'सन ऑफ मल्लाह' की पार्टी बिहार चुनाव में बीजेपी के लिए क्यों हो गई VIP

By अभिनय आकाश | Oct 22, 2020

बढ़कर विपत्तियों पर छाजा  मेरे किशोर! मेरे ताजा! 

जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।

तू स्वयं तेज भयकारी है. क्या कर सकती चिंगारी है?

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की अमर रचना रश्मिरथी भी महाभारत के परिपेक्ष्य में ही है। इसके कई छंद हैं जो आज चुनावी महाभारत के संदर्भों में प्रसंगिक हैं। बिहार में चुनाव है। गणतंत्र की जन्मस्थलि में चुनाव है। उस जगह पर चुनाव है जहां के एक आम वोटर को दुनिया के सबसे खास राजनीति शास्त्र के बराबर रखा जाता है। बिहार का चुनावी रण शुरू हो चुका है। चुनाव में सभी दल खुद को एक-दूसरे से बड़ा ही बता रहे हैं और अपनी जीत तय मान रहे हैं। 

यूं तो बिहार की भूमि का हमेशा से सियासत के नए दांव-पेज की प्रयोगशाला बनना आम रहा है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में पराकाष्ठा देखने को मिल रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन केंद्र और प्रदेश दोनों ही जगह पर विराजमान है। इसलिए जनता से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का ज्यादा फोकस इन्हीं के ऊपर है। 

'हक़ मांगते हो क्यों गुनहगार की तरह, हक़ है तो छीन लो हक़दार की तरह'  सन ऑफ़ मल्लाह-मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) की वेबसाइट पर लिखा ये शेर अपने आप में कई कहानियां बयान करती है। मुकेश सहनी, ये वो नाम है जिसके चर्चे बिहार में सबसे ज्यादा है। सब यही पूछ रहे हैं कि आखिर मुकेश सहनी और उसकी पार्टी वीआईपी में ऐसा क्या है जो भारतीय जनता पार्टी ने अपने हिस्से की 11 सीटें उसे दे दी। इस पार्टी में कुछ तो खास बात जरूर होगी जो बीजेपी ने वीआईपी को 11 सीटें देकर खुद को 110 सीटों पर समेट लिया। इसी के साथ बीजेपी के कोटे में 110 सीटें बची हैं। वहीं जेडीयू के पास 115 सीटें हैं। आज के इस विश्लेषण में जानेंगे कि अचानक बीजेपी के लिए इतने वीआईपी क्यों हो गए मुकेश सहनी। 

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 से पहले महागठबंधन में बड़ा सियासी बम फूटा। मौका था सीटों की घोषणाओं का, तभी वीआईपी ने करीब आधे घंटे में भाई चारे की बात को माइक हाथ में आते ही बिगाड़ दिया। भरी पत्रकार वार्ता में बागी तेवर दिखा कहा, “मेरे साथ धोखा हुआ है। पीठ पर खंजर घोपा गया है।” हैरत की बात है कि ऐसा कहने और करने से आधे घंटे पहले तक सब कुछ ठीक था। वह तेजस्वी के साथ होटल तक आए थे और तेज प्रताप के पास बैठे भी थी, पर उनके दिमाग में शायद कुछ और ही कहानी चल रही थी। 

बहरहाल, फिलहाल सहनी भले ही राजनीति कर रहे हों, पर वे असल में सियासत के आदमी नहीं हैं। पेशे से वह बॉलीवुड के सेट डिजाइनर रहे हैं और जाने-माने सुपरस्टार शाहरुख खान की फिल्म देवदास का सेट की डिजाइनिंग कर चुके हैं। बताया जाता है कि वह जब 19 बरस के थे, तब मायानगरी यानी कि मुंबई के लिए घर-बार छोड़कर चले गए थे। सहनी के पास न तो तब पैसे थे और न ही जान पहचान। ‘देवदास’ और ‘बजरंगी भाईजान’ जैसी हिट फिल्मों का सेट डिजाइन करने का काम भी उन्होंने किया था।

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मुकेश मूलतः दरभंगा जिले के सुपौल बाजार के रहने वाले हैं। मुंबई जाने के बाद उन्होंने वहां एक कॉस्मेटिक शॉप में काम किया। बतौर सेल्समैन। यही वह दौर था, जब उनके ख्यालों में हिंदी/बॉलीवुड फिल्में, टीवी सोप्स और शो के सेट डिजाइन करने का आइडिया कौंधा। मन था, कोशिश की तो बाद में मौका भी मिला और नितिन देसाई ने उन्हें देवदास का सेट बनाने का ऑफर दिया।

काम में सफल हुए तो उन्होंने अपने नाम से एक कंपनी बना ली। नाम दिया- ‘Mukesh Cineworld Private Limited’ (MCPL)। उन्होंने इसके अलावा इवेंट मैनेजमेंट का काम भी किया। देखते ही देखते उन्होंने इंडस्ट्री में काम के साथ नाम और पैसा भी कमा लिया। हालांकि, सामाजिक कार्य और राजनीति में दिलचस्पी के कारण उन्होंने इस फर्म को चलाने के लिए कुछ रिश्तेदार इसमें रखे, ताकि वह ‘सियासी हसरतों’ को भी वक्त दे सकें।

कैसे हुई बिहार में मुकेश सहनी की एंट्री

साल 2010 में उन्होंने बिहार में Sahani Samaj Kalyan Sanstha की स्थापना की। दरभंगा और पटना में एक-एक दफ्तर खोले। इस फाउंडेशन के जरिए उन्होंने लोगों से कहा कि वे पढ़ें-लिखें और आगे बढ़ें। साथ ही सियासत में भी रुचि लें। साल 2013 में बिहार के अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपे थे। उस विज्ञापन में मुकेश सहनी की तस्वीर लगी हुई थी। सहनी खुद को उस विज्ञापन के जरिए सन ऑफ मल्लाह के रूप में प्रोजेक्ट किया था। इस विज्ञापन के सहारे ही सहनी की बिहार में बड़े फलक पर एंट्री हुई थी। लोग जानने के बेचैन थे कि आखिर मुकेश सहनी कौन हैं। पता चला कि मुकेश बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले हैं। निषाद विकास संघ के नाम से एक संगठन भी चलाते थे। इस विज्ञापन के बाद मुकेश सहनी का बिहार पदार्पण हुआ। मुकेश अपने समाज के लोगों से मेल मिलाप कर सियासी जमीन तलाशने लगे।

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देवदास से मिला बड़ा ब्रेक

मुकेश सहनी को इस बीच बड़ा ब्रेक मिल गया। उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म देवदास और सलमान की फिल्म बजरंगी भाईजान का सेट डिजाइन किया। इसके बाद उन्हें बॉलिवुड में काम मिलने लगे। सहनी ने मुकेश सिनेवर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी बना ली। उसके बाद उन्होंने करोड़ों की कमाई की है। करोड़ों की कमाई करने के बाद मुकेश सहनी राजनीति में एंट्री के लिए बेचैन थे।

2015 में शाह के साथ आने लगे नजर

 2015 में उन्होंने Nishad Vikas Sangh बनाया, जो कि जिला स्तर पर लोगों के लिए काम करता था। बाद में मुकेश का काम प्रधानमंत्री मोदी की नजर में आया। 2014 में सहनी ने BJP को समर्थन दिया और प्रचार भी किया। हालांकि, समर्थन देने के बाद भी वह बीजेपी से अलग हो गए, क्योंकि पार्टी ने उनके वादे (Schedule Caste में उनकी जाति को मंजूरी) को पूरा नहीं किया। साल 2015 में बिहार में जेडीयू और आरजेडी साथ मिल कर विधानसभा चुनाव लड़ रही थी। बीजेपी उस समय हर छोटे दलों का सहयोग ले रही थी। सहनी की कोई पार्टी नहीं थी। लेकिन उन्होंने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था। तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ वह सीधे मीटिंग करने लगे थे। शाह को भरोसा दिलाया था कि मल्लाहों के सबसे बड़े नेता हम हैं। मल्लाहों का वोट बीजेपी को मिलेगा। शाह के साथ हेलीकॉप्टर से मुकेश सहनी चुनावी रैलियों जाने लगे। लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजे बिलकुल विपरीत रहे थे। बीजेपी भले ही 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव हार गई थी लेकिन मुकेश सहनी ने अपना सियासी भौकाल बना लिया था। अब सहनी को बिहार में एक पहचान मिल गई थी। बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी सहनी की सियासी औकात को भांप गई थी। उसके बाद तवज्जो देना बंद कर दिया।फिर नवंबर, 2018 में उन्होंने खुद की पार्टी (VIP) बनाई। 2019 के आम चुनाव उनकी पार्टी महागठबंधन के हिस्से के तौर पर लड़ी, मगर वह जीत हासिल करने में नाकामयाब रही।

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अब आते हैं वर्तमान पर और साथ ही उस अहम सवाल पर भी कि बीजेपी को क्यों ख़ास लगे मुकेश सहनी तो इस सवाल का जवाब मुकेश सहनी के उपनाम में छिपा है। बीजेपी ने ऐसा वीआईपी के वोट बैंक को देखते हुए किया है। बॉलीवुड में भी हाथ आजमा चुके वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी का राजनीतिक इतिहास बहुत लंबा नहीं है। वे दो साल पहले ही राजनीति में आए हैं। वो निषाद (मल्लाह) समुदाय से आते हैं और बिहार में अच्छी खासी आबादी है। इसीलिए सहनी खुद को ‘सन ऑफ मल्लाह’ कहते हैं। पार्टी ने दावा किया है कि उत्तर बिहार के नदी तटों पर रहने वाले नाविकों और मछुआरों में उनकी अच्छी पकड़ है।  मुकेश सहनी मल्लाह तबके से आते हैं। बिहार में मछुआरों और नाविकों के तबके में आने वाले मल्लाह, सहनी, निषाद, बिंद जैसी पसमांदा समाज की आबादी काफी ज्यादा है (करीब 6 फीसदी है) और रियासत की 10 से 15 लोकसभा सीटों पर ये अहम रोल निभाते हैं। चूंकि, बिहार में मुख्य रूप से पहले इनका कोई बड़ा नेता था, इसलिए अब मुकेश सहनी इनके बड़े प्रतिनिधि के तौर पर देखे जाते हैं। 

इन इलाकों में वीआईपी के वोट

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के कई इलाके हैं जहां निषाद अच्छी-खासी संख्या में हैं और वे उम्मीदवारों को जिताने-हराने का माद्दा रखते हैं। इन इलाकों में मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, खगड़िया, वैशाली और उत्तरी बिहार के कई जिले शामिल हैं। निषाद वोटर्स का इतिहास देखें तो इसके सबसे बड़े नेता कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद बीजेपी में आने से पूर्व आरजेडी और जेडीयू से कई बार चुनाव जीत चुके हैं। 2018 में उनका निधन हो गया और उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे अजय निषाद संभाल रहे हैं जिन्होंने 2019 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीता। वीआईपी ने आरजेडी के साथ 2019 में मुजफ्फरपुर, खगड़िया और मधुबनी से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं पाए। मुकेश सहनी खगड़िया में कांग्रेस के महबूब अली कैसर के हाथों ढाई लाख से ज्यादा वोटों से हार गए। आरजेडी की पूरी फौज उस चुनाव में सहनी के पीछे खड़ी रही, तब भी वे 27 फीसद वोट ही झटक पाए।

बीजेपी के दांव के पीछे की वजह

खुद चुनाव हार चुके और महज 27 फीसद वोट पाने वाले मुकेश सहनी पर बीजेपी ने क्यों दांव लगाया है? इसका एक जवाब यह है कि निषाद वोटों के अलावा कई अन्य पिछड़ी जातियों के वोट मुकेश सहनी और उनकी पार्टी वीआईपी से जुड़े हैं। ये जातियां अपने मल्लाह नेता के समर्थन में बीजेपी में एकमुश्त वोट कर सकती हैं या करा सकती हैं।  बीजेपी मुकेश सहनी और वीआईपी के नाम पर बिहार में एक संदेश देना चाहती है कि उसे छोटी-बड़ी सभी जातियों का पूरा ध्यान है। बीजेपी को अगड़े और बनियों की पार्टी माना जाता है, जिस तमगे को बीजेपी हर हाल में हटाना चाहती है। इसके लिए वीआईपी के साथ गठबंधन को बीजेपी ने प्रयोग स्वरूप शुरू किया है और बताया है कि पिछड़ी जातियों में मल्लाह भी उनके लिए उतने ही अहम हैं जितने दलित और महादलित।

मल्लाह जाति अति पिछड़े वर्ग में आती है जिस पर निर्विरोध राजनीति नीतीश कुमार करते रहे हैं। इस बार भी उन्होंने इसी वर्ग पर दांव लगाया है और 26 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। बीजेपी इन सब पर एक साथ निशाना साधते हुए बड़ी तैयारी के साथ वीआईपी को ‘VIP ट्रीटमेंट’ देती दिख रही है। बिहार में बीजेपी की जोड़ीदार एनडीए सरकार ने पंचायत चुनावों में ईबीसी के लिए 20 फीसद आरक्षण दिया है। इसका नतीजा है कि बिहार में आज 1600 मुखिया इसी वर्ग से आते हैं। बीजेपी बिहार के लिए इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए पूरी तैयारी के साथ राजनीति साधती दिख रही है।

कौन कौन है वीआईपी पार्टी के उम्मीदवार

वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने विधानसभा की जिन 11 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है उनमें  सिमरी बख्तियारपुर से खुद वीआईपी अध्यक्ष मुकेश सहनी, बलरामपुर से अरुण कुमार झा ब्रह्मपुत्र से जयराज चौधरी, मधुबनी से सुमन महासेठ, अलीनगर से मिश्री लाल यादव, साहिबगंज से राजीव कुमार सिंह, बनियापुर से वीरेंद्र कुमार ओझा, गौडाबौराम से श्रीमती स्वर्णा सिंह, सुगौली से रामचंद्र सहनी, और बोचहां से मुसाफिर पासवान के साथ साथ अब बहादुरगंज सीट भी वीआईपी के पाले में आ गई है। इनमें से आधे से ज्यादा नेता बीजेपी के ही हैं जो इस बार वीआईपी से चुनावी मैदान में हैं। तो कुल मिलाकर देखें तो 

उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल,

भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।

दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर, सब हैं मेरे मुख के अन्दर। 

यानी बीजेपी द्वारा अपने हिस्से की सीटें वीआईपी को देने से फौरी तौर पर उसकी सीटे जरूर कुछ कम हुई लेकिन, एनडीए का कुनबा भी वीआईपी के आने से और बड़ा और गया। साथ ही गठबंधन को बीजेपी ने प्रयोग स्वरूप शुरू किया।- अभिनय आकाश

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