भगवान शिव के भक्त उनकी प्रतिमा के साथ-साथ शिवलिंग की भी पूजा करते हैं। शास्त्रों में शिवलिंग की पूजा के साथ ही उनकी परिक्रमा के संबंध में भी नियम बताए गए हैं। यदि नियमों का पालन ना किया किया जाए तो शिव पूजा के फल नहीं मिलते और शिवजी भी नाराज होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। आइए जानते हैं इसका कारण-
शिवलिंग की आधी परिक्रमा को शास्त्र संवत माना गया है। इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग की पूरी परिक्रमा करना वर्जित माना गया है। इसके साथ ही शिवलिंग की परिक्रमा करते समय दिशा का ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक होता है। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से शुरू करनी चाहिए। इसके साथ ही जलधारी तक जाकर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरी ओर से फिर से परिक्रमा पूरी करें। इस बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग की परिक्रमा कभी भी दाईं ओर से नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कभी भी जलस्थान या जलधारी को भूलकर भी लांघना नहीं चाहिए।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा पुरूष और नीचला हिस्सा स्त्री का प्रतिनिधित्व करता है। इस तरह से शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद जिस स्थान से जल प्रवाहित होता है इसे जलधारी, निर्मली या सोमसूत्र कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग में इतनी ऊर्जा होती है कि जब उस पर जल चढ़ाया जाता है तो उस जल में शिव और शक्ति की उर्जा के कुछ अंश समाहित हो जाते हैं। यदि परिक्रमा करते समय जलधारी को लांघा जाए तो यह ऊर्जा मनुष्य के पैरों के बीच से होते हुए शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसके कारण व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का कष्ट उत्पन्न होता है। इसके कारण वीर्य या रज संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा बहुत गर्म और शक्तिशाली होती है। यही कारण है कि शिवलिंग के ऊपर जल चढ़ाया जाता है। मंदिरों में भी शिवलिंग के ऊपर एक कलश लगा होता है जिससे पानी की बूंदे शिवलिंग पर गिरती रहती हैं, शिवलिंग की गर्मी को कम किया जा सके।
- प्रिया मिश्रा