By सुखी भारती | Apr 19, 2022
प्रिय भगवत्प्रेमियों विगत काफी समय से हम सुंदरकाण्ड की पावन कथा का रसपान कर रहे हैं। प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमंत लाल जी ने किस प्रकार दृढ़ता से प्रभु के कार्य को सम्पन्न किया। लंका जिसे अजेय माना जाता था व रावण जिसने काल को भी अपना गुलाम बना रखा था, वह रावण अपने किए पापों के बोझ तले दब कर रह गया...
रावण ने जब अपने कानों से सुना, कि अमुक वानर बड़ा ही बलवान है, और अशोक वाटिका में उसने, वाटिका के साथ-साथ मेरे कितने ही रखवाले योद्धाओं का भी नाश कर दिया है। तो पहले तो रावण को किसी की बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। उसे लगा कि पहली बात तो यह, कि मेरी सुरक्षा व्यवस्था इतनी चाक चौबन्द है, कि कोई भी लंका नगरी में प्रवेश करने की सोच भी नहीं सकता। लेकिन फिर भी अगर कोई घुसपैठिया, मेरी लंका नगरी में दाखिल हो ही गया है, तो उसे अभी पकड़ लेते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है, कि उसने मेरे कितने ही सैनिकों को कैसे मार डाला? कारण कि मनुष्य और वानर तो हम राक्षसों के स्वाभाविक ही आहार हैं। तो फिर अभी तक मेरे राक्षस रखवाले, उस दुष्ट वानर को पकड़ क्यों नहीं पाये? चलो कोई नहीं, मैं अभी कुछ और श्रेष्ठ योद्धाओं को भेजता हूँ। वे अभी उसका वध कर डालेंगे। लेकिन बेचारे रावण को क्या पता था, कि वह कीट पतंगों से कह रहा था, कि जाओ और गरुड़ को पकड़ कर लाओ। भला यह सत्य सिद्ध कहाँ से हो सकता था। कारण कि सुई की नोक से आप पर्वत का सीना छलनी नहीं कर सकते। लेकिन हाँ! अगर छिपकली को यह भ्रम हो ही गया हो, कि छत को उसने पकड़ कर संभाल रखा है। तो उसके भ्रम का कोई इलाज नहीं किया जा सकता है। रावण को लगा कि मेरे नये योद्धा अभी अशोक वाटिका जायेंगे और चंद पलों में ही मुझे सूचना देंगे, कि हमने उस वानर को मार गिराया। लेकिन रावण की इस परिकल्पना को तब बड़ा झटका लगा, जब उसने सुना, कि उस वानर ने तो अबकी बार के राक्षसों को भी मसल डाला। क्योंकि उन राक्षसों को देखते ही सबसे पहले तो श्रीहनुमान जी ने भयंकर गर्जना की। और देखते ही देखते उन राक्षसों को मार डाला। कुछ जो अधमरे बचे थे, वे चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए-
‘सुति रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।।
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे।।’
रावण ने जब यह देखा, कि अमुक वानर ने तो इन राक्षसों को भी मार डाला। तो उसे अब लगा, कि वानर वाकई में बड़ा भारी बलवान है। रावण भीतर से क्रोध से तिलमिला उठा। अबकी बार उसने अपने बेटे अक्षय कुमार को आदेश दिया कि जाओ वीर पुत्र। उस दुष्ट वानर को उसके अपराधों का दण्ड देकर पुनः मेरे पास लौट कर आओ। पिता रावण का आदेश मिलते ही, अक्षय कुमार बहुत से श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर वहाँ पहुँचा, जहाँ श्रीहनुमान जी अपने रुद्र रूप को धारण किए हुए थे। अक्षय कुमार को अपनी ओर आता देख, श्रीहनुमानजी ने एक विशाल पेड़ को उखाड़ा और भयंकर ध्वनि में अक्षय कुमार को ललकारते हैं। अक्षय कुमार को लगा कि अरे वाह! क्या सचमुच में यही वह वानर है, जिससे नाहक ही हमारे योद्धा भय खा रहे थे। भला जो वानर युद्ध ही पेड़ पौधों को आधार बना करके कर रहा हो। वह भला कहाँ का वीर योद्धा? यह तो जंगली है। और यह जंगली जीव, मुझे एक ही गुण में निपुण दिखाई प्रतीत हो रहा है। वह यह कि यह उछल कूद में तो हमसे आगे हो सकता है, लेकिन बल व सामर्थ में नहीं। उछल कूद में भी हमसे अग्रणी भला क्यों न हो, मूर्ख वानर जो ठहरा। देखो तो, मंदबुद्धि मुझे देख कर गर्जना कर रहा है। लेकिन इसे क्या पता, कि मैं भी अक्षय कुमार हूँ। भला मुझे यह चंचल बँदर क्या मारेगा। इसे तो मैं अभी पल भर में ही मसल देता हूँ। लेकिन तब भी, इसे मारने में, संसार में मेरा अपयश ही होगा। दुनिया कहेगी, कि देखो अक्षय कुमार ने एक वानर को मार डाला। इसके स्थान पर कोई देव, दानव अथवा कोई बलवान राक्षस ही होता, तो कुछ रस भी होता। अब इस अभद्र वानर को मारने में तो, मेरे नाम को ही बट्टा लगेगा। चलो कोई नहीं, पिता की आज्ञा है, तो हम यह कड़वा घूँट भी भर लेते हैं। अक्षय कुमार मन ही मन संतुष्ट था लेकिन उसे क्या पता था, कि जिन श्रीहनुमान जी को, वह एक साधारण-सा वानर समझ रहा था, वास्तव में वे उसके बाप के भी बाप हैं। बाप इसलिए, क्योंकि श्रीहनुमान जी तो भगवान शंकर जी के अवतार हैं। और भगवान शंकर जी रावण के गुरु ठहरे। गुरु का पद् आप जानते ही होंगे। गुरु को शास्त्र पिता की संज्ञा भी देते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार श्रीहनुमान जी रावण के पिता तुल्य हुए। या सीधी-सीधी भाषा में कहें, तो श्रीहनुमान जी ठहरे रावण के बाप। तो सिद्ध हो गया न, कि श्रीहनुमान जी अक्षय कुमार के बाप के भी बाप हैं। अब बाप से बड़ा कोई पुत्र थोड़ी न हो सकता है। भले ही वह सौ कल्प का भी क्यों न हो। लेकिन अक्षय कुमार को तो लगा, कि मैं अभी इस दुष्ट वानर का वध कर देता हूँ। लेकिन उसे क्या पता था, कि श्रीहनुमान जी ने अभी-अभी जो विशाल वृक्ष उखाड़ा था, वह बगिया उजाड़ने के लिए थोड़ी न था। बल्कि अक्षय कुमार के जीवन की ही बगिया उजाड़ने के लिए था। श्रीहनुमान जी ने अन्य राक्षसों को तो शायद सँभलने का भी अवसर दिया था। लेकिन अक्षय कुमार को तो श्रीहनुमान जी ने यह अवसर भी नहीं दिया। पल झपकने का तो फिर भी पता चलता है, लेकिन अक्षय कुमार को, श्रीहनुमान जी ने कब उस वृक्ष के प्रहार से चारों खाने चित कर डाला, किसी को कानों कान ख़बर तक न हुई। श्रीहनुमान जी ने अक्षय कुमार को मार कर ऐसी भयंकर गर्जना की, कि बाकी राक्षसों की तो मानों छातियां ही फट गईं-
‘पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा।।
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।।’
चारों और राक्षसों में भगदड़ मच गई। सभी राक्षस यहाँ वहाँ दौड़ने लगे। जिसे जिधर रास्ता दिखाई प्रतीत होता। वह उस दिशा में दौड़ पड़ता। लेकिन कोई भी दिशा ऐसी न मिलती, जिधर से उन्हें श्रीहनुमान जी न घेरते नज़र आते। उन राक्षसों में से, श्रीहनुमान जी ने कुछ राक्षसों को तो मार दिया। कुछ को मसल दिया। और कुछ को पकड़-पकड़ कर धूल में मिला दिया। जो एकाध राक्षस बड़े ऊँचे भाग्य वाले थे, वे बच बचाकर फिर रावण की सभा में पहुँचे, और पुकार की, कि हे प्रभु! आप कुछ करिए, बँदर तो बड़ा ही भारी बलवान है-
‘कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।’
रावण के मन पर अपने पुत्र अक्षय कुमार के वध का क्या प्रभाव होता है, और इसके पश्चात वह क्या आदेश देता है? यह जानेंगे अगले अंक में...(क्रमशः)...जय श्रीराम।
-सुखी भारती