By अभिनय आकाश | Jan 22, 2020
रजनीकांत ऐसे एक्टर हैं जिनके फिल्मों के ट्रेलर भी लोग टिकट खरीद कर देखते हैं। रजनीकांत के दीवाने दुनियाभर में है और 1998 में आई उनकी एक फिल्म मुथू जापानी भाषा में डब की गई और जापान में ऐसी हिट हुई कि निंजा के देश में उनके लाखों दीवाने हो गए। तमिल फिल्म इंडस्ट्री में उनकी हैसियत सुपरस्टार की है ये सभी जानते हैं। कोई नाम के साथ सर लगाता है तो कोई थलाइवा कहता है। 20 जनवरी को मदुरई में रजनीकांत का पुतला जलाया गया। पुतला जलाने वालों का इल्जाम था कि रजनीकांत ने ईवी रामास्वामी पेरियार का अपमान किया। पुतला जलाने वाले कई संगठन के साथ-साथ द्रविड़ विधुथलाई कझगम (DVK) ने रजनीकांत के खिलाफ एक एफआईआर भी करवाई है। पहले जान लीजिए कि रजनीकांत ने कहा क्या था। 14 जनवरी 2020 की बात है, तमिल पत्रिका तुगलक की पचासवीं सालगिरह थी और उसी अवसर पर रीडर्स कनेक्ट का कार्यक्रम रखा गया। इस कार्यक्रम में रजनीकांत भी पहुंचे और कहा
'सालेम में 1971 के साल में पेरियार ने एक रैली निकाली थी। रैली में भगवान श्री रामचंद्र और सीता की ऐसी मूर्तियां थी जिसमें कपड़े नहीं पहनाए गए थे। मूर्तियों पर चप्पल की माला पहनाई गई थी। तब किस किसी समाचार संस्थान ने इसे प्रकाशित नहीं किया था।'
रजनीकांत के इस बयान के बाद तमिल कि राजनीति में घमासान मच गया। कई संगठनों ने रजनीकांत के घर के बाहर प्रदर्शन भी किया। मामले को बढ़ता देख रजनीकांत अपने घर से बाहर आए और कुछ पुरानी अखबार की कटिंग लहराकर रजनीकांत ने कहा कि मैंने पेरियार के बारे में जो कहा वो मनगढंत नहीं था। जिस बयान को मुद्दा बनाया जा रहा है, उसमें कुछ गलत नहीं है। साल 1971 में ये मसला उठा था, तब अखबारों में ये सब छप चुका है मैंने कुछ गलत नहीं कहा है। मैं माफी नहीं मांगूंगा और मेरे पास मौजूद पत्रिकाएं ये साबित करती हैं कि मैंने जो कहा वो सच है।
कभी रजनीकांत की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाने वाले उनके आलोचक रहे सुब्रह्मण्यम स्वामी रजनीकांत के साथ आकर खड़े हो गए। राजनीति कि यही तो सबसे बड़ी खूबसूरती है कि यहां कब दोस्त दुश्मन बना जाता है और कब आलोचक समर्थक, इसका पता ही नहीं चलता। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि रजनीकांत द्वारा पेरियार के ख़िलाफ़ बयान देना यह दिखाता है कि उन्होंने काफ़ी सोच-समझ कर मजबूती से स्टैंड लिया है। बीजेपी सांसद स्वामी ने कहा कि सुपरस्टार को कभी भी किसी भी प्रकार की कानूनी मदद की ज़रूरत पड़ती है तो वो इस मामले में कोर्ट में उनका पक्ष रखने को तैयार हैं। ख़ुद स्वामी ने स्वीकार किया कि रजनीकांत को लेकर उनके रुख में बदलाव आया है। उन्होंने माना कि पेरियार ने 1971 की एक रैली में भगवान राम व मां सीता का अपमान किया था और बाद में ‘तुग़लक़’ पत्रिका ने इसे प्रकाशित भी किया था।
पेरियार को लेकर इतना बवाल मचा है तो उनके बारे में भी आपको विस्तार से बता देते हैं।
ईवी रामास्वामी पेरियार भारतीय राजनीति की सबसे विवादित हस्तियों में से एक हैं। तमिलनाडु के सामाजिक-राजनीतिक हालात पर पेरियार का गहरा असर है। तमिलनाडु के भीतर कोई भी पार्टी खुले रूप में पेरियार की आलोचना नहीं कर सकती। वो पेरियार ही थे जिन्होंने द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत की और डीएमके, एआईएडीएमके और एमडीएमके इसी आंदोलन की पैदाइश हैं। ‘एशिया का सुकरात’ कहे जाने वाले पेरियार का जन्म 1879 में एक धार्मिक हिंदू परिवार में हुआ था। इसके बावजूद, ताउम्र उन्होंने धर्म का विरोध किया। हिंदू धर्म की कुरीतियों पर इतनी मुखरता से अपनी बात रखी कि बहुत से लोगों को यह उनकी ‘आस्था पर प्रहार’ लगा।
गांधी जी के थे शिष्य बाद में बने उनके आलोचक
पेरियार महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसी दौरान उन्होंने 1924 में केरल में हुए वाइकोम सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई। लेकिन बाद में वो गांधी के प्रमुख आलोचकों में से एक थे। मोहम्मद अली जिन्ना और डॉ बीआर अंबेडकर के अलावा, पेरियार ही वो तीसरी बड़ी शख्सियत रहे जिन्होंने खुलकर महात्मा गांधी का विरोध किया। जब गांधी की हत्या हुई तो पेरियार बेहद दुखी थी और भारत का नाम ‘गांधी देश’ रखने की मांग की थी। लेकिन कुछ समय बाद ही, उन्होंने गांधी को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया था। दिसंबर 1973 में दिए अपने आखिरी भाषण में भी पेरियार ने कहा था, “हम गांधी का संहार करते, उससे पहले ब्राह्मणों ने हमारा काम कर दिया।” आजादी से पहले जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग उठाई और उसी का सहारा लेकर पेरियार ने द्रविड़नाडु की मुहिम तेज कर दी थी। 1940 में पेरियार और जिन्ना के बीच इसे लेकर तीन मुलाकातें भी हुईं मगर गैर-मुस्लिम की मांग को सपोर्ट से जिन्ना ने इनकार कर दिया। केरल का वाइकोम सत्याग्रह दलितों को यहां स्थित एक प्रतिष्ठित मंदिर में प्रवेश दिलाने और मंदिर तक जाती सड़कों पर उनकी आवाजाही का अधिकार दिलाने का आंदोलन था। इसके अलावा उन्होंने राज्य में हिंदी के खिलाफ भी आंदोलन किया।
पेरियार ने ताउम्र हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद का जमकर विरोध किया। उन्होंने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया। जाति प्रथा का घोर विरोध किया। यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन का पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा था। लेकिन उन्होंने कुछ ऐसी भी बाते कहीं जिसको लेकर अक्सर विवाद भी होता रहा है। आइए जानते हैं पेरियार की ओर से कही कुछ विवादित बातों के बारे में।
पेरियार द्रविड़ आंदोलन के बड़े नायकों में से एक थे इसमें कोई शक नहीं। सार्वजनिक जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जिनका खास उद्देश्य था। पेरियार की राजनीति को उत्तर भारत के संदर्भ से देखेंगे तो पेरियार के कई ऐसे काम हैं जो हमें आपत्तिजनक लग सकते हैं क्योंकि जिनके लिए भी हिन्दू देवी देवता अराध्य हैं उन्हें पेरियार की राजनीति ठीक नहीं लगेगी और खुद पेरियार के लोगों ने आखिरी दौर में उनका साथ छोड़ दिया था। एक सियासी जिंदगी होती है जिसके कई रंग होते हैं। ऐसे में पेरियार को लेकर भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले या धारणा बनाने से पहले उन्हें और पढ़े जाने की जरूरत है।