इस सप्ताह मंगलवार दोपहर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अचानक लंच पॉलिटिक्स की चर्चा जोश-शोर से होने लगी। दरअसल, इस दिन दोपहर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ही सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के घर लंच पर पहुंचे थे। यह खबर सामने आते ही टीवी मीडिया की सुर्खियां बन गया। तमाम टीवी चैनल्स और वेबसाइट्स ने इस खबर को ब्रेक किया। इसके कई सारे मतलब और मायने निकाले जाने लगे। यह खबर अपने आप में बड़ी खबर इसलिए बन गई क्योंकि अपनी ही सरकार के उपमुख्यमंत्री रहे केशव प्रसाद मौर्य के घर जाने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को साढ़े चार साल लग गए। इसलिए मुख्यमंत्री के इस विजिट और लंच को लंच पॉलिटिक्स का नाम दे दिया गया। यह माना गया कि हाल-फिलहाल में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने की सुगबुगाहट और सरकार से केशव प्रसाद मौर्य की नाराजगी के मद्देनजर सीएम योगी ने अपने ही पड़ोस में रहने वाले उपमुख्यमंत्री के घर जाने का फैसला किया।
लंच पॉलिटिक्स की पृष्ठभूमि
राजनीतिक हल्कों में इसे सीएम योगी के लंच पॉलिटिक्स के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि घोषित रूप से इसकी कुछ और ही पृष्ठभूमि बताई जा रही है। बताया जा रहा है कि इस लंच से एक दिन पहले सोमवार को मुख्यमंत्री योगी के आवास पर कोर कमेटी की बैठक हुई थी, जिसमें केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हुए थे। बातों-बातों में वहां इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि केशव प्रसाद मौर्य ने अपने बेटे की शादी कर ली और उन्हें भोज तक नहीं दिया। साथी नेताओं की इस शिकायत पर तुरंत ही प्रतिक्रिया देते हुए केशव प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री समेत सभी को अगले दिन दोपहर के भोज पर आमंत्रित कर दिया। अगले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई नेता केशव प्रसाद के घर पर उनके नवविवाहित पुत्र और पुत्रवधु को आशीर्वाद देने पहुंचे और इसी के साथ सीएम योगी के लंच पॉलिटिक्स को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई।
वाकई नाराज हैं केशव प्रसाद मौर्य ?
यह बात बिल्कुल सही है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले एक खास रणनीति के तहत भाजपा आलाकमान ने केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया था। केशव प्रसाद मौर्य ने भाजपा आलाकमान और प्रदेश भाजपा नेताओं के सहयोग से उत्तर प्रदेश में भाजपा के 14 वर्षों के वनवास को खत्म किया था। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने प्रदेश में ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए तमाम समीकरणों को ध्वस्त कर दिया था। उसी समय से लगातार यह दावा केशव समर्थकों की तरफ से किया जाता रहा है कि 2017 की जीत का श्रेय मौर्य को जाता है और स्वाभाविक रूप से सीएम के पद पर उनका दावा बनता है। हालांकि मौर्य के विरोधियों का यह कहना है कि उस समय भाजपा के पोस्टरों पर 6 नेताओं के चेहरे लगाए गए थे। प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर निश्चित तौर पर मौर्य कामयाब हुए थे लेकिन यह कामयाबी पोस्टर पर लगाए गए सभी 6 नेताओं के वोट बैंक के समर्थन के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के आधार पर मिली थी, इसलिए सीएम बनाना भाजपा आलाकमान का विशेषाधिकार था। लेकिन तभी से यह माना जा रहा है कि केशव प्रसाद मौर्य नाराज हैं। मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने की पीड़ा को दबाकर उन्होंने सरकार में उपमुख्यमंत्री बनना तो कबूल कर लिया लेकिन उसके बाद से ही जिस अंदाज में लगातार सरकार में उन्हें उपेक्षित किया जाने लगा, उससे उनकी नाराजगी जरूर बढ़ गई। मुख्यमंत्री की कार्यशैली ने अधिकांश विधायकों के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को भी नाराज कर दिया। बताया तो यहां तक जाता है कि मौर्य अपनी मर्जी से अपने ही मंत्रालय के अधिकारियों को न तो हटा सकते थे और न ही तैनात कर सकते थे। पूरे उत्तर प्रदेश का तो छोड़िए, कई बार केशव प्रसाद मौर्य अपने ही मंत्रालय और अपने ही इलाके में अपना काम नहीं करवा पाते थे। निश्चित तौर पर इसका असर उनकी छवि पर भी पड़ रहा था और इन सभी घटनाक्रमों की वजह से उनकी नाराजगी और ज्यादा बढ़ती जा रही थी, ऐसा दावा किया जाने लगा था।
2022 का चुनाव– किसके भरोसे लड़ेगी भाजपा ?
2017 के विधानसभा चुनाव की जीत भाजपा की सामूहिक जीत कही जा सकती है, भले ही कोई कुछ भी दावा करे। लेकिन 2021 आते-आते सारा माहौल बदल गया है। भले ही भाजपा तमाम विवादों को अटकलबाजी कहते हुए खारिज करने की कोशिश करे लेकिन बिना आग के धुंआ नहीं उठता है। इसलिए अब यह सवाल उठने लगा है कि 2022 का विधानसभा चुनाव भाजपा उत्तर प्रदेश में किसके भरोसे लड़ेगी ? इस चुनाव को जिताने की जिम्मेदारी कौन लेगा ? फिलहाल तो यही लग रहा है कि योगी के अड़ जाने के बाद भाजपा आलाकमान और संघ ने यह साफ कर दिया है कि प्रदेश में अब चुनाव में विजय दिलाने की प्राथमिक जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की है। अब सीएम योगी को ही तमाम नाराज नेताओं को एक-एक करके मनाना होगा ताकि पार्टी मिल कर चुनाव लड़े और उपमुख्यमंत्री के घर जाकर लंच करना योगी की इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि 2022 के लिए योगी की राह उतनी भी आसान होने नहीं जा रही है। सहयोगी निषाद पार्टी ने उपमुख्यमंत्री पद को लेकर दावेदारी जता दी है। अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने भी आंख दिखाना शुरू कर दिया है। योगी के मंत्रियों की सार्वजनिक बयानबाजी भी जारी है। मतलब साफ है कि इन सबको कहीं और से चाभी भरी जा रही है।
-संतोष पाठक