क्रांतिकारियों ने क्यों लूटी थी काकोरी में ट्रेन? योगी सरकार जिसकी याद में 9 अगस्त को 'रेडियो जयघोष' कर रही लॉन्च

By अभिनय आकाश | Aug 08, 2022

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में काकोरी ट्रेन एक्शन की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए 9 अगस्त को 'रेडियो जयघोष' लॉन्च करेंगे। राज्य का संस्कृति विभाग लोक कला, प्रदर्शन कला, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय व्यंजनों और वीरता पुरस्कार विजेताओं को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक रेडियो चैनल शुरू कर रहा है। रेडियो जयघोष 107.8 मेगाहर्ट्ज पर उपलब्ध होगा और लखनऊ में संगीत नाटक अकादमी के नव पुनर्निर्मित स्टूडियो से सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक कार्यक्रमों का प्रसारण करेगा। कार्यक्रम रेडियो के मोबाइल एप्लिकेशन और सोशल मीडिया पेजों पर भी उपलब्ध होंगे।

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विभाग के प्रधान सचिव मुकेश मेश्राम ने कहा कि भारत में बहुत सारे रेडियो स्टेशन हैं। लेकिन हम एक ऐसा रेडियो स्टेशन ला रहे हैं जो भारतीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देगा, खासकर उत्तर प्रदेश की। तेज-तर्रार जीवन के साथ लोककथाएं युवाओं तक नहीं पहुंच रही हैं। यह पहल युवाओं और बच्चों को हमारे लोकाचार, रीति-रिवाजों और मूल्यों से जोड़ेगी। साथ ही हम राज्य के कई जिलों और दूरदराज के गांवों के कलाकारों और गुमनाम नायकों को भी बढ़ावा दे रहे हैं। इसके अलावा, हम एक बैकपैक स्टूडियो के विचार के साथ आए हैं, जहां सभी रिकॉर्डिंग उपकरणों को गांवों में ले जाया जाता है ताकि वे अपने ग्रामीण परिदृश्य के आराम में अपनी लोक कलाओं को रिकॉर्ड कर सकें।" रेडियो पर दैनिक शो में 'पराक्रम' शामिल होगा जो स्वतंत्रता पूर्व और बाद के युग के वीर सैनिकों और गुमनाम नायकों के इर्द-गिर्द घूमेगा, जबकि 'शौर्य नगर' राज्य के सभी 75 जिलों से लोककथाओं को बढ़ावा देगा।

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देश के इतिहास में काकोरी कांड एक बेहद ही महत्वपूर्ण घटना है। इस कांड का उद्देश्य अंग्रेजी शासन के विरूद्ध सरकारी खजाना लूटना और उन पैसों से हथियार खरीदना था। इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी। लेकिन यही वो घटना है जिससे देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने का काम किया। 9 अगस्त की तारीख का संबंध काकोरी ट्रेन एक्शन से है। इसी दिन रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान और उनके सात साथियों ने मिलकर काकोरी की घटना को अंजाम दिया था। इस कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह से होती है। 

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वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया था। लेकिन असहयोग आंदोलन में शामिल कुछ प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए थे। 4 फरवरी 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। जिसने इस आंदोलन से जुड़े बहुत से लोगों को रोष से भर दिया। गांधी जी का साफ कहना था कि वो एक अहिंसावादी आंदोलन चाहते थे। लेकिन हिंसा की वजह से इसे वापस लेने का फैसला किया गया। लेकिन दूसरे पक्ष यानी युवानों का मानना था कि आंदोलन के लिए उन्होंने अपना करियर, जीवन सब छोड़ा। लेकिन बीच में आंदोलन छोड़ने की सूरत में क्या करेंगें? इनमें  रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान भी शामिल थे। जिसके बाद बंगाल और उत्तर के राज्यों में कुछ नए संगठन तैयार हो गए। इनका मकसद भी गोरी हुकूमत से देश की आजादी ही थी। लेकिन ये कांग्रेस और गांधीजी के तौर तरीकों से पूरी तरह सहमत नहीं थे। इसलिए एक नई पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई गई। जिस तरह अमेरिका ब्रिटेन से आजाद हुआ था बिस्मिल उससे बहुत प्रभावित थे। इसलिए बिस्मिल ने जब एचआरए का मैनिफेस्टो तैयार किया तो उसे 'द रिव्लय़ूशनरी' नाम दिया। इस मेनिफेस्टों का एक ही उद्देश्य था कि क्रांति के बल पर फेडरल रिपब्लिक ऑफ द यूनाइटेड स्टेट ऑफ इंडिया की स्थापना करना। 

अंग्रेजों से क्रांतिकारियों ने वापस लिया खजाना

क्रांति करनी थी और उसके लिए बंदूकों की भी जरूरत थी और इसके लिए पैसे चाहिए थे। लोग चंदा देने से घबराते थे। इसलिए उन्होंने पहले तय किया कि जो अमीर लोग हैं, उनसे छोटी-मोटी वारदातें करके एक तरह का टैक्स ले लिया जाए। लेकिन इससे संगठन की बदनामी भी होती थी। एक बार लूट के दौरान गोली लगने से एक भारतीय की मौत भी हो गई। फिर बिस्मिल ने निर्णय लिया कि अब से भारतीयों को नहीं लूटा जाएगा। लेकिन फिर से पैसों की कमी हो गई। 9 अगस्त 1925 को 10 क्रांतिकारियों की एक टीम ने अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती दी। इन क्रांतिकारियों ने सहारनपुर से लखनऊ के लिए निकली एक पैसेंजर ट्रेन को रोक लिया। उसमें रखा अंग्रेजों का जो खजाना था उसे लूट लिया। ये उस दौर में ये अंग्रेजों के खिलाफ एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम था। जिस जगह पर इस ट्रेन को रोककर इसका खजाना लूटा गया था। उस जगह का नाम काकोरी है। जो लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर है। आज भी इतिहास की किताबों में इसे काकोरी कांड के नाम से पढ़ाया जाता है। आपने भी अपने स्कूली दिनों में काकोरी कांड के बारे में पढ़ा या सुना जरूर होगा। लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों की इस वीरता को कांड कहा जाना कितना सही है। वहीं बीते साल उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए इसे काकोरी कांड की बजाए काकोरी ट्रेन एक्शन कहा जाने लगा। 

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काकोरी का ऐतिहासिक महत्व

क्रांतिकारी संगठन के दस सदस्यों से काकोरी स्टेशन से सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन में प्रवेश किया। जैसे ही ट्रेन स्टेशन से आगे चली। बिस्मिल ने ट्रेन की चेन खींच दी। चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ भी ट्रेन में मौजूद थे। इन क्रांतिकारियों ने सरकारी धनराशी को अपने कब्जे में ले लिया। इस घटना से ये बताने की कोशिश की गई कि अब अंग्रेजों को भारत छोड़ने का वक्त आ गया है। अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजों को ही मिली चुनौती से वे परेशान हो गए थे। करीब 50 गिरफ्तारियां की गई। इसके बाद दिसंबर 1927 में क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल अश्फाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी गई। लखनऊ में काकोरी शहीद स्मारक भी बनाया गया है जो कि काकोरी रेलवे स्टेशन से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है। -अभिनय आकाश

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