कौन है भारत माता जिसकी जय वाले तराने पर भिड़ गया जमाना

By अभिनय आकाश | Mar 05, 2020

जब चौदह साल के बच्चे चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेज जज ने बेंत लगाने की सजा सुनाई तो हर बेंत पर चंद्रशेखर आजाद की जुबान से दो ही नारे गूंज रहे थे। भारत माता की जय और महात्मा गांधी की जय। गुलाम भारत में नारे लगे लेकिन आजाद भारत में 100 साल बाद उस पर सवाल दागे जा रहे हैं वो भी राजनीति की चाशनी में डूबे हुए सवाल। तो उस पर चर्चा करना लाजमी है। आखिर कौन है भारत माता, कहां से आया 'भारत माता की जय' का नारा और इतिहास में गौरव का प्रतीक माना जाने वाला यह नारा आज के दौर में सियासी खींचतान और मान-अभिमान का विषय बन गया है। 

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अक्सर मेरे मन में सवाल उठता है कि आखिर भारत माता से मेरा पहला परिचय कब हुआ। दिमाग पर जरा जोर डालने पर बचपन में भारत कुमार यानी मनोज कुमार की क्रांति फिल्म के गाने में पहली बार भारत माता के दर्शन की कुछ धुंधली तस्वीर शायद लाल बॉर्डर की सफेद साड़ी जंजीर से बंधी कुम्हलाया चेहरा, मनोज कुमार और उनके साथी उनको छुड़ाने के लुए संघर्ष करते हैं ध्यान पड़ता है। लेकिन पिछले कुछ समय से 'भारत माता' और 'भारत माता की जय,' को लेकर देशभर में खूब विवाद हो रहा है। कोई पार्टी कहती है कि यह नारा देश के लिए आपके समर्पण के भाव को दिखाता है तो कोई पार्टी कहती है कि इस नारे का मकसद देश का भगवाकरण करना है।

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भारत माता की जय महज नारा नहीं है, ये आजादी का सबसे बड़ा जज्बात और देशभक्ति की सबसे बड़ी हुंकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान पर हंगामा मच गया जिसमें उन्होंने भारत माता की जय को लेकर इशारों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधा है। उन्होंने पूछा है कि इस नारे में क्या दिक्कत है। पीएम के विचारों को संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने सामने रखते हुए कहा कि पीएम को बहुत धक्का लगा है। पीएम मोदी ने यह बात भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की संसदीय दल की बैठक में की है। पीएम मोदी ने क्यों लिया मनमोहन सिंह का नाम ये भी आपको बता देते हैं?

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मनमोहन सिंह ने एक किताब के विमोचन के मौके पर उन असमाजिक तत्वों पर उंगली उठाई थी जो भारत माता की जय बोलकर समाज को अस्त-व्यस्त करने की कोशिश करते हैं। मनमोहन सिंह ने कहा था कि भारत माता की जय के नारे का गलत इस्तेमाल हो रहा है। भारत माता को और करीब से जानने के लिए आपको हम इतिहास की यात्रा पर ले चलते हैं। 

सन 1873 में पहली बार नजर आईं भारत माता

किरन चंद्र बनर्जी ने एक नाटक लिखा था जिसका टाइटल था, 'भारत माता,' इस नाटक का प्रदर्शन सन 1873 में किया गया था। यहीं से 'भारत माता की जय' इस नारे के शुरू होने के बारे में बातें कही गई हैं। बाद में बिपिन चंद्रपाल ने इसे एक विस्‍तृत रूप दे दिया। उन्‍होने भारत माता को हिंदु दर्शन और आधात्मिक कार्यों से जोड़ा। उन्‍होंने भारत माता को एक विश्‍व और एक देश जैसे विचारों के साथ जोड़ना शुरू किया था।

कैसे बनी भारत माता की तस्‍वीर

 

1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान कोलकाता से अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की कूचि से भारत माता का ये स्वरूप अवतरित हुआ तो देश की आजादी का सपना देख रहे लोगों की कल्पनाओं में उबाल ला दिया। शिक्षा, दीक्षा, अन्न और वस्त्र हैं इनके हाथों में। आजाद भारत में यही रोटी, कपड़ा औऱ मकान बन जाता है। इसके बाद सुब्रहमण्‍यम भारती जो कि आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे उन्‍होंने भारत माता की व्‍याख्‍या गंगा की धरती के तौर पर की और भारत माता को प्राशक्ति के तौर पर पहचाना।

1936 में बना पहला मंदिर

1936 में बना पहला मंदिर वर्ष 1936 में महात्‍मा गांधी ने वाराणसी स्थित काशी यूनिवर्सिटी में भारत माता के मंदिर का उद्घाटन किया था।

वीएचपी के बनाए मंदिर का उद्घाटन इंदिरा ने किया। इसके बाद हरिद्वार में विश्‍व हिंदू परिषद (वीएचपी) की ओर से एक मंदिर का निर्माण वर्ष 1983 में किया गया था। उस समय तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था।

 

पुरानी दिल्ली के कैलेंडर, पोस्टरों की दुकान में मिलने वाली भारत माता की तस्वीरों को देखिएगा कभी। पता चलेगा कि भारत माता की कितनी विविधता है। कई शोध छात्रों ने इन कैलेंडर और पोस्टर में देवी-देवता से लकेर भारत माता की विकास यात्रा का गहन अध्यन किया है। ज्योतिंद्र जैन, मृणालिनी सिन्हा, गीती सेन और सदन झा जैसे कई लोग इन कैलेंडर के जरिए राष्ट्रवाद और तमाम पहलुओं का अध्यन करते रहे हैं। 

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विनोबा भावे ने एक बार कहा था कि एक शब्द है राष्ट्र अगला शब्द है महाराष्ट्र और तीसरा शब्द है सौराष्ट्र। मतलब हमारे देश में एक से लेकर सौ-राष्ट्र वाले नाम के शब्द मौजूद हैं। मतलब एक ही देश में इतनी विवितता का स्वरूप देखने को मिलता है। अंग्रेजों के खिलाफ जंग में भारत माता की जय धड़कनों में नई आग बोती थी। आजादी के दौर में क्रांतिकारी संगठनों ने भारत माता की तस्वीरों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। छापों के दौरान अंग्रेज भारत माता की तस्वीर मिलते ही चौकन्नी हो जाती थी। देखने वालों ने देवी दुर्गा में भारत माता को देखा और भारत माता में दुर्गा को। देवी होने की वजह से कई अलग-अलग धर्म-मजहब के लोगों को लगने लगा भारत माता तो है लेकिन सब की माता नहीं है। देखते ही देखते बदलते वक्त के साथ वोट की जंग में भी इसका इस्तेमाल होने लगा।

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अन्ना आंदोलन के वक्त जामा मस्जिद के शाही इमाम ने कहा था कि इस्लाम में राष्ट्र या भूमि पूजा की इजाजत नहीं है। यहां तक की उस मां तक की पूजा भी नहीं होती जो बच्चों को नौ महीने कोख में रखती है।  

लेकिन देशभक्ति का ये नारा प्रधानमंत्री की जुबान पर ही नहीं बल्कि भारत के हर देशभक्त की जुबान पर चढ़ा रहता है। ये तो आपको याद ही होगा कि कैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई का बिगुल भारत माता की जय-जयकार से फूंका था अन्ना हजारे ने। (अरविंद केजरीवाल भारत माता की जय) राजनीति की दो धाराएं जहां मिलती हैं वहां आपको भारत माता की जय सुनाई पड़ेगी। तभी तो चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, दोनों की जुबान पर ये नारा चढ़ा देखा जाता है। याद कीजिए जावेद अख्तर की राज्यसभा में वो आखिर बात जो भारत माता पर खत्म होती है। लेकिन इसकी खिलाफत करने वालों ने भी अपनी मुखरता शान से दिखाई जब ओवैसी ने कहा मैं नहीं लगाऊंगा भारत माता की जय वाला नारा।

भारत माता की जय का विरोध करने वालों को इस नारे में बीजेपी, आरएसएस और नरेंद्र मोदी का विरोध नजर आता है। जिस नारे में राष्ट्रवाद की संजीवनी है। जिस नारे को उछालकर आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। जिस नारे ने अंग्रेजी दास्ता के खिलाफ पूरे मुल्क को एक बंधन में बांध दिया था। वो नारा था भारत माता की जय। 

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इस नारे के महत्व को और करीब से जानने के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विचारों को भी जान लीजिए। कांग्रेस के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई के दौरान ‘भारत माता की जय’ के नारे खूब लगे। पंडित जवाहरलाल नेहरू उन दिनों जहां भी जनसभाओं में जाते थे तो उन के पहुंचने और जनसभा को संबोधित करने के पहले अनेक बार यह नारा बुलंद हो चुका होता था। पंडित नेहरू लोगों से पूछा करते थे कि आप जो ये ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हैं इस का क्या अर्थ है, कौन है यह भारत माता? तब उन्हें लोगों से तरह-तरह के उत्तर मिलते थे। पं. नेहरू ने अपनी पुस्तक अपनी ‘भारत की खोज’ में नोट किया है कि उनकी सभाओं में जब भी नारा लगता है, ‘भारत माता की जय’, वह लोगों से पूछते हैं कि ‘कौन है यह भारत माता, जिसकी जय का नारा लगा रहे हैं, जिसकी जय हम सब चाहते हैं?’ और फिर नेहरू लिखते हैं कि वह लोगों को बताते थे, ‘आप सब लोग स्वयं हैं भारत माता, हिन्दुस्तान का एक-एक इंसान है भारत माता, भारत माता की जय का असली मतलब यही है कि साधारण हिन्दुस्तानियों की जय हो, उन्हें विदेशी शासन से ही नहीं, आंतरिक शोषण और अन्याय से भी मुक्ति मिले’। भारत माता सिर्फ ये धरती ही नहीं सारा हिन्दुस्तान, नदियां, पहाड़ और सबसे अहम भारत की सरजमी पर फैली ये आवाम इस देश के लोग।

भारत माता की जय का विरोध करने वालों को नेहरू के विचार और चंद्रशेखर आजाद की बेंतों की मार के वक्त दोहराए गए तराने को एक बार याद करने की जरूरत है। इस देश के सारे 130 करोड़ लोगों में भारत माता का अंश है। उन सभी के सामूहिक प्रयासों से ही देश बना है और आगे भी बनेगा। याद कीजिए फारूख अब्दुल्ला के वो जज्बात, याद कीजिए राज्यसभा में जावेद अख्तर की वो बात जो भारत माता की जय के साथ खत्म होती है।- अभिनय आकाश