By अभिनय आकाश | Jul 13, 2022
भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में हालात दिन पर दिन बिगड़ते जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है। प्रधानमंत्री के निजी आवास को आग लगा दी गई है। श्रीलंका में हालात कितने खराब हैं इसका अंदाजा इससे लगाइये कि सरकारी न्यूज चैनल तक में प्रदर्शकारी घुस गये। इतना ही नहीं एक प्रदर्शनकारी वहां न्यूज एंकर बनकर बैठ गया और बोलने लगा। अक्सर ये कहा जाता है कि अगर हमारे पड़ोसी अच्छे हैं तो हमारी रोजमर्रा की कई छोटी-बड़ी बातों की फिक्र यूं ही खत्म हो जाती है। यही फॉर्मूला देशों पर भी लागू होता है। अगर हमारे पड़ोसी देश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और उथल पुथल मची है तो हमें इससे क्या कहकर हम पीछा नहीं छुड़ा सकते। ये तो वही बात हो गई कि अगर आपके पड़ोसी के घर में आग लगी हो और आप अपना दरवाजा बंद कर लें, तो आप सुरक्षित नहीं रहेंगे। पड़ोस में चल रहे इस संकट से भारत भी बेहद चिंतित है। भारत श्रीलंका को इस बुरे संकट से निकालने के लिए हर संभव मदद कर रहा है। भारत लगातार श्रीलंका को खाना, तेल, दवाईयां और आर्थिक मदद दे रहा है। लेकिन इन सभी के बीच सोशल मीडिया पर ये खबर वायरल हो गई कि श्रीलंका में प्रदर्शनाकारियों को काबू में करने के लिए भारत अपनी सेना भेज रहा है।
सुब्रमण्यम स्वामी की सलाह, भारतीय दूतावास की सफाई
श्रीलंका के हालात को देखते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अगर ऐसा रहा तो पड़ोस में कोई भी लोकतांत्रिक देश सुरक्षित नहीं रहेगा। स्वामी ने कहा, 'अगर राजपक्षे भारत की सैन्य मदद चाहते हैं तो हमें उन्हें निश्चित रूप से देना चाहिए।' स्वामी ने यह भी दावा किया कि श्रीलंका में वर्तमान संकट को पैदा किया गया है। भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह भीड़ भारत में शरणार्थी न बन जाए। भारतीय सेना को भेजने की सलाह पर स्वामी के खिलाफ श्रीलंका के लोग सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल करने लगे। यही नहीं श्रीलंका में भारतीय दूतावास ने स्वामी के बयान से पल्ला झाड़ लिया है और कहा कि यह भारत सरकार की स्थिति के अनुरूप नहीं है।
भारत क्या श्रीलंका में भेजेगा सेना?
पहली बात तो श्रीलंका ने भारत से किसी भी तरह की सैन्य मदद नहीं मांगी है। न ही भारत एकतरफा फैसला लेते हुए श्रीलंका में सेना भेजेगा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी उन सभी खबरों का खंडन कर दिया है। जिसमें ये कहा जा रहा था कि भारत अपनी सेना श्रीलंका में भेजेगा। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने साफ कहा है कि हम श्रीलंका के लोगों के साथ खड़े हैं। श्रीलंका के लोग लोकतांत्रिक साधनों और मूल्यों, स्थापित संस्थानों और संवैधानिक ढांचे के जरिये समृद्धि और प्रगति से जुड़ी अपनी आकांक्षाओं को साकार करना चाहते हैं। इसके अलावा भारत अपनी वैश्विक ताकत का इस्तेमाल करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रीलंका को मदद दिलवा सकता है। भारत ने 80 के दौर में श्रीलंका में अपनी सेना भेजी थी। लेकिन उस वक्त श्रीलंका की सरकार और तमिल विद्रोही दोनों ने ये अपली की थी कि भारत अपनी शांति सेना भेजे।
भारत को शांति सेना भेजने का खामियाजा उठाना पड़ा था
भारत ने श्रीलंका में अपनी शांति सेना भेजी भी थी। हालांकि इसका खामियाजा भी भारत को उठाना पड़ा था। दरअसल श्रीलंका में सेना भेजने का उद्देश्य वहां की सरकार और लिट्टे के बीच की जंग में शांति लाना था। लेकिन लिट्टे चीफ प्रभाकरण ने अपने लड़ाकों को भारतीय सेना के खिलाफ ही उतार दिया था। श्रीलंका में करीब 32 महीने के गतिरोध के बाद भारतीय सेना को लौटना पड़ा था। इस दौरान श्रीलंका की सेना ने तमिल लोगों और लिट्टे के खिलाफ जमकर कार्रवाई की। बाद में लिट्टे समर्थकों ने श्रीलंका में शांति सेना भेजने के लिए आत्मघाती हमला कर राजीव गांधी की हत्या करवा दी थी।
सिंहली और श्रीलंकाई तमिलों के बीच का संघर्ष
श्रीलंका में वहां के मूल निवासियों सिंहली और श्रीलंकाई तमिलों के बीच शुरुआत से ही जातिय संघर्ष रहा है। सिंहलियों का कहना था कि तमिल लोग उनके संसाधनों पर कब्जा कर रहे हैं। अंग्रेजी राज खत्म होने के 8 साल बाद 1956 में वहां की सरकार ने 'सिंहला ओनली एक्ट' लागू कर दिया। इस एक्ट के जरिए तमिल की जगह सिंहली भाषा को ऑफिशियल दर्जा मिल गया। इसके बाद तमिलों में असुरक्षा की भावना पैदा हो गई। 1972 में प्रभाकरन ने तमिल न्यू टाइगर्स की स्थापना की, जो अनेक संगठनों के उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया। बाद में 1976 में प्रभाकरन ने लिट्टे की स्थापना की जो सशस्त्र संगठन था। जाफना के मेयर, अल्फ्रेड दुरैअप्पा की उस समय गोली मार कर ह्त्या कर दी गई जब वे पोंनालाई में एक हिंदू मंदिर में प्रवेश करने वाले थे।
श्रीलंका सरकार के साथ सैन्य संघर्ष
1983 में जाफना के बाहर श्रीलंकाई सेना के एक गश्ती दल पर घात लगाकर हमला किया जिसमें 13 सैनिकों की मौत हो गई। इस हमले के बाद श्रीलंका में भीषण नरसंहार हुआ जिसके परिणामस्वरूप हजारों तमिल नागरिकों की मौत हुई। यहीं से श्रीलंका में गृहयुद्ध की शुरुआत हो गई। लिट्टे, जिसे तमिल टाइगर्स के रूप में भी जाना जाता था उसने प्रभाकरन के नेतृत्व में उत्तरी श्रीलंका में बड़े हिस्से को नियंत्रित कर लिया। इतना ही नहीं पूर्वी श्रीलंका में प्रभाकरन सरकार के खिलाफ अपना स्वतंत्र राज्य चलाने लगे।
क्या है ऑपरेशन पुमालाई
लिट्टे का बढ़ता वर्चस्व देख 1987 में श्रीलंका की सेना ने उन्हें रोकने के लिए हवाई हमले शुरू कर दिए। इस हमले में तमिल आबादी वाले जाफना में कई निर्दोष नागरिक भी मारे गए। ऐसे में भारत सरकार ने श्रीलंका से तमिलों के खिलाफ हिंसा रोकने की अपील की। लेकिन श्रीलंका ने इसे कोई खास तव्ज्यों नहीं दी। जिसके बाद ऑपरेशन पुमालाई चलाया गया। ऑपरेशन पुमालाई को स्पेशल मिशन ईगल 4 के नाम से भी जाना जाता है। ये भारतीय वायुसेना की एक और गौरव गाथा है, जहां भारतीय डिफेंस फोर्स ने कमाल का काम किया था। हालांकि इसमें कोई युद्ध नहीं लड़ा गया था। ये उस दौर की बात है जब श्रीलंका में सिविल वॉर चल रहा था। वहां के नॉर्डन प्रोविनेंस की राजधानी जाफना पर लिट्टे ने कब्जा कर लिया था। श्रीलंका फोर्स ने ऑपरेशन चलाया और लिट्टे के साथ मुठभेड़ भी हुई। लेकिन इसमें आम नागरिक भी फंस गए थे। उन्हें ही सहायता देने के लिए ऑपरेशन पुमालाई चलाया गया था। 4 जून 1987 को, राहत प्रदान करने के लिए एक बोली में भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन पुमालाई की शुरुआत की। इस ऑपरेशन से पहले भारतीय सेना ने अपना एक अनआर्मड शिप भी भेजने की कोशिश की थी। लेकिन बाद में उसे श्रीलंका की नौसेना ने बीच मार्ग में रोक कर वापस भेज दिया था। जिसके बाद एक ही चारा था कि अब वक्त आ गया है कि श्रीलंका को हम अपनी ताकत दिखाए। जिसके बाद ईगल मिशन 4 को तैयार करने अंजाम दिया गया। इस ऑपरेशन में मिराज 2000, एन 32, मैजिक 11 एएम का इस्तेमाल हुआ। 4 जून को विमान ने उड़ान भरी। इस मिशन में 35 नेशन और इंटरनेशनल जर्नलिस्ट भी साथ में गए थे। कोरमंडल के लिए फ्लाइट निकली और उन्हें और 5 मिराज ने ज्वाइन किया। शाम के 4:50 में जाफना पहुंचकर के ऊपर 25 टन सामग्री की हवाई-आपूर्ति करन के लिये उड़ान भरी और वे पूरे समय श्रीलंकाई रडार कवरेज की सीमा के भीतर रहे। फिर 6:13 मिनट पर वो वापस आ गए थे।
भारत की शांति सेना
सरकारी सेनाओं ने उत्तरी शहर जाफना में तमिल विद्रोहियों को और पीछे हटा दिया। सरकार ने एक ऐसे समझौते पर दस्तखत किए जिनके तहत तमिल बाहुल्य इलाकों में नई परिषदों का गठन किया जाना था। भारत के साथ भी समझौता हुआ जिसके तहत वहां भारत की शांति सेना की तैनाती हुई। भारतीय शांति रक्षा सेना भारतीय सेना दल था जो 1987 से 1990 के मध्य श्रीलंका में शांति स्थापना ऑपरेशन क्रियान्वित कर रहा था। इसका गठन भारत-श्रीलंका संधि के अधिदेश के अंतर्गत किया गया था जिस पर भारत और श्रीलंका ने 1987 में हस्ताक्षर किये थे जिसका उद्देश्य युद्धरत श्रीलंकाई तमिल राष्ट्रवादियों जैसे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) और श्रीलंकाई सेना के मध्य श्रीलंकाई गृहयुद्ध को समाप्त करना था।
32 महीने चली भारतीय सेना और लिट्टे के बीच लड़ाई
शांति समझौते के मुताबिक श्रीलंका की सेना और लिट्टे जाफना में लड़ाई रोकने के लिए मान गए। इस दौरान वहां शांति व्यवस्था बनाए रखने का काम भारत ने अपने जिम्मे लिया। इसके लिए भारत से करीब 80 हजार सैनिकों को श्रीलंका भेजा गया। भारतीय सेना का काम लिट्टे समर्थकों को सरेंडर कराना था। लेकिन इसी बीच लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण ने न सिर्फ शांति समझौता मानने से इनकार कर दिया बल्कि भारतीय सैनिकों पर हमला भी बोल दिया। भारत में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार के चुनाव के बाद और नवनिर्वाचित श्रीलंकाई राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदास के अनुरोध पर शांति सेना 1989 में श्रीलंका से वापस जाने लगे। करीब 32 महीने तक भारतीय सेना और लिट्टे के बीच लड़ाई चलती रही और बाद में भारत ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था। हालांकि, इस संघर्ष में लिट्टे को भारी नुकसान पहुंचा था।
-अभिनय आकाश