उम्मीद के मुताबिक महाराष्ट्र का महानाटक सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पहुंच ही गया है। शनिवार की रात शिवसेना और अन्य प्रभावित पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यह मांग करते हुए कि तुरंत फ्लोर टेस्ट का आदेश देकर बहुमत का परीक्षण किया जाए क्योंकि देवेन्द्र फडनवीस की सरकार के पास बहुमत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के दिल्ली से बाहर होने की वजह से दूसरे नंबर के वरिष्ठ न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन जजों की खंडपीठ ने रविवार को आपात स्थिति में मामले की सुनवाई करते हुए तमाम पक्षों को नोटिस जारी कर मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड तलब कर लिए हैं। मामले की अगली सुनवाई सोमवार को सुबह साढे दस बजे होगी ।
मुख्यमंत्री की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल के विवेकाधिकार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, यह संवैधानिक स्थिति है। लेकिन बोम्मई केस से लेकर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का एक पक्ष बिल्कुल कॉमन रहा है कि बहुमत का फैसला विधानसभा के पटल पर ही हो सकता है ऐसे में इस मामले में भी यही उम्मीद जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट देवेन्द्र फडनवीस को जल्द से जल्द विधानसभा का सत्र बुलाकर बहुमत साबित करने को कह सकता है। हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट कितने दिन की मोहलत देता है इसके लिए सोमवार तक इंतजार करना पड़ेगा।
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शरद पवार की भूमिका को लेकर आखिर क्यों उठ रहे हैं सवाल ?
शनिवार की सुबह जैसे ही यह खबर आई कि भाजपा की सरकार महाराष्ट्र में बन गई है। देवेन्द्र फडनवीस ने बतौर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है एनसीपी विधायकों के समर्थन के बल पर और समर्थन देने की ऐवज में एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है वैसे ही कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने शरद पवार की भूमिका पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। माहौल ऐसा बनने लगा कि इस पूरे राजनीतिक ड्रामे के लिए शरद पवार जिम्मेदार है। ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति और तोड़-फोड़ में माहिर शरद पवार बार-बार अपनी भूमिका के लिए सफाई देते नजर आए। पहले ट्वीट कर सफाई दी फिर विधायक दल की बैठक बुला कर अपने ही भतीजे अजित पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा कर कांग्रेस नेता अहमद पटेल और शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे को फोन करके कहा कि सब कुछ नियंत्रण में है। जाहिर सी बात है कि उम्र के इस पड़ाव में शरद पवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी विश्वसनीयता को साबित करने को लेकर खड़ी हो गई है। भतीजे ने चाचा की नाक के नीचे से पार्टी के विधायक खींच लिए या अजित पवार के इस दांव के पीछे शरद पवार का ही दिमाग है। ये दोनो ही थ्योरी शरद पवार के लिए नुकसानदायक है इसलिए शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले के साथ मिलकर यह साबित करने में जुटे हैं कि पार्टी और पार्टी विधायकों पर उनकी पकड़ बरकरार है और भतीजे ने जो कुछ भी किया उनकी सहमति या जानकारी से नहीं किया। लेकिन उसके बावजूद सच्चाई यही है कि पवार के विरोधी हो या राजनीतिक विश्लेषक, कोई भी दिल से यह मानने को तैयार नजर नहीं आ रहा है ।
शरद पवार चाहे तो जेल जा सकते हैं अजित पवार
बीजेपी का यह दावा है कि अजित पवार एनसीपी विधायक दल के नेता के तौर पर पार्टी के विधायकों का समर्थन पत्र लेकर उनके पास पहुंचे थे। इसी आधार पर देवेन्द्र फडनवीस ने राज्यपाल से मिलकर बहुमत का दावा किया। लेकिन शाम होते-होते हालात पूरी तरह से बदल गए। शरद पवार ने एनसीपी विधायकों की बैठक बुलाई, यह दावा किया गया कि 49-50 विधायक उस बैठक में पहुंचे। हालांकि सोमवार को अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि पवार द्वारा बुलाई गई बैठक में एनसीपी के 54 में से 41 विधायकों ने मिलकर अजित पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया है। एनसीपी की तरफ से यह भी दावा किया जा रहा है कि अजित पवार ने बीजेपी को समर्थन देने का फर्जी पत्र राज्यपाल को सौंपा है। ऐसे में अगर एनसीपी चाहती तो अजित पवार के खिलाफ 420 के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज करवा सकती थी। लेकिन शरद पवार ने ऐसा कुछ नहीं किया । अजित पवार को सिर्फ विधायक दल के नेता पद से हटाया गया, न तो उन्हे एनसीपी से बाहर का रास्ता दिखाया गया और न ही उनके खिलाफ 420 का मामला दर्ज करवाया गया।
अजित पवार को मनाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं शरद पवार?
अगर अजित पवार ने शरद पवार को वाकई धोखा दिया है? अगर वाकई शरद पवार इस धोखे से आहत है तो फिर अजित पवार के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय उन्हे लगातार मनाने की कोशिश क्यों की जा रही है ? शरद पवार ने अजित पवार के सगे भाई यानि अपने दूसरे भतीजे से बात की । शरद पवार के पोते अजित पवार से वापस आने की अपील कर रहे हैं। एनसीपी के नेता लगातार अजित पवार से संपर्क स्थापित कर उन्हे मनाने की कोशिश कर रहे हैं। अजित को मना कर वापस लाने के लिए शरद पवार अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लगातार उनके पास भेज रहे हैं, यहां तक कि परिवार के सदस्यों को भेजा जा रहा है ताकि अजित पवार को मना कर वापस लाया जा सके। इसलिए इस पूरे मामले में शरद पवार की भूमिका को लेकर कई सवाल अभी भी बने हुए हैं।
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अजित पवार बनाम शरद पवार– कई किस्सें
मराठा राजनीति के जानकार लगातार इस बात को कहते रहे हैं कि सुप्रिया सुले के राजनीति में आने के बाद से ही अजित पवार अपने आप को असहज महसूस करते रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के समय ही टिकट बंटवारे को लेकर अजित पवार काफी नाराज हो गए थे। इसलिए जैसे ही उन्हे मौका मिला, उन्होने चाचा से अलग होने का फैसला कर लिया। हालांकि फिलहाल तो यही नजर आ रहा है कि चाचा के सामने वो फेल साबित हो गए लेकिन पिक्चर अभी बाकी है क्योंकि शरद पवार अपने भतीजे को लेकर जितने मुलायम नजर आ रहे हैं वो किसी की समझ में नहीं आ रहा है। जो हो रहा है वो सिर्फ राजनीतिक या फैमिली ड्रामा भर नहीं है बल्कि वो बिजनेस भी है जिस पर पवार परिवार का कब्जा है। पवार परिवार मतलब पवार परिवार के हर सदस्य का...
- संतोष पाठक