Vishwakhabram: Harvard University के खिलाफ Donald Trump ने क्यों छेड़ी जंग? अब Foreign Students का क्या होगा?

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By नीरज कुमार दुबे | Apr 18, 2025

Vishwakhabram: Harvard University के खिलाफ Donald Trump ने क्यों छेड़ी जंग? अब Foreign Students का क्या होगा?

अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ युद्ध से ज्यादा चर्चे इस समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रतिष्ठित अमेरिकी विश्वविद्यालय हार्वर्ड के बीच छिड़ी जंग के हैं। हम आपको बता दें कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय वह जगह है जहाँ मार्क जुकरबर्ग ने अपने सहपाठियों की रेटिंग करने के लिए फेसबुक का प्रोटोटाइप बनाया था और जहाँ आठ अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने शासन करने की कला सीखी। हार्वर्ड दुनिया का सबसे अमीर विश्वविद्यालय है जहां से दुनियाभर के तमाम शासकों, उद्योगपतियों और विभिन्न क्षेत्रों की जानीमानी हस्तियों ने शिक्षा ग्रहण की है। यह विश्वविद्यालय साथ ही अभिजात वर्ग की महत्वाकांक्षा और बौद्धिक अहंकार का भी प्रतीक है। इस विश्वविद्यालय की एक पहचान यह भी है कि डोनाल्ड ट्रंप इससे नफरत करते हैं। ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में इस विश्वविद्यालय को झुकाने के लिए साम दाम दंड भेद, सबका इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हार्वर्ड सीना तान कर खड़ा है।


हम आपको बता दें कि ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिका के गृह मंत्रालय ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को ताजा चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वह अंतरराष्ट्रीय छात्र वीजा धारकों की "अवैध और हिंसक" गतिविधियों के बारे में 30 अप्रैल तक रिकॉर्ड उपलब्ध कराने में विफल रहता है तो विदेशी छात्रों को दाखिला देने की विश्वविद्यालय की प्रक्रिया पर रोक लगा दी जाएगी। अमेरिकी गृह मंत्रालय ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को दिए गए 27 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक के अनुदान को भी रद्द कर दिया है। हम आपको बता दें कि हार्वर्ड के खिलाफ ट्रंप प्रशासन की यह ताजा कार्रवाई 2.2 अरब अमेरिकी डॉलर के संघीय वित्त पोषण पर रोक लगाने के बाद की गई है क्योंकि विश्वविद्यालय ने प्रशासन की मांगों की एक सूची को अस्वीकार कर दिया था। अमेरिकी प्रशासन ने विश्वविद्यालय की “कट्टरपंथी विचारधारा” के कारण उसके कर-मुक्त दर्जे को रद्द करने का भी प्रस्ताव रखा है। अमेरिकी गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "गृह मंत्री क्रिस्टी नोएम ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को दिए जाने वाले कुल 27 लाख डॉलर के दो अनुदानों को रद्द करने की घोषणा की है।” बयान में कहा गया है, "मंत्री ने एक पत्र भी लिखा है, जिसमें 30 अप्रैल 2025 तक हार्वर्ड के विदेशी छात्र वीजा धारकों की अवैध और हिंसक गतिविधियों के बारे में विस्तृत रिकॉर्ड मांगा गया है।” बयान में कहा गया है कि रिकॉर्ड उपलब्ध न कराए जाने पर विदेशी छात्रों को दाखिला देने की विश्वविद्यालय की प्रक्रिया पर रोक लगा दी जाएगी।

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वैसे, ट्रंप प्रशासन और हार्वर्ड विश्वविद्यालय यदि अपनी अपनी बात पर अड़े रहे तो यह तय है कि फंडिंग रुकने और वीजा के खतरे में होने के चलते वैश्विक छात्रों के लिए इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई जारी रख पाना या यहां पढ़ने के लिए आ पाना मुश्किल हो जायेगा। अमेरिका में जहां एक वर्ग ट्रंप के कदम का समर्थन कर रहा है तो एक वर्ग ऐसा भी है जोकि ट्रंप प्रशासन के कदम को शिक्षण संस्थानों पर हमला मानते हुए हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ खड़ा नजर आ रहा है। हम आपको बता दें कि ट्रंप प्रशासन का हार्वर्ड पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि यह विश्वविद्यालय यहूदी छात्रों को भेदभाव और कैंपस शत्रुता से बचाने में विफल रहा, खासकर फिलिस्तीनी विरोध प्रदर्शनों के दौरान।


हम आपको यह भी बता दें कि हार्वर्ड ट्रंप के निशाने पर आज से नहीं है बल्कि यह निशाने पर तब आया था जब इस विश्वविद्यालय के छात्रों के कुछ समूहों ने 7 अक्टूबर 2023 को हमास की ओर से इजराइल पर हमले के बाद एक बयान जारी किया था जिसमें गाजा में हिंसा को बढ़ाने के लिए इज़राइल को दोषी ठहराया गया था। इस बयान ने इस विश्वविद्यालय के प्रमुख दानदाताओं के आक्रोश को भड़का दिया था जिसमें हेज फंड अरबपति बिल एकमैन भी शामिल हैं। उन्होंने हार्वर्ड की नैतिक कायरता के खिलाफ एक अभियान भी चलाया था। उसी समय से ट्रंप गुस्से में थे और जब उन्होंने यह देखा कि हार्वर्ड ने उनके आदेश को मानने से इंकार कर दिया है तो उनका आक्रोश भड़क गया। ट्रंप ने अपने प्रशासन को कार्रवाई के निर्देश दिये जिसके चलते कुछ समय पहले होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने हार्वर्ड की अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को नामांकित करने की क्षमता की समीक्षा शुरू की थी। इसके समानांतर उस आरोप की भी जांच शुरू हुई जिसमें कहा गया था कि हार्वर्ड ने यहूदी छात्रों के लिए शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने की अनुमति दी।


दूसरी ओर, हार्वर्ड के रुख का समर्थन कर रहे लोगों का कहना है कि यदि सरकार फंडिंग फ्रीज और इमिग्रेशन कंट्रोल के माध्यम से हार्वर्ड की नीतियों को मोड़ने में सफल हो जाती है, तो कोई भी अन्य कैंपस विरोध करने में सुरक्षित महसूस नहीं करेगा। उनका कहना है कि आज हार्वर्ड की बारी है कल को कोलंबिया, पेन, एमआईटी और स्टैनफोर्ड को इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस समय की स्थिति को देखें तो हार्वर्ड अपनी स्वायत्तता बनाए रखने के लिए लड़ रहा है। जबकि राष्ट्रपति ट्रंप अमीर शिक्षाविदों को अपनी इच्छा के अनुसार चलाने के लिए दृढ़ नजर आ रहे हैं। ट्रंप ने विश्वविद्यालय पर ताजा हमले में अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर कहा, "हार्वर्ड को अब सीखने का एक सभ्य स्थान भी नहीं माना जा सकता है और इसे दुनिया के महान विश्वविद्यालयों या कॉलेजों की किसी भी सूची में नहीं माना जाना चाहिए।" उन्होंने लिखा, "हार्वर्ड एक मज़ाक है, नफरत और मूर्खता सिखाता है और उसे अब सरकारी अनुदान नहीं मिलना चाहिए। ट्रंप का कहना है कि हार्वर्ड स्पष्ट रूप से यहूदी विरोधी है। उन्होंने कहा कि हार्वर्ड कट्टरपंथी वामपंथियों, मूर्खों और "पक्षपाती दिमाग वाले" लोगों को काम पर रख रहा है, जो केवल छात्रों और तथाकथित "भविष्य के नेताओं" को असफलता सिखाने में सक्षम हैं।'' ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पर यह भी पोस्ट किया था कि हार्वर्ड यदि छात्रों के चयन और प्रोफेसरों के अधिकार सहित विश्वविद्यालय को चलाने के तरीके को बदलने की उनकी मांगों को नहीं मानता है तो उसको "अपना कर-मुक्त दर्जा खो देना चाहिए और एक राजनीतिक इकाई के रूप में इस पर कर लगाया जाना चाहिए"।


हम आपको यह भी बता दें कि ट्रंप और उनकी व्हाइट हाउस टीम ने विश्वविद्यालयों पर अपने दबाव के अभियान को अनियंत्रित होती यहूदी-विरोधी भावना और फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास के समर्थन की प्रतिक्रिया के रूप में उचित ठहराया है। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने पत्रकारों से कहा कि ट्रंप "हार्वर्ड को माफ़ी मांगते देखना चाहते हैं और हार्वर्ड को माफ़ी मांगनी चाहिए।" हम आपको बता दें कि व्हाइट हाउस ने दर्जनों विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को संघीय निधि खत्म करने की धमकी दी है।


वहीं जवाब में हार्वर्ड ने कहा है कि उसकी टैक्स फ्री स्थिति को रद्द करने का कोई कानूनी आधार नहीं है। हार्वर्ड ने यह भी कहा है कि वह अपनी भर्ती, प्रवेश और शिक्षण योजनाओं में कोई बदलाव नहीं करेगा। हम आपको यह भी बता दें कि हार्वर्ड इस समय ट्रंप के खिलाफ अकेला खड़ा है जबकि कई अन्य अमेरिकी विश्वविद्यालय व्हाइट हाउस के तीव्र दबाव के आगे झुक गये है। न्यू यॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय अपनी संघीय निधि में $400 मिलियन की कटौती की धमकी के बाद अपने मध्य पूर्वी विभाग की निगरानी कराने के लिए सहमत हो गया है। इसके अलावा, दर्जनों विश्वविद्यालय ट्रंप प्रशासन से सीधे तो नहीं भिड़ रहे लेकिन अदालत में व्यापक शोध निधि कटौती के खिलाफ लड़ रहे हैं, क्योंकि फंड नहीं मिलने से कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ रही है और अमेरिकी शिक्षाविदों के बीच गहरी अनिश्चितता पैदा हुई है।


बहरहाल, हम आपको बता दें कि कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों को किसी न किसी तरह का संघीय वित्त पोषण मिलता है, जो ज़्यादातर दवा विकास जैसे क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए होता है। जनवरी में ट्रंप के दोबारा कार्यभार संभालने के बाद से स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसे ख्याति प्राप्त संस्थानों को संघीय निधियों में कमी के कारण भर्ती रोकनी पड़ी है और बजट में कटौती करनी पड़ी है। इस सबका असर उन विदेशी छात्रों पर भी पड़ रहा है जो अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने की योजना बना रहे थे। हार्वर्ड के पास पैसा और प्रतिष्ठा दोनों है, देखना होगा कि ट्रंप से भिड़ने के दौरान यह दोनों ताकत उसका कितना साथ देती हैं?


-नीरज कुमार दुबे

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