देश की राजधानी दिल्ली में यमुना नदी के रौद्र रूप के चलते बाढ़ का आपदाकाल चल रहा है। यमुना नदी में जल ने वर्ष 1978 के रिकॉर्ड 207.49 मीटर को तोडकर 208.66 मीटर के नये रिकॉर्ड तक जलस्तर बढ़ने से देश का दिल राजधानी दिल्ली की बहुत बड़ी आबादी बाढ़ की मार को झेलने के लिए मजबूर है। आज दिल्ली की 20 फीसदी आबादी यमुना के जल के प्रकोप से किसी ना किसी रूप से त्रस्त है। दिल्ली में यमुना के आसपास के क्षेत्रों में रह रहे लोगों के सामने यमुना नदी की बाढ़ एक बड़ी चुनौती के रूप में आकर खड़ी है।
दिल्ली में यमुना नदी के रौद्र रूप के चलते जबरदस्त बाढ़ आ गयी है, शहर की कॉलोनियों में जल भराव की गंभीर समस्या खड़ी हो गयी है। जिसके बाद से ही देश में दिल्ली की बाढ़ पर राजनेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का बहुत ही जबरदस्त सियासी घमासान मचा हुआ है। दिल्ली की राजनीति में सक्रिय कोई भी राजनीतिक दल आपदा के इस अवसर पर अपनी सियासत चमकाने में पीछे नहीं रहना चाहता है। लेकिन हर वर्ष देश में कहीं ना कहीं बाढ़ की मार झेलने वाले आम आदमी के बीच देश में बाढ़ से बचाव के उचित प्रबंधन क्यों नहीं है, इस ज्वलंत मुद्दे के बारे में चर्चा हो रही है, लोग बाढ़ प्रबंधन को समय की मांग बता रहे हैं। वैसे भी देखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में विभिन्न प्रकार की आपदाओं के कारण औसतन वार्षिक आर्थिक हानि 9.8 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें से अकेले ही 7 अरब डॉलर से अधिक का बहुत बड़ा नुकसान तो देश में समय-समय पर आने वाली बाढ़ के कारण ही हो जाता है, जो स्थिति हम सभी के लिए बेहद चिंताजनक है और जिस पर हमें व हमारे देश के सिस्टम को समय रहते लगाम लगाने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने चाहिए, क्योंकि भारत जैसे गरीब देश के लिए हर वर्ष इतनी बड़ी आर्थिक क्षति से मुक्ति पाना बेहद जरूरी है।
वैसे भी जब से देश में अंधाधुंध अव्यवस्थित शहरीकरण तेजी से बढ़ा है तब से शहरी क्षेत्रों में जरा सी बारिश के बाद ही बाढ़ जैसा माहौल बन जाना एक आम बात होती जा रही है। इसके चलते ही पिछले कुछ वर्षों से जरा भी तेज बारिश के बाद ही दिल्ली के साथ देश के अन्य शहरों में बाढ़ जैसी गंभीर समस्या तत्काल उत्पन्न हो जाती है। देश में अचानक से आई बाढ़ पलक झपकते ही अपने रास्ते में आना वाले जान-माल सभी कुछ को जल प्रवाह के द्वारा लील कर अपने साथ बहाकर ले जाने के लिए तत्पर नज़र आती है। हालांकि वास्तव में बाढ़ नदी के पानी का वह अतिप्रवाह है, जिसमें आमतौर पर सूखी रहने वाली भूमि भी डूब जाती है और नदी किनारे के क्षेत्रों में बाढ़ आने पर परिस्थितियाँ अचानक से गंभीर नहीं हो जातीं, लोगों को बाढ़ से जान-माल के बचाव करने का भरपूर समय मिलता है। वैसे भी किसी भी नदी का जैसे-जैसे जलस्तर बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे ही धरातल पर बाढ़ की समस्या भी गंभीर होती जाती है, इसलिए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में हमेशा बरसात के समय मे़ं सजगता बरतनी बेहद आवश्यक होती है।
जब से दिल्ली में यमुना नदी का जलस्तर 208.66 मीटर तक पहुंचा है, उसके चलते दिल्ली के 6 जिलों में बाढ से हाहाकार मचा हुआ है, पूरी दुनिया दिल्ली की बाढ़ को देख रही है। हालांकि 'केन्द्रीय जल आयोग' के रिकॉर्ड के अनुसार इस वर्ष यमुनानगर के हथिनीकुंड बैराज से सबसे ज्यादा 3.59 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, जबकि वर्ष 2019 और 2013 में 8 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा गया था, लेकिन उसके बाद भी यमुना नदी से लगे निचले इलाकों को छोड़कर बाढ़ की स्थिति इतनी खराब नहीं हुई थी, ऐसी स्थिति में सिस्टम के साथ-साथ देश के आम आदमी के लिए भी यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर दिल्ली में बाढ़ क्यों आई है। हालांकि राहत की बात यह रही कि केन्द्र व राज्य सरकार के द्वारा समय रहते ही राहत व बचाव कार्य तेजी के साथ किये गये हैं, जिससे बाढ़ में कोई जान हानि नहीं हुई है। सरकार के द्वारा विस्थापितों के लिए 2700 राहत कैंप बनाये गये हैं। राहत व बचाव के लिए एनडीआरएफ की 16 टीम बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में लगातार काम में लगी हुई हैं, जरूरत के अनुसार सेना भी अपने दायित्व का निर्वहन कर रही है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से लगभग 23 हजार लोगों का रेस्क्यू किया गया है। उस सबके बावजूद भी दिल्लीवासियों के सामने बहुत सारी समस्याएं खड़ी हुई हैं, दिल्ली में पेयजल आपूर्ति करने वाले तीन वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद हो गये हैं, जिससे दिल्ली को 25 फीसदी कम पेयजल मिलने के चलते पेयजल के संकट से जूझना पड़ रहा है। वहीं रिंग रोड व बाढ़ग्रस्त अन्य सड़कों को बंद करने के चलते दिल्ली में जगह-जगह भीषण ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझना पड़ रहा है। यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन को बंद कर दिया गया है, पुल पर मेट्रो की रफ्तार कम कर दी गयी है। वहीं रिवर बेड में बनी झुग्गी-झोपड़ियों के साथ-साथ दिल्ली के पॉश कॉलोनी व अन्य बेहद अहम स्थल आईटीओ, राजघाट, लालकिला, सिविल लाइंस, माडल टाउन, यमुना बाजार, मोनेस्ट्री, कश्मीर गेट, आईएसबीटी, निगमबोध घाट, रिंग रोड, पुराना किला, गढ़ी मांडू आदि क्षेत्रों में बाढ़ का जल सीना तानकर अभी तक खड़ा हुआ है।
इस बाढ़ग्रस्त स्थिति के बीच ही देशवासियों के मन में एक सवाल निरंतर कौंध रहा है कि देश की राजधानी दिल्ली में बाढ़ की जो स्थिति बनी है, आखिरकार उसके लिए जिम्मेदार कौन है, बड़े पैमाने पर लोग इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने में लगे हुए हैं। वैसे देखा जाये तो किसी को दोषी ठहराने से पहले स्वयं हम लोगों को भी अपने गिरेबान में भी झांक कर देखना होगा, वैसे इस सवाल का सबसे सटीक जवाब है कि हमारे सिस्टम के द्वारा दिल्ली में यमुना नदी की तलहटी की साफ-सफाई में बरती गयी घोर लापरवाही और जनता के द्वारा यमुना नदी की पेटी यानी कि रिवर बेड़ में बड़े पैमाने पर किया अतिक्रमण इस स्थिति को उत्पन्न करने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जिसके चलते कभी लालकिले के पास बहने वाली यमुना नदी ने अपना तेजी से रास्ता बदलने का कार्य किया है, साथ ही वोटबैंक की ओछी राजनीति के चलते रिवर बेड में अतिक्रमण होने देने के चलते यमुना का जल खपाने की जगह दिल्ली में तेजी से सुकड़ती जा रही है, जिससे बहुत जल्दी ही दिल्ली में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
वहीं इस रिवर बेड़ की चौड़ाई कम करते हुए यमुना को पुश्ता बनाकर उसे बांधकर के बेहद संकरा कर दिया गया है, जिससे कि वह जरा सी बारिश के बाद ही बहुत ही जल्दी उफन कर अपने रौद्र रूप में नज़र आने लगती है। वहीं दिल्ली में 22 किलोमीटर लंबी बहने वाली यमुना नदी के अविरल प्रवाह को विकास के नाम पर हमने स्वयं अवरुद्ध करने का कार्य कर दिया है, वजीराबाद से ओखला तक 22 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में बने 25 पुल यमुना नदी के प्रवाह में बड़ी बाधा उत्पन्न करने का कार्य करते हैं। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे सिस्टम के चलते हर वर्ष फाइलों में साफ होने वाली यमुना नदी की तलहटी में गाद जमने से नदी की गहराई दिल्ली में हर वर्ष कम होती जा रही है, जिसके चलते जरा सी बारिश के बाद ही यमुना नदी रौद्र रूप में आकर ओवरफ्लो हो जाती है। वहीं दिल्ली में 22 किलोमीटर लंबी यमुना नदी में 22 नाले डाले जाते हैं, दिल्ली की गंदगी से भरे यह नाले यमुना को कीचड़ से युक्त करके इसके प्रवाह को अवरूद्ध करने का कार्य करते हैं, आपको बता दें कि अपनी कुल लंबाई में से मात्र 2 फीसद दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी में 80 फीसदी गंदगी दिल्ली में ही नालों के माध्यम से यमुना नदी में गिरती है, जो स्थिति बेहद चिंताजनक है। वहीं हरियाणा के यमुनानगर के हथिनी कुंड बैराज से दिल्ली तक यमुना नदी लगभग 180 किलोमीटर का सफर तय करती है, यमुना नदी की तलहटी में गाद व अतिक्रमण के चलते संकरी होने की वजह से पहले दिल्ली में हथिनी कुंड बैराज से छोड़ा जाने वाला पानी लगभग चार दिन लेता था, लेकिन अब वह मात्र दो दिन में पहुंच जाता है, जिसके चलते बेहद कम समय में ही दिल्ली में बाढ़ जैसे हालात बन जाते है़। इसलिए दिल्ली में इन सभी कारकों को जन्म देने वाले लोग यमुना नदी में बाढ़ आने के लिए जिम्मेदार हैं।
-दीपक कुमार त्यागी
(वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिज्ञ)