प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को मजबूत करने में उनकी पार्टी, उनकी निजी काबिलियत के समानन्तर विरोधियों का योगदान भी आनुपातिक रूप से कम नहीं है। प्रधानमंत्री के रूप में उनके हर निर्णय का अंधविरोध आखिरकार उनके लिए सियासी रूप से फायदेमंद ही साबित होता है। ताजा पीएम केयर फंड के गठन को लेकर की जा रही प्रधानमंत्री की आलोचना और सवालों के बीच विपक्षी नेता उसी लकीर को पीटते हुए नजर आए जिस पर वे 2014 से लगातार मोदी के आगे शिकस्त झेलते आ रहे हैं। नये पीएम केयर फंड के गठन के साथ ही विपक्षी नेताओं और वाम बुद्धिजीवीयों ने मोदी को इस फंड के जरिये भ्रष्टाचार में लपेटने की कोशिशें कीं। शशि थरूर, मनीष तिवारी से लेकर रामचन्द्र गुहा जैसे लोगों ने नेहरू द्वारा स्थापित प्रधानमंत्री राहत कोष के रहते पीएम केयर की आवश्यकता पर बड़े ही हमलावर अंदाज में सवाल उठाए। इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई जहां न केवल याचिका खारिज हुई बल्कि याचिकाकर्ता को फटकार भी खानी पड़ी।
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सवाल यह है कि पीएम केयर फंड पर विवाद खड़ा कर कांग्रेस को क्या हासिल हुआ ? जनता ने करीब 9 हजार करोड़ की राशि अब तक मोदी के आह्वान पर जमा कर दी है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हर कार्यकर्ता से न्यूनतम 100 रुपए स्वयं और अन्य पांच लोगों से दान की अपील की है। जाहिर है मोदी की अपील पर करोड़ों नागरिक कांग्रेस की दलीलों को खारिज कर इस फंड में धन जमा कर रहे हैं। यानी जन अपील के मामले में अनावश्यक कांग्रेस ने खुद की हार मोदी के हाथों लिख ली। अभी तक लोगों को यह नहीं पता था कि पीएम रिलीफ फंड की कमेटी में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी एक सदस्य होता है। संविधान लागू होने से पहले ही 1948 में नेहरू जी ने मूल रूप से इस फंड की व्यवस्था पाकिस्तान से आने वाले हिन्दू शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए की थी। आज की तरह उस वक्त भी टाटा परिवार ने देश की मदद में उदारता दिखाई थी इसलिए बतौर सदस्य टाटा घराने के सदस्य को भी इस कमेटी में रखा गया था। असल में नेहरू जी को कल्पना ही नहीं होगी कि कांग्रेस के ऐसे दिन भी आयेंगे जब लगातार दूसरी बार वह लोकसभा में विपक्ष के नेता लायक सीट भी नहीं जीत पायेगी। इसीलिए पीएम फंड कमेटी में कांग्रेस पार्टी के मुखिया को रखा गया। क्या आज के संदर्भ में अकेले कांग्रेस अध्यक्ष का इस कमेटी में रहना उपयुक्त है ?
हालांकि पीएम रिलीफ फंड के दुरूपयोग का कोई प्रश्न कभी नहीं उठा है और इसके जरिये प्राकृतिक आपदा और बीमारी के वक्त नागरिकों को वाकई मदद उपलब्ध कराई गई है। लेकिन इस कमेटी की संरचना राजनीतिक ही है क्योंकि सोनिया, बरुआ और राहुल को छोड़कर लगभग जितने भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे हैं वे कांग्रेस अध्यक्ष भी इस अवधि में बने रहे हैं। इसलिए इस विवाद के शोर ने जनता में इस फंड को लेकर मोदी से ज्यादा कांग्रेस पार्टी को सवालों के घेरे में ला दिया। इस विवाद का एक पक्ष यह भी लोगों के बीच स्थापित हुआ कि कांग्रेस अध्यक्ष की ताकत कम होने पर पार्टी यह शोर मचा रही है। यह एक तथ्य है कि निजी ईमानदारी और शुचिता के मामले में आज मोदी के आगे सार्वजनिक जीवन में कोई अन्य नेता टिक नहीं सकता है। जाहिर है जनता की नजर में मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी असन्दिग्ध होने से इस मामले में कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं हुआ सिवाय मोदी का प्रचार करने के।
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अब नए पीएम केयर फंड की बात करें तो यह स्पष्ट किया जा चुका है कि प्रधानमंत्री पदेन इस ट्रस्ट के अध्यक्ष होंगे उनके साथ रक्षा, गृह और वित्त मंत्री भी पदेन सदस्य होंगे। इनके अलावा समाजसेवा, वित्त, आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों के भी स्वतंत्र लोग इसके सदस्य नामित किये जायेंगे। कोई भी राजनीतिक व्यक्ति इस ट्रस्ट में नहीं होगा जैसा पीएम रिलीफ फंड में कांग्रेस अध्यक्ष को रखा गया था। कांग्रेस या उसके द्वारा 70 साल से वित्त पोषित होते आ रहे वामपंथियों का विरोध तर्कसंगत होता अगर पीएम अपनी पार्टी के अध्यक्ष को नेहरू जी की तरह इस ट्रस्ट में सदस्य नामित करते। सरकार ने इसके ऑडिट की घोषणा भी कर दी है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने सीएसआर मद के जरिये इस ट्रस्ट में धन जुटाने के लिए जो प्रावधान किया है उससे राज्य सरकारों के सामने धन जुटाना मुश्किल हो गया है। इस आरोप की हकीकत यह है कि 2013 में सीएसआर व्यय के नियमों का यह प्रावधान तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने ही किया था। यही नहीं जिस आपदा अधिनियम 2005 के अंतर्गत केंद्रीय सरकार को ऐसे कोष बनाने का अधिकार प्राप्त है वह भी मनमोहन सिंह के दौर में बना है। इसी अधिनियम के तहत लॉकडाउन घोषित किया गया है और यह राज्यों को भी राज्य आपदा कोष बनाने की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट में यह चुनौती दी गई थी कि केंद्र ने बगैर संसद की अनुमति के यह फंड शुरू कर दिया लेकिन मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने नाराजगी के साथ याचिकाकर्ता को फटकार लगाई की यह कोई ऐसा फैसला नहीं है जिसकी अनुमति ली जाये। जाहिर है तकनीकी तौर पर भी पीएम केयर फंड को चुनौती देने के प्रयास केवल मोदी की आलोचना और अंध विरोध के असफल प्रयास ही साबित हुए हैं।
अब मोदी समर्थक यह प्रचार कर रहे हैं कि सोनिया गांधी की भूमिका खत्म होने से कांग्रेस पीएम केयर फंड को निशाने पर ले रही थी। जिस तरह अनावश्यक विवाद इस मुद्दे पर खड़ा किया गया उससे कांग्रेस और वामपंथी रक्षात्मक मुद्रा में हैं। बेहतर होता इस निर्णय का स्वागत किया जाता और भ्रष्टाचार पर मोदी को घेरने के स्थान पर विपक्षी नेता बीजेपी अध्यक्ष की तर्ज पर अपने सभी कार्यकर्ताओं से भी न्यूनतम 100 रुपए दान की अपील करते। इस मामले में मायावती ने जो लकीर खींची है वह उनकी परिपक्वता को साबित करती है। मायावती ने सरकार के हर निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने अपने सांसदों और विधायकों से भी 30 फीसदी कम वेतन लेने को और अन्य सहायता देने के निर्देश दिए हैं। वस्तुतः विपक्ष को यह अभी तक क्यों समझ नहीं आया है कि मोदी सार्वजनिक जीवन में एक बेदाग छवि रखते हैं, उनकी पारिवारिक विरक्ति की नजीर के आगे आजाद भारत का कोई भी नेता आज तक टिक नहीं पाया है। जाहिर है मोदी को निजी तौर पर जितना टारगेट किया जाएगा विपक्ष मुँह की खाता रहेगा।
-डॉ. अजय खेमरिया