ग्रीन कार्ड के लिए भारतीयों का दशकों लंबा इंतजार क्या वाकई खत्म हो गया है ?

By नीरज कुमार दुबे | Jul 12, 2019

अमेरिकी संसद ने उस विधेयक को पारित कर दिया है, जो ग्रीन कार्ड आवेदन पर मौजूदा 7 प्रतिशत की सीमा को समाप्‍त कर देगा। इस विधेयक के कानून का रूप लेते ही भारत जैसे देशों के उन हजारों प्रतिभाशाली पेशेवरों का लंबा इंतजार खत्‍म हो जाएगा, जिन्‍होंने अमेरिका की स्‍थायी नागरिकता हासिल करने के लिए आवेदन किया हुआ है। ग्रीन कार्ड किसी व्यक्ति को अमेरिका में स्थायी रूप से रहने और काम करने की अनुमति देता है। वर्तमान में ग्रीन कार्ड आवेदन के लिए प्रति देश 7 प्रतिशत की सीमा तय है। ऐसे में हजारों पेशेवर कई सालों से अमेरिका की नागरिकता मिलने का इंतजार कर रहे हैं। कुछ ताजा अध्‍ययनों से यह पता चला है कि एच-1बी वीजा वाले भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए ग्रीन कार्ड का इंतजार वक्‍त 70 साल से भी अधिक है। 

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मौजूदा व्यवस्था के अनुसार एक साल में अमेरिका द्वारा परिवार आधारित प्रवासी वीजा दिए जाने की संख्या को सीमित कर दिया गया। अभी तक की व्यवस्था के मुताबिक, किसी देश को ऐसे वीजा केवल सात फीसदी तक दिए जा सकते हैं। नए विधेयक में इस सीमा को सात प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। इसी तरह इसमें हर देश को रोजगार आधारित प्रवासी वीजा केवल सात प्रतिशत दिए जाने की सीमा को भी खत्म कर दिया गया है।

 

भारतीय आईटी पेशेवर, जिनमें से ज्यादातर उच्च कौशल वाले हैं, एच-1 बी कार्य वीजा पर अमेरिका आए हैं। वे मौजूदा आव्रजन प्रणाली से सबसे ज्यादातर परेशान रहे हैं। ‘फेयरनेस ऑफ हाई स्किल्ड इमिग्रेंट्स एक्ट, 2019’ नाम का यह विधेयक 435 सदस्यीय सदन में 65 के मुकाबले 365 मतों से पारित हो गया।

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विधेयक की राह में मौजूदा अड़चनें

 

इस विधेयक को कानून की शक्ल लेने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की जरूरत है लेकिन इससे पहले इसे सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी जहां रिपब्लिकन सांसदों की अच्छी-खासी संख्या है। इसके अलावा यह विधेयक फौरी तौर पर ही भारतीयों के लिए राहत पहुँचाने वाला लगता है। इसे एक उदाहरण के जरिये समझा जा सकता है। वह यह कि भारतीय आईटी कंपनियों के लिए एच1-बी वीजा खारिज होने की प्रतिशत दर 20%-40% है। इसके अलावा अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने देश में 'बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन' की जो नीति लागू कर रखी है वह भारतीय आईटी पेशेवरों की राह में तरह-तरह की बाधाएं खड़ी करती है।

 

अमेरिका में इस विधेयक की आलोचना और विरोध भी शुरू हो गया है क्योंकि आरोप लगाया जा रहा है कि इससे भारतीय और चीनी कंपनियों को ज्यादा फायदा पहुँचेगा। विधेयक के विरोधी यह भी आरोप लगा रहे हैं कि अकसर कम तनख्वाह पर काम करने को राजी हो जाने वाले भारतीयों को ज्यादा संख्या में ग्रीन कार्ड मिलने से अमेरिका के मध्यम वर्ग को बड़ा झटका लगेगा क्योंकि वह रोजगार से वंचित रह जाएंगे।

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भारतीयों का लंबा इंतजार खत्म हो सकता है

 

नस्ली घृणा अपराध में मारे गए भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोटला की पत्नी सुनयना दुमला ने इस विधेयक के पारित होने पर कहा कि यह महत्वपूर्ण दिन है और ऐसा क्षण है जिसका हम वर्षों से इंतजार कर रहे थे। आखिरकार हमारी कड़ी मेहनत और प्रयास फायदेमंद साबित हुए। दुमला ने एक बयान में कहा, ‘‘मेरे पति श्रीनिवास कुचिभोटला की हत्या के बाद मैंने देश में रहने का अपना दर्जा खो दिया और आव्रजन के संघर्ष ने मेरे दुख को और बढ़ा दिया। अब इस विधेयक के पारित होने से मुझे आखिरकार शांति मिली और कोई शब्द मेरी खुशी बयां नहीं कर सकता।’’ ऐसे ही अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जिनमें भारतीय नागरिकों के समक्ष अमेरिका से बाहर कर दिये जाने का खतरा निरंतर मंडरा रहा था। उम्मीद है इस विधेयक को पूर्ण रूप से मंजूरी मिलेगी और बड़ी संख्या में भारतीय इसका लाभ उठाएंगे।

 

अमेरिकी राष्ट्रपति ने की थी पहल

 

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस वर्ष मई में योग्यता पर आधारित आव्रजन प्रणाली पेश की थी जिससे ग्रीन कार्ड या स्थायी वैध निवास की अनुमति का इंतजार कर रहे सैंकड़ों-हजारों भारतीयों समेत विदेशी पेशेवरों एवं कुशल श्रमिकों को लाभ होगा। आव्रजन सुधार प्रस्तावों में कुशल कर्मियों के लिए आरक्षण को करीब 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 57 प्रतिशत करने की बात की गई है। इसके अलावा प्रस्तावित सुधारों के तहत आव्रजकों को अंग्रेजी सीखनी होगी और दाखिले से पहले नागरिक शास्त्र की परीक्षा में उत्तीर्ण होना होगा।

 

-नीरज कुमार दुबे

 

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