By अंकित सिंह | Apr 03, 2023
प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह भी हमने देश के कई राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा की। हमेशा की तरह ही इस कार्यक्रम में मौजूद रहे प्रभासाक्षी का संपादक नीरज कुमार दुबे। पिछले सप्ताह कर्नाटक में चुनाव की घोषणा कर दी गई। इसी से जुड़ा हमारा पहला प्रश्न भी था। नीरज दुबे ने शुरुआत में ही साफ तौर पर कहा कि कर्नाटक का जो राजनीतिक नाटक है, वह कभी समाप्त होता नहीं है। पिछले दो-तीन विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए नीरज दुबे ने कहा कि वहां स्पष्ट बहुमत मिलते नहीं और उसके बाद विधायक इधर से उधर जाने लगते हैं। पिछले दिनों कर्नाटक में जोड़-तोड़ की राजनीति भी खूब देखने को मिले। दक्षिण भारत के बाकी राज्यों की तुलना में कर्नाटक में यह सब चीजें ज्यादा है।
प्रभासाक्षी के संपादक ने साफ तौर पर कहा कि कर्नाटक का चुनाव भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कर्नाटक दक्षिण में भाजपा के लिए प्रवेश द्वार है। हालंकि, नीरज दुबे ने यह भी कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस काफी पहले से मेहनत कर रही है। कई जगह उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किए जा चुके हैं। इसके साथ ही कांग्रेस की ओर से कई ऐलान भी किए जा चुके हैं। डीके शिवकुमार सिद्धारमैया सभी लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं। इसके अलावा भारत जोड़ो यात्रा पर कर्नाटक में काफी दिनों तक रहे थे। इसके साथ ही दुबे ने कहा कि मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए भी कर्नाटक चुनाव एक बड़ी परीक्षा रहने वाला है क्योंकि वह उनका गृह राज्य है।
हमने बीएस येदियुरप्पा को लेकर भी नीरज दुबे से सवाल पूछा। नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक में ऐसे समुदाय से आते हैं जिसका वोट प्रतिशत काफी ज्यादा है। बीएस येदियुरप्पा ही वह शक्स रहे हैं जिन्होंने भाजपा को वहां पर सत्ता में लाया है। भाजपा कहीं से भी लोगों को यह दिखाना नहीं चाहती कि बीएस येदियुरप्पा को हमने किनारे कर रखा है। यही कारण है कि चाहे कोई भी भाजपा के बड़े नेता कर्नाटक के दौरे पर जा रहे हो, येदियुरप्पा उनके साथ रहते हैं। इतना ही नहीं. रैलियों में भी येदियुरप्पा को बड़े नेताओं के बगल में बैठाया जाता है। हालांकि, दोनों ने पहले ही कह दिया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। माना जा रहा है कि उनके बेटे को इस बार विधानसभा का चुनाव में टिकट दिया जा सकता है।
वही हमने संसद में हंगामे को लेकर भी चर्चा की। इसको लेकर नीरज दुबे ने कहा कि भले ही सभी पार्टी के नेता यह कहते हो कि यह लोकतंत्र का मंदिर है। लेकिन उनके द्वारा उस मंदिर का सम्मान नहीं हो रहा है। वह उस मंदिर में जिस काम के लिए वह आए हैं, वे नहीं कर पा रहे हैं। हालंकि, तमाम नियम कानून है। लेकिन जो सांसद सदन के नियमों की अवहेलना कर रहे हैं उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही है। सत्ता पक्ष विपक्ष पर आरोप लगा रहा है तो विपक्ष वहीं सत्तापक्ष पर भी पलटवार कर रहा है। बजट पर संसद में चर्चा होनी थी। लेकिन नहीं हुआ। जनता के सवाल नेता उठा सकते थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह जो मौका था हमारे सांसदों ने गंवा दिया। चुनाव के वक्त नेता गन जब वोट मांगने जाएंगे तो जनता उनसे जरूर सवाल करेंगे।
- अंकित सिंह