By नीरज कुमार दुबे | Jul 26, 2024
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक महीने के भीतर दूसरी बार चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की है। बताया यह भी जा रहा है कि दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर भी हाल में वार्ता के दौर हुए हैं। साथ ही यह भी पहली बार हुआ है कि एससीओ के सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने चीन में पहले संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास में हिस्सा लिया है। ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में चीन के साथ संबंध सुधारने पर जोर दे रही है। हालांकि मोदी सरकार अपने उस रुख पर अडिग है कि चीन को भारत के साथ पिछले समझौतों का पूर्ण सम्मान करना ही होगा।
जहां तक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात की बात है तो आपको बता दें कि लाओस में हुई इस मुलाकात के दौरान जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से साफ-साफ कह दिया कि भारत के द्विपक्षीय संबंधों में ‘‘स्थायित्व लाने’’ और ‘‘पुनर्बहाली’’ के लिए चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) तथा पिछले समझौतों का ‘‘पूर्ण सम्मान’’ सुनिश्चित करना ही होगा। हम आपको बता दें कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) की बैठकों में भाग लेने के लिए लाओस की राजधानी में मौजूद दोनों नेताओं ने मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बाद सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मजबूत मार्गदर्शन देने की आवश्यकता पर भी सहमति व्यक्त की।
जयशंकर ने आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान वांग से मुलाकात के बाद सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सीपीसी (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना) पोलित ब्यूरो सदस्य और (चीन के) विदेश मंत्री वांग यी से आज वियनतियान में मुलाकात की। हमारे द्विपक्षीय संबंधों को लेकर चर्चा जारी रही। सीमा की स्थिति निश्चित रूप से हमारे संबंधों की स्थिति पर प्रतिबिंबित होगी।’’ हम आपको बता दें कि भारत का कहना है कि जब तक सीमा क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। वैसे जयशंकर और वांग के बीच वार्ता पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद जारी रहने के बीच हुई जो मई में अपने पांचवें वर्ष में प्रवेश कर गया। जयशंकर ने कहा, ‘‘वापसी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन दिए जाने की आवश्यकता पर सहमति बनी। एलएसी और पिछले समझौतों का पूरा सम्मान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हमारे संबंधों को स्थिर करना हमारे आपसी हित में है। हमें वर्तमान मुद्दों पर उद्देश्य और तत्परता की भावना का रुख रखना चाहिए।’’
विदेश मंत्रालय का बयान
उधर, दोनों मंत्रियों की मुलाकात के बारे में विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि बैठक ने दोनों मंत्रियों को चार जुलाई को अस्ताना में अपनी पिछली बैठक के बाद से स्थिति की समीक्षा करने का अवसर दिया। मंत्रालय ने कहा, ‘‘उनकी बातचीत द्विपक्षीय संबंधों में स्थायित्व लाने और पुनर्बहाली के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से संबंधित शेष मुद्दों का शीघ्र समाधान खोजने पर केंद्रित थी।’’ विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘दोनों मंत्री जल्द से जल्द सैनिकों की पूर्ण वापसी के लिए उद्देश्य और तत्परता के साथ काम करने की आवश्यकता पर सहमत हुए। सीमाओं पर शांति तथा एलएसी के प्रति सम्मान द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य स्थिति के लिए आवश्यक है।’’ विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘दोनों पक्षों को अतीत में दोनों सरकारों के बीच हुए प्रासंगिक द्विपक्षीय समझौतों, प्रोटोकॉल और समझ का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। विदेश मंत्री ने हमारे संबंधों के लिए तीन परस्पर महत्वों-आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता पर जोर दिया।’’ बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की जल्द ही बैठक करेंगे। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों मंत्रियों ने वैश्विक और क्षेत्रीय स्थिति पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।
हम आपको बता दें कि चार जुलाई को, दोनों नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के मौके पर कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में मुलाकात की थी। अस्ताना में बैठक के दौरान, जयशंकर ने भारत के इस दृढ़ दृष्टिकोण की पुष्टि की थी कि दोनों पक्षों के बीच संबंध आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता पर आधारित होने चाहिए।
एससीओ सदस्य देशों का अभ्यास
जहां तक भारत और चीन के अभ्यास की बात है तो आपको बता दें कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने चीन में पहले संयुक्त आतंकवाद-रोधी अभ्यास में हिस्सा लिया, जिसमें “आतंकवादी समूहों के उन्मूलन” जैसे विशेष अभियानों पर ध्यान केंद्रित किया गया। चीन के जन सूचना मंत्रालय ने कहा कि उत्तर-पश्चिमी चीन के झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र में हाल में आतंकवाद विरोधी संयुक्त अभ्यास ‘इंटरैक्शन-2024’ आयोजित किया गया। सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने खबर दी कि यह अभ्यास पहली बार आयोजित किया गया और इसमें एससीओ के सभी सदस्य देशों की संबंधित एजेंसियों ने हिस्सा लिया। इस अभ्यास में भारत के एक छोटे प्रतिनिधिमंडल ने भी भाग लिया।
‘ग्लोबल टाइम्स’ की खबर के मुताबिक, आतंकवादी खतरे अक्सर दूसरे देशों तक पहुंच जाते हैं और दुनिया इससे अछूती नहीं है, इसलिए आतंकवाद विरोधी अभियानों में सदस्य देशों की क्षमताओं और अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ाने के लिए एससीओ संयुक्त अभ्यास का बड़े पैमाने पर आयोजन किया गया। जन सुरक्षा मंत्रालय ने कहा कि संबंधित एजेंसियों द्वारा संयुक्त अभ्यास के लिए एक नया मॉडल स्थापित किया गया है और इसने एससीओ सदस्य देशों के अधिकारियों की संयुक्त परिचालन क्षमताओं को बढ़ाया। मंत्रालय ने कहा कि आतंकवाद के अहम खतरों के मद्देनजर, अभ्यास में “आतंकवादी समूहों के उन्मूलन” जैसे विशेष अभियान शामिल थे।
सरकारी मीडिया द्वारा जारी तस्वीरों में दिख रहा है कि सैनिक और पुलिस अधिकारी असॉल्ट राइफल, पिस्तौल और दंगारोधी उपकरणों से लैस हैं। इस दौरान बख्तरबंद और अन्य वाहन, हेलीकॉप्टर, ड्रोन और रोबोट कुत्तों को भी अभ्यास में तैनात किया गया था। एससीओ सदस्य देशों, एससीओ सचिवालय और एससीओ क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना की कार्यकारी समिति के प्रतिनिधियों ने अभ्यास का अवलोकन किया।
इस महीने की शुरुआत में बेलारूस आधिकारिक रूप से एससीओ का 10वां सदस्य देश बन गया, जिसमें पहले से ही चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। एससीओ सदस्य देशों का आतंकवाद-रोधी प्रयासों में प्रभावी सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। वैसे, हम आपको बता दें कि इससे पहले आयोजित सभी आतंकवाद विरोधी अभ्यास द्विपक्षीय या बहुपक्षीय थे, लेकिन उनमें एससीओ के सभी सदस्य देश शामिल नहीं थे। इस अभ्यास से यह प्रतिबिंबित होता है कि एससीओ के सभी सदस्य देश आतंकवाद से उत्पन्न खतरों के प्रति एक समान समझ रखते हैं।
बहरहाल, हम आपको एक बार फिर याद दिला दें कि मई 2020 से भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच गतिरोध है तथा सीमा विवाद का पूर्ण समाधान अभी तक नहीं हो पाया है, हालांकि दोनों पक्ष टकराव वाले कई बिंदुओं से पीछे हटे हैं। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी गिरावट आई थी, जो दोनों पक्षों के बीच दशकों में सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था। गतिरोध को हल करने के लिए दोनों पक्षों के बीच अब तक कोर कमांडर स्तर की 21 दौर की वार्ता हो चुकी है। भारत चीन पर देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों से पीछे हटने का दबाव बनाता रहा है।