बलात्कार पर फांसी की सजा देने से क्या रुक जाएँगी घटनाएँ?

By संजय तिवारी | Apr 21, 2018

देश में बलात्कार के मामले में सजा को लेकर फिर से गंभीर बहस चल रही है। मध्य प्रदेश की सरकार ने पिछले नवम्बर के महीने में ही बलात्कारियों को फांसी की सजा देने का ऐलान कर केंद्र को क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव भेज दिया है। छत्तीसगढ़, झारखण्ड, हरियाणा और राजस्थान ने भी फांसी की सजा पर विचार की बात की है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी इसी तरह सोचना शुरू किया है और केंद्र को पत्र लिखने की बात कही है। उन्नाव और कठुआ की घटनाओं के बाद देश में उबाल है। मीडिया तल्ख़ है। सरकार दबाव में है। इस बीच कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जिनके कारण यह विषय और भी प्रासंगिक हो गया है। कुछ प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि देश में पहले से क़ानून नहीं है। क़ानून भी मौजूद है। सजा का प्राविधान भी है। लेकिन जटिलताएं गजब की हैं। एक उदहारण से इसे समझा जा सकता है। 

14 साल पहले दी गयी थी रेप के मामले में फांसी 

 

भारत में बलात्कार के मामले में फांसी की आखिरी सजा अब से 14 साल पहले दी गयी थी। मामला पश्चिम बंगाल का था। इस मामले में भी 15 साल तक मुक़दमा चला था। कोलकाता में एक 15 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मुजरिम धनंजय चटर्जी को 14 अगस्त 2004 को तड़के साढ़े चार बजे फांसी पर लटका दिया गया था। 14 साल तक चले मुक़दमे और विभिन्न अपीलों और याचिकाओं को ठुकराए जाने के बाद धनंजय को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दे दी गई थी। धनंजय को अलीपुर जेल में फाँसी के फंदे पर क़रीब आधे घंटे तक लटकाए रखा गया जिसके बाद उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। कोलकाता के टॉलीगंज के रहने वाले जल्लाद नाटा मलिक ने धनंजय को फाँसी देने का काम अंजाम दिया था। 

 

रेप पर फांसी का प्रावधान हो-योगी

 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि नाबालिग से रेप पर फांसी का प्रावधान हो, इसके लिए वह केंद्र सरकार को पत्र लिखेंगे। उन्होंने कहा कि सभी जिलों के एसपी, डीएम जिले की शैक्षणिक संस्थाओं, व्यापार मंडल, एनजीओ को साथ लेकर जागरूकता फैलाएं। लोगों में सुरक्षा भाव पैदा करने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि स्कूलों, चौराहों पर सार्वजनिक स्थलों पर सीसीटीवी लगाए जाएं। प्रदेश की महिला हेल्पलाइन 1090 और डायल 100 के बीच समन्वय बढ़ाया जाए। डॉक्टरों को रेप जैसे मामलों में मेडिकल करते समय संवेदनशीलता बरतने की ट्रेनिंग दी जाए। योगी ने कहा कि ऐसे मामलों की क़ानूनी प्रक्रिया पर पैनी निगरानी की जाए और उसका फॉलोअप किया जाए। साथ ही ऐसे मनोवृति वाले लोगों में भय पैदा करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर फुट पेट्रोलिंग हो। डायल 100 के वाहन भी सक्रिय रहें। ऐसी घटनाओं में कांस्टेबल से लेकर अधिकारी तक सबकी जवाबदेही तय होगी। सीएम ने कहा कि एडीजी और आईजी जिलों में जाएं और ज़मीन पर जाकर हालात का जायज़ा लें और कार्रवाई सुनिश्चित करें। सीएम योगी ने कहा कि यह देखना होगा कि समाज में ऐसी मनोवृत्ति क्यों बढ़ रही है और कैसे इस पर अंकुश किया जाए। 

 

मध्य प्रदेश सरकार की पहल

 

मध्य प्रदेश सरकार ने 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दण्ड संहिता की धारा 376 AA और 376 DA के रूप में संशोधन किया गया और सजा में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। इसके अलावा लोक अभियोजन की सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत नहीं होगी। इस विधेयक को विधानसभा में पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। मृत्युदंड को अमल में लाने के लिए दुष्कर्म की धारा 376 में ए और एडी को जोड़ा जाएगा, जिसमें मृत्युदंड का प्रावधान होगा। सरकार ने बलात्कार मामले में सख्त फैसला लेते हुए आरोपियों के जमानत की राशि बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी है। इस तरह मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहां बलात्कार के मामले में इस तरह के कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। साथ ही शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। महिलाओं का पीछा करने, छेड़छाड़, निर्वस्त्र करने, हमला करने और बलात्कार का आरोप साबित होने पर न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपए लगाया जाएगा।

 

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा, कडा क़ानून बनाइये  

 

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसा कानून लाने का सुझाव दिया है जिससे नाबालिगों से दुष्कर्म करने वाले को मृत्युदंड दिया जाए ताकि ऐसे अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संदेश जाए। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की पीठ ने पिछले साल निचली अदालत द्वारा एक व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। जून 2016 में आठ वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म और उसकी हत्या के लिए व्यक्ति को सजा सुनाई गई थी। हालिया वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध में जबरदस्त बढ़ोतरी का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि उपयुक्त कानून लाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है जिससे 15 साल या कम उम्र के नाबालिगों से दुष्कर्म के दोषियों पर मृत्युदंड लगाया जा सके। कोर्ट ने कहा कि सख्त कार्रवाई की जरूरत है क्योंकि कई मामले आ रहे हैं जहां 15 साल या उससे कम के पीड़ितों से दुष्कर्म कर हत्या कर दी जाती है। 

फांसी के प्रावधान से कैसे रुकेंगी घटनाएं 

 

अब प्रश्न यह है कि फांसी की सजा का प्रावधान बना देने भर से क्या ये घटनाएं बंद हो जाएंगी ? हत्या के आरोप में फांसी की सजा का प्रावधान तो है लेकिन क्या इससे हत्याएं होना बंद हो सका ? एक बार संसद में पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि क़ानून चाहे जितने बना लिए जायें, जब तक मामलों के निस्तारण के लिए एक टाइम फ्रेम नहीं तय होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। दिल्ली के निर्भया काण्ड में जिन लोगों को सजा मिली क्या उस पर अमल हो सका ? यह सवाल मौजूं इसलिए है, क्योंकि जिन बेटियों की लड़ाई में जनता के साथ ने समाज की एक गलीज परत को उघाड़कर रहनुमाओं की प्राथमिकता बदल दी, वह जनता अपनी लड़ाई में केवल निचले पायदान तक पहुंच पाई है। न्याय की चौखट पर उनके सामने अभी इतनी लंबी चढ़ाई बाकी है जिसे नाप पाने में शायद उनकी उम्र ही निकल जाएगी। जब तक उन्हें न्याय मिलेगा हो सकता है अपनी जिन बेटियों को आज हम चिंताग्रस्त होकर स्कूल भेज रहे हैं, तब तक उनकी शादी की तैयारियों में व्यस्त हों। ये मेरे वक्ती जज्बात नहीं, आंकड़े कहते हैं। 

 

1996 का सूर्यनेल्ली बलात्कार मामला

 

याद कीजिये, 16 बरस की स्कूली छात्रा को अगवा कर 40 दिनों तक 37 लोगों ने बलात्कार किया। कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का नाम उछलने से मामले ने राजीनितक रंग भी ले लिया। नौ साल बाद 2005 में केरल हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी के अलावा सभी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। विरोध हुआ, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश दिए, इस बार सात को छोड़ ज़्यादातर को सजा हुई, लेकिन कई आरोपी अभी भी कानून की पहुंच से बाहर हैं। इधर पीड़िता की आधी उम्र निकल चुकी है। उसे ना अपने दफ्तर में सहज सम्मान मिल पाया ना समाज में। पड़ोसियों की बेरुखी से परेशान उसका परिवार कई बार घर और शहर बदल चुका है। 

 

प्रियदर्शनी मट्टू काण्ड 

 

1996 में दिल्ली में लॉ की पढ़ाई कर रही प्रियदर्शनी मट्टू की उसी के साथी ने बलात्कार कर नृशंस हत्या कर दी थी। अपराधी संतोष सिंह जम्मू-कश्मीर के आईजी पुलिस का बेटा है। बेटे के खिलाफ मामला दर्ज होने के बावजूद उसके पिता को दिल्ली का पुलिस ज़्वाइंट कमिश्नर बना दिया गया। ज़ाहिर है जांच में पुलिस ने इतनी लापरवाही बरती कि चार साल बाद सबूतों के अभाव में निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया। लोगों के आक्रोश के बाद जब तक मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा संतोष सिंह खुद वकील बन चुका था और उसकी शादी भी हो चुकी थी, जबकि प्रियदर्शनी का परिवार उसे न्याय दिलाने के लिए अदालतों के बंद दरवाजों को बेबसी से खटखटा रहा था। ग्यारहवें साल में हाईकोर्ट ने संतोष सिंह को मौत की सजा सुनाई, जिसे 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में तब्दील कर दिया। उसके बाद भी संतोष सिंह कई बार पैरोल पर बाहर आ चुका है। 

 

दर्ज मामले 152165, निपटारा हुआ मात्र 25 का

 

वैसे भी ये वे मामले हैं यहां अदालती फाइलों में केस अपने मुकाम तक पहुंच पाया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे बलात्कार के 152165 नए-पुराने मामलों में केवल 25 का निपटारा किया जा सका, जबकि इस एक साल में 38947 नए मामले दर्ज किए गए। और ये तो केवल रेप के आंकड़े हैं, बलात्कार की कोशिश, छेड़खानी जैसी घटनाएं इसमें शामिल नहीं हैं।

 

भारत के हालात बदतर, आंकड़े दे रहे हैं गवाही

 

देश में होने वाली रेप की वारदातों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कड़े कानूनों के बावजूद रेप की वारदातें कम नहीं हो रही हैं। ये आंकड़े मखौल उड़ाते हैं कानून का और महिला सुरक्षा को लेकर किये जाने वाले तमाम दावों की पोल भी खोलते हैं। साल 2012 में दिल्ली के चर्चित निर्भया गैंगरेप मामले के वक्त भी ऐसा ही माहौल था। लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतर आये थे। इस खौफनाक मामले के बाद ये जनता के आक्रोश का ही असर था कि वर्मा कमिशन की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने नया एंटी रेप लॉ बनाया। इसके लिए आईपीसी और सीआरपीसी में तमाम बदलाव किए गए, और इसके तहत सख्त कानून बनाए गए। साथ ही रेप को लेकर कई नए कानूनी प्रावधान भी शामिल किए गए। लेकिन इतनी सख्ती और इतने आक्रोश के बावजूद रेप के मामले नहीं रुके। आंकड़े यही बताते हैं। 

 

'रेप कैपिटल' दिल्ली

 

देश की राजधानी दिल्ली में साल 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। दिल्ली में साल 2011 में जहां इस तरह के 572 मामले दर्ज किये गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। इनमें से 291 मामलों का अप्रैल 2017 तक नतीजा नहीं निकला था। निर्भया कांड के बाद दिल्ली में दुष्कर्म के दर्ज मामलों में 132 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साल 2017 में अकेले जनवरी महीने में ही दुष्कर्म के 140 मामले दर्ज किए गए थे। मई 2017 तक दिल्ली में दुष्कर्म के कुल 836 मामले दर्ज किए गए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 रेप, यानी हर 14 मिनट में 1 रेप हुआ है। दूसरे शब्दों में, साल 2014 में देश भर में कुल 36975 रेप के मामले सामने आए हैं। 

 

सबसे ज्यादा बलात्कार वाले तीन राज्य

 

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 2016 में 12.4 फीसदी बढ़े हैं। 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले देश में दर्ज हुए। मध्य प्रदेश इनमें अव्वल है, क्योंकि बलात्कार के सबसे ज्यादा- 4,882 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश आता है, जहां 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। बलात्कार के 4,189 दर्ज मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर रहा। दूसरी ओर दिल्ली को NCRB के सालाना सर्वेक्षण के बाद महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर माना गया। 

 

सबसे कम रिपोर्ट होने वाला क्राइम है बलात्कार

 

दुनियाभर में बलात्कार सबसे कम रिपोर्ट होने वाला अपराध है। शायद इसलिए भी कि दुनियाभर के कानूनों में बलात्कार सबसे मुश्किल से साबित किया जाने वाला अपराध भी है, ये तब जबकि खुद को प्रगतिशील और लोकतांत्रिक कहने वाले देश औरतों को बराबरी और सुरक्षा देना सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं। ज़्यादातर मामलों में पीड़िता पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत जुटाने में इतना वक्त ले लेती है कि फॉरेंसिक साक्ष्य नहीं के बराबर बचते हैं। उसके बाद भी कानून की पेचीदगियां ऐसीं कि ये जिम्मेदारी बलात्कार पीड़िता के ऊपर होती है कि वो अपने ऊपर हुए अत्याचार को साबित करे बजाय इसके कि बलात्कारी अदालत में खुद के निर्दोष साबित करे।

 

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य 

 

यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम कर रही अमेरिकी संस्था रेप, असॉल्ट एंड इन्सेस्ट नेशनल नेटवर्क (RAINN) ने यौन अपराधों में सजा से जुड़ा एक दिल दहला देने वाला आंकड़ा जारी किया है। इसके मुताबिक अमेरिका में होने वाले हर एक हजार यौन अपराधों में केवल 310 मामले पुलिस को सामने आते हैं, जिसमें केवल 6 मामलों में अपराधी को जेल हो पाती है, जबकि चोरी के हर हजार मामले में 20 और मार-पीट की स्थिति में 33 अपराधी सलाखों के पीछे होते हैं। बलात्कार को नस्ल और धर्म का चोगा पहनाने से पहले संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट की बात भी करते चलें। ‘Conflict Related Sexual Violence’ नाम की इस रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई है कि आंतरिक कलह या आतंकवाद जनित युद्ध के दौरान यौन हिंसा को योजनाबद्ध तरीके से हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की प्रवृति किस तेजी से बढ़ी है। गृह युद्ध और आतंकवाद से जूझ रहे 19 देशों से जुटाए आंकड़े बताते हैं कि इन क्षेत्रों में बलात्कार की घटनाएं छिटपुट नहीं बल्कि सोची-समझी सामरिक रणनीति के तहत हो रही हैं। सामूहिक बलात्कार, महीनों तक चले उत्पीड़न और यौन दास्तां से जन्मे बच्चे और बीमारियां एक नहीं कई पीढ़ियों को खत्म कर रहे हैं। इन घृणित साजिशों के पीछे की बर्बरता को हम और आप पूरी तरह महसूस भी नहीं कर सकते। 

 

मीडिया की भूमिका पर भी सवाल

 

बलात्कार के मामलों में मीडिया की भूमिका को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सामान्य जनता इन मामलों में ज्यादातर इस्तेमाल हो जाती है। कुछ ख़ास मामलों को लेकर किसी ख़ास मकसद से एक समूह मीडिया ट्रायल शुरू करता है और देखते देखते देश और दुनिया में हंगामा खड़ा हो जाता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण उन्नाव और कठुआ की घटनाएं हैं। इन्हीं दो घटनाओं के समय में बलात्कार जैसे जघन्य तीन  अपराध और भी हुए। एक बिहार के सासाराम में हुआ, दूसरा नागाव, असोम में और तीसरा नगरोटा जम्मू में। लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि इन तीन घटनाओं का राष्ट्रीय मीडिया में कोई जिक्र तक नहीं हो रहा। ये तीनों घटनाएं अत्यंत मासूम बच्चियों के साथ हुयी हैं। इनमें से एक बच्ची की उम्र 7 वर्ष, एक की 5 वर्ष और एक की महज 6 वर्ष है। तीनों ही घटनाओं में आरोपी एक ख़ास समुदाय के हैं और बाकायदा नामित हैं। देश के मीडिया, आंदोलनकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आक्रोशित लोगों का आक्रोश इन तीन बच्चियों के लिए क्यों नहीं सामने आ रहा, यह अपने आप में प्रश्न है।

 

-संजय तिवारी

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