ताबूत घोटाले की तरह राफेल की भी हवा निकली, क्या कांग्रेस माफी मांगेगी ?

By राकेश सैन | Dec 18, 2018

कारगिल युद्ध के दौरान हथियारों और ताबूतों की खरीद में घोटाले के आरोपों से तत्कालीन एनडीए सरकार पाक साफ होकर निकली वैसा ही इतिहास राफेल मामले में दोहराया गया है। ताबूत खरीद पर 13 अक्तूबर, 2015 को करीब सोलह साल बाद इस मामले में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने किसी को भी दोषी न मानते हुए इस मामले को बंद करने के निर्देश दिए। गौरतलब है कि कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष और कई अभियानवादियों ने कारगिल युद्ध के दौरान मिसाइल, हथियारों और शहीद जवानों के लिए ताबूतों की खरीद-फरोख्त में व्यापक घोटाले के गंभीर आरोप लगाए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर खूब थूक उछाला। यहां तक कि तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज को तो विपक्ष ने मंत्री मानने तक से इंकार कर दिया और सदन में उनका बहिष्कार करते रहे। अब काल्पनिक ताबूत घोटाले की लीक पर कांग्रेस के राफेल घोटाले का अवसान होता दिख रहा है।


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राफेल लड़ाकू विमान सौदे मामले में मोदी सरकार को बड़ी राहत मिली है। सौदे पर उठाए जा रहे सवालों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सौदे पर कोई संदेह नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने सौदे को लेकर दायर की गई सभी जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया है। 14 दिसंबर 2018, शुक्रवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सौदे की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है। कोर्ट ने कीमत के मुद्दे पर सरकार की ओर से दिए गए आधिकारिक जवाब को रिकार्ड कर कहा कि कीमतों की तुलना करना कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि डील पर किसी भी प्रकार का कोई संदेह नहीं है, वायुसेना को ऐसे विमानों की जरूरत है। मोटे तौर पर प्रक्रिया का पालन किया गया है। कोर्ट सरकार के 36 विमान खरीदने के फैसले मे दखल नहीं दे सकता। प्रेस इंटरव्यू न्यायिक प्रक्रिया का आधार नहीं हो सकते। राफेल मसले पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 14 नवंबर को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। याचिका दायर करने वालों में वकील एमएल शर्मा, विनीत ढांडा, प्रशांत भूषण, आप नेता संजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी शामिल हैं।

 

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ताबूत और राफेल को लेकर लगे घोटाले के आरोपों में कई तरह की समानताएं हैं। दोनो ही सच्चाई से कोसों दूर और वितंडावादी राजनीति के परिणाम थे। दोनों को लेकर आरोप लगाने वालों ने थोड़ा-सा भी नहीं सोचा कि इससे देश के सैनिकों के मनोबल व अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की छवि पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ेगा। संयोग से दोनों कपोल कल्पित घोटाले के आरोप झेलने वाली सरकारें भाजपा के नेतृत्व वाली रहीं और मिथ्याचरण करने का अवसर कांग्रेस को मिला। देश की राजनीति में सत्ता के लिए किस तरह झूठ, फरेब और मिथ्या प्रवंचना का सहारा लिया जाता है उनके निकृष्टम उदाहरण हैं ताबूत और राफेल घोटाले के आरोप। राजनीति में केवल सत्ता ही सबकुछ नहीं होती और यह सफल राजनीति का एकमात्र पैमाना भी नहीं है। सत्ता के लिए सिद्धांतों की बलि नहीं दी जा सकती। भेड़िया आया- भेड़िया आया की कहानी बताती है कि जीवन में झूठ बोलना बूमरैंग के प्रयोग की भांति है जो चलाने वाले के हाथ भी घायल कर देता है। पिछले लगभग छह महीनों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल को लेकर तरह-तरह के आरोप भाजपा सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगाते आ रहे हैं। आरोप लगाना विपक्ष का काम है परंतु राहुल गांधी ने सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए न केवल असभ्य आचरण किया बल्कि प्रधानमंत्री के प्रति अमर्यादित भाषा का भी प्रयोग किया।

 

हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने राफेल के नाम पर खूब आरोप उछाले परंतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद यही आरोप राहुल गांधी की विश्वसनीयता को तार-तार करते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते रहे हैं कि कांग्रेस उनकी सरकार को लेकर झूठ फैला रही है और राफेल पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने उनके इस आरोप पर स्वीकृति की मुहर भी लगा दी है। कांग्रेस विशेषकर राहुल गांधी के समक्ष अब विश्वसनीयता का प्रश्न पैदा हो गया है, देश को अब उनकी बातों पर विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा। सरकार कहती रही है कि राफेल सौदा दो सरकारों के बीच हुआ है और पूरी तरह से पारदर्शी तरीके से सारी प्रक्रिया पूरी की गई है। अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस के दुष्प्रचार की कलई खुलती दिखने लगी है। तीन राज्यों में जीत की खुशी मना रही और 2019 में केंद्रीय सत्ता की प्रबल दावेदार के रूप में पेश कर रही कांग्रेस आज झूठ के चलते फिर धाराशायी होती दिखाई दे रही है।

 

राफेल सौदे की पृष्ठभूमि

 

अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत फ्रांसीसी विमान निर्माता और इंटीग्रेटर कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदेगा। राफेल को 2012 में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और रूस से प्रतिद्वंद्वी प्रस्तावों पर चुना गया था। मूल योजना यह थी कि भारत फ्रांस से 18 ऑफ द शेल्फ जेट खरीदेगा, जिसमें 108 अन्य लोगों को राज्य संचालित हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड या बंगलूरू में एचएएल द्वारा भारत में इकट्ठा किया जा रहा है। हालांकि, मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने पिछली यूपीए सरकार की 126 राफेल खरीदने की प्रतिबद्धता से पीछे हटकर कहा कि डबल इंजन वाले विमान बहुत महंगे होंगे और यह समझौता भारत और फ्रांस के बीच लगभग एक दशक लंबी वार्ता के बाद हुआ था। विमान की लागत पर पहले से ही बहुत हिचकिचाहट थी।

 

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हस्तक्षेप किया और फ्रांस से प्रौद्योगिकी हासिल करने की कोशिश करने और इसे बनाने की बजाय 36 रेडी टू फ्लाई विमान खरीदने की बात कही। एनडीए सरकार ने दावा किया कि यह सौदा उसने यूपीए से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है और करीब 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। लेकिन 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। सौदा घोषित होने के तुरंत बाद, कांग्रेस ने भाजपा पर अरबों डॉलर के सौदे में गैर-पारदर्शिता का आरोप लगाया और इसे मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम का सबसे बड़ी विफलताओं में से एक कहा। जनवरी 2016 में, भारत ने फ्रांस के साथ रक्षा सौदे में 36 राफेल जेटों के आदेश की पुष्टि की और इस सौदे के तहत, डेसॉल्ट और इसके मुख्य सहयोगियों के साथ कुछ तकनीक साझा करने की बात कही। डबल इंजन राफेल लड़ाकू जेट को शुरुआत से ही एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड अटैक के लिए बहु-भूमिका सेनानी के रूप में डिजाइन किया गया है, परमाणु रूप से सक्षम है और इसका पुनर्निर्माण भी किया जा सकता है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस की यात्रा के दौरान प्रस्ताव की घोषणा के करीब डेढ़ साल बाद अंतत: सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ एक अंतर सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे राफेल सौदा कहा जाता है। इसमें भारत ने 36 राफेल डबल-इंजन के लिए 58000 करोड़ रुपये खर्च दिए। इस लागत का लगभग 15 प्रतिशत अग्रिम भुगतान किया गया। इस समझौते के मुताबिक, भारत को मिसाइल समेत स्पेयर और हथियार भी मिलने की डील हुई।

 

 

नवंबर 2016 में, राफेल सौदे पर एक राजनीतिक युद्ध शुरू हुआ और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार ने करदाताओं के पैसे को नुकसान पहुंचाया है, इस सौदे में बड़ी धांधली हुई है। कांग्रेस ने दावा किया कि अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को फ्रांसीसी फर्म के साथी के रूप में गलत तरीके से चुना गया था। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि 2012 में फ्रांस के साथ पिछली यूपीए सरकार से हुई बातचीत के मुकाबले भाजपा के सौदे में प्रत्येक विमान की लागत तीन गुना अधिक है। यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया, क्योंकि खासकर तकनीक ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गया था। डेसॉल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। डेसॉल्ट का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ जानी थी।

 

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस डिफेंस लिमिटेड ने भी इस मामले पर सफाई दी थी। सरकार ने दावा किया कि पिछले यूपीए सरकार से इस बार समझौता और पारदर्शी और बेहतर है क्योंकि इसमें एक बेहतर हथियार पैकेज और सैन्य सहायता शामिल है। हालांकि, कांग्रेस ने कथित अनियमितताओं पर राफेल सौदे के बारे में जानकारी देने से इनकार करने के लिए सरकार पर अपने हमलों को बरकरार रखा। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश यहीं से शुरू कर दी। उन्होंने ट्वीट करके डील के बारे में कई सवाल किए। उन्होंने लिखा कि- कृपया बताइए कि राफेल जेट को किस कीमत पर खरीदा गया? क्या आपने कैबिनेट कमिटी ऑफ सिक्यॉरिटी (सीसीएस) की अनुमति लेना जरूरी नहीं समझा? भारत सरकार के उपक्रम हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से ये डील छीनकर रक्षा क्षेत्र में बिना अनुभव वाले डबल रेटेड बिजनेसमैन को क्यों सौंपी गई? लगातार इसी तरह कई सवाल पूछने के साथ ही राहुल ने राफेल सौदे पर सही कीमत के कई कयास लगाए।

 

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देखते-देखते राहुल के साथ पूरी कांग्रेस पार्टी राफेल सौदा मामले में भाजपा पर आक्रामक हो गई। सर्वोच्च न्यायालय ने अब उन सभी प्रश्नों का जवाब दे दिया है जिनका दिया जाना चाहिए था। देश के सामने सच्चाई सफेद धूप की तरह खिल चुकी है। सबसे बड़े विरोधी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के चलते राहुल गांधी द्वारा किसी सौदे पर सरकार से सवाल पूछना उनका संवैधानिक अधिकार है परंतु आरोप लगाते समय जिस तरह से तथ्यों की अनदेखी, झूठ और वितंडावाद का सहारा लिया उससे आज खुद उनकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान दिखने लगा है। विपक्ष के साथ-साथ एक खास सोच वाले मीडिया के विशेष वर्ग, देश विरोधी लॉबी, छद्म बुद्धिजीवियों ने किस तरह ताबूत और राफेल को लेकर राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाया इसका आकलन शायद ही कभी हो पाए।

 

-राकेश सैन

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