चर्चा की मांग की। इस पर सरकार की तरफ से भी बयान सामने आया कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं। इसके बावजूद चर्चा नहीं हो पाई और मानसून सत्र में लगातार गतिरोध देखने को मिला।
भविष्य की राह हो रही तैयार
राजनीतिक गलियारों में एक सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या मानसून सत्र के जरिए विपक्षी दलों के बीच आपस में केमेस्ट्री बन पाई है ? इतिहास में झांके तो कई मौकों पर विपक्षी दलों ने एकजुटता दिखाई है लेकिन चुनाव आते-आते सभी ने अपनी राह अलग कर ली है। हाल ही में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मानसून सत्र की रणनीति को तैयार करने के लिए कांस्टीट्यूशन क्लब में टी पार्टी का आयोजन किया था। जिससे आम आदमी पार्टी और बसपा ने दूरियां बनाईं।प्राप्त जानकारी के मुताबिक विपक्षी दलों ने संसद के भीतर संयुक्त विरोध की रणनीति अचानक नहीं तैयार की थी बल्कि इसके पीछे 2-3 महीने के समय लगा था। विपक्षी दलों ने कृषि कानूनों से लेकर कोरोना के मुद्दे तक में सरकार को घेरने की रणनीति पर काम किया है। इस बार संसद के बाहर राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने विरोध प्रदर्शन किया।ममता भी करना चाहती हैं नेतृत्व
जहां एक तरफ राहुल गांधी विपक्षी दलों का नेतृत्व करने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ ममता बनर्जी भी नेतृत्व का सपना देख रही हैं। हाल की कुछ घटनाओं की तरफ ध्यान दें तो मौजूदा समय में ममता बनर्जी न तो विधायक हैं और न ही सांसद फिर भी तृणमूल कांग्रेस की संसदीय दलों की नेता हैं। जिसका मतलब साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार को ममता बनर्जी सीधी चुनौती देने वाली हैं और वह पांच दिवसीय दिल्ली यात्रा के दौरान भी एक्टिव दिखाई दीं। उन्होंने तमाम विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से भी मिली थीं।कांग्रेस के नेतृत्व में सभी विपक्षी दल किसानों की संसद में शामिल होने वाले थे। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने शुक्रवार को पहले ही किसान संसद में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के प्रति एकजुटता जाहिर की। जबकि बाद में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए।इतिहास में झांके तो कोलकाता के आजाद मैदान में ममता बनर्जी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के एकजुट होने की तस्वीर सामने आई थी। इसके बाद दिल्ली में भी सभी एकसाथ दिखाई दिए थे और मोदी सरकार को घेरने का प्रयास भी किया लेकिन चुनाव आते-आते सभी की राहें अलग हो गईं। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में क्या विपक्षी दल एकजुट होकर एक बैनर तले चुनाव में उतरेंगे ? या फिर खुद की राह तलाशेंगे।